कृष्ण प्रताप सिंह का ब्लॉगः भगत सिंह चाहते थे क्रांतिकारी बदलाव

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: September 28, 2019 08:11 AM2019-09-28T08:11:14+5:302019-09-28T08:11:14+5:30

हम जानते हैं कि लाहौर सेंट्रल जेल में इन तीनों को फांसी की निश्चित तारीख 24 मार्च से एक दिन पहले ही सारे नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए शहीद कर दिया गया था. ये तीनों ही शहीद 13 अप्रैल, 1919 को जलियांवाला बाग में हुए भयावह नरसंहार से विचलित होकर क्रांतिकारी बने थे.

Krishna Pratap Singh's blog: Bhagat Singh wanted revolutionary change | कृष्ण प्रताप सिंह का ब्लॉगः भगत सिंह चाहते थे क्रांतिकारी बदलाव

कृष्ण प्रताप सिंह का ब्लॉगः भगत सिंह चाहते थे क्रांतिकारी बदलाव

शहीद भगत सिंह प्राय: कहा करते थे कि गोरे अंग्रेजों की जगह काले या भूरे साहबों के आ जाने भर से देश और देशवासियों की नियति नहीं बदलने वाली. दुर्भाग्य से आजादी के बाद सत्तातंत्न द्वारा देश और देशवासियों की इस नियति को बदलने के प्रयत्न जरूरी नहीं समझे गए.
  
 हम जानते हैं कि लाहौर सेंट्रल जेल में इन तीनों को फांसी की निश्चित तारीख 24 मार्च से एक दिन पहले ही सारे नियम-कानूनों की धज्जियां उड़ाते हुए शहीद कर दिया गया था. ये तीनों ही शहीद 13 अप्रैल, 1919 को जलियांवाला बाग में हुए भयावह नरसंहार से विचलित होकर क्रांतिकारी बने थे. 30 अक्तूबर, 1928 को लाहौर में साइमन कमीशन के विरोध प्रदर्शन में पंजाब केसरी लाल लाजपतराय अंग्रेज पुलिस की लाठियों से घायल हुए और मर्मान्तक तकलीफें ङोलकर 17 नवंबर, 1928 को उन्होंने अंतिम सांस ली, तब इन तीनों ने ठीक एक महीने बाद 17 दिसंबर को उक्त लाठीचार्ज के जिम्मेदार अंग्रेज अधिकारी जॉन पी. सांडर्स को योजनाबद्ध ढंग से गोलियों से भून डाला.

बाद में आठ अप्रैल, 1929 को भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त के साथ दिल्ली में केंद्रीय असेंबली में बम और पर्चे फेंके तो उनका उद्देश्य था-दो अत्यधिक दमनकारी कानूनों के विरोध की देश की आवाज को बहरी सरकार के कानों तक पहुंचाना. इस उद्देश्य की पूर्ति के बाद वे भागे नहीं, वहीं खुद को गिरफ्तार करा लिया और अपने खिलाफ चली समूची अदालती कार्रवाई को अपनी अनूठी क्रांतिकारी चेतना और विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए इस्तेमाल किया.

जानना दिलचस्प है कि 28 सितंबर, 1907 को जब पंजाब के लायलपुर जिले के एक गांव में, जो अब पाकिस्तान में है, भगत सिंह का जन्म हुआ तो उनके पिता किशन सिंह और चाचा अजीत सिंह व स्वर्ण सिंह क्रांतिकारी गतिविधियों के सिलसिले में जेलों में थे. 1925-26 में उन्होंने बलवंत सिंह नाम से अपने क्र क्रांतिकारी जीवन की शुरुआत की और जल्दी ही उसके कई आयाम विकसित कर लिए. अपने दो साल के जेल जीवन का तो उन्होंने पढ़ने और लिखने में ऐसा सदुपयोग किया कि कई लोग उन्हें भारत का लेनिन कहने लगे.

Web Title: Krishna Pratap Singh's blog: Bhagat Singh wanted revolutionary change

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