पंढरपुर की वारी और वारकरी
By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: July 23, 2018 01:42 IST2018-07-23T01:42:09+5:302018-07-23T01:42:09+5:30
पंढरपुर की वारी, अर्थात् पंढरपुर में विराजमान भगवान विठोबा, जिन्हें विट्ठल भी कहा जाता है, के दर्शन की यात्ना है जो पैदल की जाती है तथा लगभग 22 दिनों में आषाढ़ी एकादशी के दिन पूर्ण होती है।

पंढरपुर की वारी और वारकरी
डॉ. शिवाकांत बाजपेयी
वारी और वारकरी ये दो शब्द सुनते ही मन में अध्यात्म एवं रोमांच का ऐसा ज्वार उमड़ता है कि कदम अपने आप किसी को भी पंढरपुर की वारी का वारकरी बनने को उत्साहित करने लगते हैं। और इसी उत्साह के चलते भगवान विट्ठल के दर्शन के लिए देश के कोने-कोने से पताका-दिंडी लेकर इस तीर्थस्थल पर पदयात्ना कर लोग यहां एकत्रित होते हैं। वैसे तो देश में अनेक यात्नाएं भिन्न-भिन्न भागों में संपन्न होती हैं जिनका हजारों वर्षो का अपना इतिहास है जिन्होंने अलग-अलग भू-भागों को जोड़ने का काम किया है।
पंढरपुर की वारी, अर्थात् पंढरपुर में विराजमान भगवान विठोबा, जिन्हें विट्ठल भी कहा जाता है, के दर्शन की यात्ना है जो पैदल की जाती है तथा लगभग 22 दिनों में आषाढ़ी एकादशी के दिन पूर्ण होती है। इस यात्ना में सम्मिलित होने वाले यात्नी वारकरी कहलाते हैं। भीमा नदी, जिसे चंद्रभागा के नाम से भी जाना जाता है, के तट पर बसा पंढरपुर सोलापुर जिले में स्थित है। आषाढ़ का महीना भगवान विट्ठल के दर्शन के लिए विख्यात है और इस तीर्थस्थल पर पैदल चल कर लोग इकट्ठा होते हैं।
यह यात्ना वस्तुत: एक धार्मिक यात्ना है जो कई स्थानों से प्रारंभ होती है इनमें से अत्यंत महत्वपूर्ण एक यात्ना पुणो के समीप आलंदी से तथा दूसरी देहु से प्रारंभ होती है। इन स्थानों का महत्व इसलिए भी है क्योंकि भक्त लोग आलंदी से महाराष्ट्र के सुप्रसिद्ध संत ज्ञानेश्वर की तथा देहु से संत तुकाराम की पालकी के साथ यात्ना प्रारंभ करते हैं।
और जब यात्ना के 21वें दिन दोनों पालकियों का एक ही स्थान पर संगम होता है और लाखों वारकरी एकत्रित होते हैं तो ऐसे विहंगम दृश्य का केवल अनुमान ही किया जा सकता है जब लाखों लोग एक साथ जय हरि विट्ठला तथा रुख्माई का जय घोष करते हैं। इसके अतिरिक्त भी इस यात्ना में कई धार्मिक मान्यता प्राप्त पालकियां सम्मिलित होती हैं जिनमें पैठण से संत एकनाथ की पालकी तथा शेगांव से गजानन महाराज के साथ ही संत सोपानदेव, संत मुक्ताई, त्र्यंबकेश्वर (नासिक) से संत निवृत्तिनाथ की पालकियों को भी अत्यधिक आदर-सम्मान प्राप्त है।
पंढरपुर की इस यात्ना की विशेषता है, उसकी ‘वारी’। ‘वारी’ अर्थात् ‘लगातार यात्ना करना’। इस यात्ना में प्रतिवर्ष पीढ़ी दर पीढ़ी शामिल होने वाले लोगों को ‘वारकरी’ कहा जाता है। महत्वपूर्ण यह है कि इसमें सम्मिलित होने वाले लोगों का समूह इतना व्यापक और विशाल हो गया कि यह ‘वारकरी संप्रदाय’ कहलाने लगा।
वैसे तो पंढरपुर की वारी तथा वारकरी संप्रदाय की प्राचीनता के संदर्भ में हजारों वर्षों का अनुमान किया जाता है परंतु तेरहवीं शताब्दी से ज्ञात पुंडरीक की कहानी के आलोक में लगभग आठ सौ वर्षो से यह यात्ना अनवरत जारी है। अपने माता-पिता की सेवा में रत पुंडरीक के आग्रह पर भगवान श्री विट्ठल अपने भक्त की दहलीज पर प्रतीक्षा में कमर पर हाथ धरे एक ही ईंट पर आज भी खड़े हैं क्योंकि भक्त ने उन्हें अभी तक बैठने के लिए नहीं कहा। और जब तक भगवान विठोबा खड़े हैं तब तक दिंडी-वारी दर्शनों के लिए आती रहेंगी और पूरा महाराष्ट्र जय हरि विट्ठला व जय रुख्माई के जय घोष से गुंजायमान होता रहेगा।