कृष्ण प्रताप सिंह का ब्लॉग: ‘टू नेशन’ के घोर विरोधी थे मौलाना आजाद

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: November 11, 2019 08:48 AM2019-11-11T08:48:08+5:302019-11-11T08:48:08+5:30

15 अप्रैल, 1946 को उन्होंने कहा कि मुस्लिम लीग की अलग पाकिस्तान की मांग के दुष्परिणाम न सिर्फ भारत को बल्कि खुद मुसलमानों को भी झेलने पड़ेंगे क्योंकि वह उनके लिए ज्यादा परेशानियां पैदा करेगा.

Krishna Pratap Singh blog: Maulana Azad was a staunch opponent of 'Two Nation' | कृष्ण प्रताप सिंह का ब्लॉग: ‘टू नेशन’ के घोर विरोधी थे मौलाना आजाद

स्वतंत्नता सेनानी मौलाना अबुल कलाम आजाद। (फाइल फोटो)

यों तो मौलाना अबुल कलाम आजाद, जिनकी आज एक सौ बत्तीसवीं जयंती है और जिसे परंपरा के अनुसार राष्ट्रीय शिक्षा दिवस के रूप में मनाया जा रहा है, के ढेर सारे परिचय हैं : मुस्लिम विद्वान, कवि, लेखक, पत्नकार, क्रांतिकारी, खिलाफत आंदोलनकारी, महात्मा गांधी के अनुयायी, सत्याग्रही, स्वतंत्नता सेनानी, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सबसे कम उम्र के अध्यक्ष, देश के पहले शिक्षा मंत्नी और ‘भारत रत्न’ वगैरह.

लेकिन आज की तारीख में उनका सबसे बड़ा परिचय यह है कि देश के स्वतंत्नता संघर्ष के नाजुक दौर में जब मुस्लिम लीग के नेता मुहम्मद अली जिन्ना अपना घातक द्विराष्ट्र सिद्धांत ‘टू नेशन थियरी’ लेकर आगे बढ़े और मुसलमानों के लिए अलग पाकिस्तान की मांग करने लगे, तो उन्होंने जिन्ना और उनके विचारों व कवायदों का जैसी दृढ़ता से विरोध किया, वैसा कांग्रेस के अंदर या बाहर के उनके समकालीन किसी और नेता से संभव नहीं हुआ- चाहे वह अल्पसंख्यक समुदाय से रहा हो या बहुसंख्यक.

जानकारों के अनुसार इस सिलिसले में एक समय मौलाना यह तक कहने से नहीं हिचके थे कि उनके लिए राष्ट्र की एकता स्वतंत्नता से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है और वे उसका विभाजन टालने के लिए कुछ और दिनों की गुलामी भी बर्दाश्त कर सकते हैं.

15 अप्रैल, 1946 को उन्होंने कहा कि मुस्लिम लीग की अलग पाकिस्तान की मांग के दुष्परिणाम न सिर्फ भारत को बल्कि खुद मुसलमानों को भी झेलने पड़ेंगे क्योंकि वह उनके लिए ज्यादा परेशानियां पैदा करेगा.

उनकी इस भविष्यवाणी को तो हम 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध के दौर में ही सच हुई देख चुके हैं कि नफरत की नींव पर तैयार हो रहा नया पाकिस्तान तभी तक जिंदा रहेगा, जब तक नफरत जिंदा रहेगी. उन्होंने कहा था, ‘बंटवारे की आग ठंडी पड़ने लगेगी तो यह नया देश भी अलग-अलग टुकड़ों में बंटने लगेगा.’ 1971 में पाकिस्तान का टूटना और बांग्लादेश का अलग नया राष्ट्र बनना उनके इसी कथन की प्रामाणिकता की नजीर था.
 

Web Title: Krishna Pratap Singh blog: Maulana Azad was a staunch opponent of 'Two Nation'

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