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पुण्यतिथि विशेषः कस्तूरबा, जिन्होंने चुकाई गांधी के महात्मा बनने की कीमत

By आदित्य द्विवेदी | Updated: February 22, 2018 08:53 IST

Kasturba Gandhi Death Anniversary Special: जो लोग मेरे और बा के संपर्क में आए, उनमें अधिक संख्या ऐसे लोगों की है, जो मेरी अपेक्षा बा पर कई गुना अधिक श्रद्धा रखते हैं।’: महात्मा गांधी

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मोहनदास के महात्मा गांधी बनने की यात्रा में हर पल कस्तूर उनके साथ खड़ी रही हैं। उन्होंने महात्मा गांधी के जीवन के कई उतार चढ़ाव देखे। कहना चाहिए कि मोहनदास के महात्मा गांधी बनने से भारत भले ही कितना संवरा हो लेकिन इसकी सबसे बड़ी कीमत कस्तूरबा ने ही चुकाई। 14 वर्षीय कस्तूर कपाड़िया की शादी अपने से उम्र में 6 माह छोटे मोहनदास से हुई थी। महात्मा गांधी की अहिंसा, सत्याग्रह और स्वदेशी की धुन कस्तूरबा की जान पर बन पड़ी लेकिन वो कभी पीछे नहीं हटी। 22 फरवरी 1944 को कस्तूरबा गांधी की मृत्यु हो गई थी। उनकी पुण्यतिथि के मौके पर हम याद कर रहे हैं उन खास पलों को जिन्होंने कस्तूरबा को महात्मा गांधी से अलग खांचे में रखा- 

- दक्ष‍िण अफ्रीका में अमानवीय हालात में भारतीयों को काम कराने के विरुद्ध आवाज उठाने वाली कस्तूरबा ही थीं। उन्होंने महात्मा गांधी से पहले ही इस इस बात को उठाया था। इस लड़ाई के लिए उन्हें तीन महीने जेल में भी बिताने पड़े।

- साल 1922 में स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ते हहुए महात्मा गांधी जेल चले गए। स्वाधीनता संग्राम की आंच धीमी पड़ने लगी। ऐसे हाल में कस्तूरबा गांधी ने मोर्चा संभाला और महिलाओं को शामिल करने और उनकी भागीदारी बढ़ाने के लिए आंदोलन चलाया।

- कस्तूरबा ने जब पहली बार साल 1888 में बेटे को जन्म दिया तब महात्मा गांधी देश में नहीं थे। वो इंग्लैंड में पढ़ाई कर रहे थे। कस्तूरबा ने अकेले ही अपने बेटे हीरालाल को पालपोस कर बड़ा किया।

- महात्मा गांधी की वजह से कस्तूरबा का बड़ा बेटा हरीलाल उनसे दूर चला गया। पिता-पुत्र में कई बातों पर मतभेद थे। महात्मा गांधी की वजह से हरिलाल का विदेश जाकर पढ़ाई करने का सपना अधूरा रह गया था।

- 22 फरवरी 1944 को दिल का दौरा पड़ने से कस्तूरबा गांधी की मौत हो गई। कहा जाता है कि कस्तूरबा का प्राकृतिक उपचार चाहते थे। अंग्रेजी दवा करने की अनुमति नहीं दी जिस वजह से उनका इलाज नहीं हो सका।

महात्मा गांधी और कस्तूरबा की जिंदगी में ऐसे कई मौके आए जब बा को झुकना पड़ा लेकिन उन्होंने बापू के सिद्धांतों से समझौता नहीं होने दिया। इसी कीमत उन्हें जान तक देकर चुकानी पड़ी। बा की महत्ता से बापू भी भली भांति परिचित थे। तभी तो उन्होंने कहा था कि जो लोग मेरे और बा के संपर्क में आए, उनमें अधिक संख्या ऐसे लोगों की है, जो मेरी अपेक्षा बा पर कई गुना अधिक श्रद्धा रखते हैं।

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