कृष्ण प्रताप सिंह का ब्लॉगः बड़े संकट की आहट है यह जलसंकट
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: June 20, 2019 07:03 PM2019-06-20T19:03:56+5:302019-06-20T19:03:56+5:30
अगर शिमला में मार्च के अंतिम सप्ताह में ही लू चलने लगेगी और जून आते-आते प्यासे लोग पानी के लिए तड़पने लगेंगे तो लोगों के मन में बनी और बसी उसकी पुरानी मनोहारी छवि टूटेगी ही.
पिछले साल इन्हीं दिनों की बात है, हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला का भीषण जलसंकट से सामना हुआ, जिसके चलते वहां प्रस्तावित अंतर्राष्ट्रीय ग्रीष्मोत्सव स्थगित करना पड़ा. साथ ही पर्यटकों से वहां न जाने की अपीलें की जाने लगीं तो चीड़ व देवदार के जंगलों से हर किसी का दिल चुराने वाली इस ‘पहाड़ों की रानी’, जो सुरम्य प्राकृतिक और नयनाभिराम हिमाच्छादित दृश्यों की स्वामिनी भी है, की दुर्दशा देशव्यापी चर्चाओं का विषय बनी.
कई जानकारों ने यह अंदेशा भी जताया कि हम अभी भी अपने देश को प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध उपभोग के रास्ते पर सरपट दौड़ाने से बाज नहीं आए तो जैसे उसके अनेक गांव व नगर, वैसे ही पहाड़ों की यह रानी भी, आने वाले बरसों में अपनी पुरानी पहचान से अलग हो जाएगी और बहुत संभव है कि आने वाली पीढ़ियां उसे किसी और ही रूप (कुरूप) में जानने-पहचानने को अभिशप्त होकर रह जाएं. जानकारों के पास इस अंदेशे के कई वाजिब तर्क भी थे. उनमें सबसे बड़ा यह कि अगर शिमला में मार्च के अंतिम सप्ताह में ही लू चलने लगेगी और जून आते-आते प्यासे लोग पानी के लिए तड़पने लगेंगे तो लोगों के मन में बनी और बसी उसकी पुरानी मनोहारी छवि टूटेगी ही.
तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में कई जगहों पर लोग पेयजल के लिए हिंसक झड़पों पर आमादा हैं और ऐसी ही एक झड़प के बाद राज्य के विधानसभाध्यक्ष के ड्राइवर को गिरफ्तार किया गया है. प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी के गृहराज्य गुजरात की बात करें तो वहां संकट की विकटता ऐसी है कि भाजपा के विधायक बलराम थवानी ने अहमदाबाद के नरोडा क्षेत्न में पानी की किल्लत की शिकायत लेकर उनके पास गई महिला राजनीतिक कार्यकर्ता पर अपने कार्यालय के बाहर, समर्थकों के साथ, दिनदहाड़े बेरहमी से लातें, घूंसे व थप्पड़ बरसा डाले.
अगर यही हाल रहा और इस जल संकट को भी महज जल का संकट समझकर उससे फौरी उपायों के सहारे जैसे-तैसे ही पार पाया गया यानी उसके कारण दूर करने की ओर नहीं बढ़ा गया तो एक दिन हमारे गांव और शहर सबके सब दुर्निवार संकटों के सामने खड़े दिखेंगे. सवाल है कि क्या हमारा तंत्न उस दिन से पहले चेत सकेगा? और जवाब यह कि उसे चेतना ही होगा, बशर्ते जब भी हमारी सरकार हमें 2024 तक देश की अर्थव्यवस्था के पांच लाख करोड़ डॉलर की हो जाने का सपना दिखाए, हम उससे यह जरूर पूछें कि उस अर्थव्यवस्था में देश के सारे लोगों को पीने का जरूरतभर साफ पानी मयस्सर होगा कि नहीं?