kangana ranaut: कंगना रणावत बन चुकी हैं एक लड़ाकू भगवा योद्धा!

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: August 14, 2024 10:28 AM2024-08-14T10:28:28+5:302024-08-14T10:29:48+5:30

kangana ranaut: व्यक्तित्व अवचेतन के स्तर पर स्वयं को झांसी की रानी से जोड़ता है. लेकिन बॉलीवुड की इस रानी को बलिदान नहीं देना है, बस लड़ना है.

Kangana Ranaut become fighter Saffron warrior blog Prabhu Chawla rahul gandhi pm narendra modi | kangana ranaut: कंगना रणावत बन चुकी हैं एक लड़ाकू भगवा योद्धा!

Kangana

Highlightsनरेंद्र मोदी के दृढ़ व्यक्तित्व से आकर्षित होकर छह साल पहले भाजपा से संबद्ध हुई थीं. हिमाचल प्रदेश के मंडी लोकसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया. पहली बार सांसद बने भाजपा के कई नेताओं से कहीं अधिक मुखर हैं.

प्रभु चावला ब्लॉग

कंगना रणावत का रहस्य यह है कि वे कोई रहस्य नहीं हैं. वे डिजाइनर साड़ी में लिपटीं एक पहेली हैं, जिन्हें सोशल मीडिया में लोकप्रिय उपस्थिति के साथ नए राजनेता से नैतिक पहरेदार बने व्यक्ति के रूप में रहस्यात्मक ढंग से स्वीकार कर लिया गया है. राजनीति में कई स्त्रियां हैं, पर 38 साल की यह अभिनेत्री अलग ही है. अपने आदर्श और विचारधारा के विरोधियों के विरुद्ध उनके तीखे हमले इंगित करते हैं कि एक लड़ाकू भगवा योद्धा का आगमन हो चुका है. उनका व्यक्तित्व अवचेतन के स्तर पर स्वयं को झांसी की रानी से जोड़ता है. लेकिन बॉलीवुड की इस रानी को बलिदान नहीं देना है, बस लड़ना है.

वे अपने आदर्श नरेंद्र मोदी के दृढ़ व्यक्तित्व से आकर्षित होकर छह साल पहले भाजपा से संबद्ध हुई थीं, जिन्होंने उन्हें उनके गृह राज्य हिमाचल प्रदेश के मंडी लोकसभा क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया. उनकी जीत उनके जीवन का रूपक भी है- सिनेमा और पार्टी में वे बाहरी होकर भी सफल रही हैं. वे भले बहुत अधिक नहीं बोलती हैं, पर पहली बार सांसद बने भाजपा के कई नेताओं से कहीं अधिक मुखर हैं.

कंगना को बॉलीवुड के शाही लोग या भाजपा का सांगठनिक पदक्रम भले न स्वीकारें, पर उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. उन्होंने 44 फिल्में की हैं, जिनमें छह सुपरहिट रहीं. उनकी पिछली फिल्म ‘तेजस’ को दर्शकों ने नकार दिया. अब बदली हुई भूमिका में कंगना की महिमा के आधार उनके आदर्श मोदी हैं. कंगना कैसे संसद में बैठे अन्य फिल्मी सितारों से अलग हैं.

 जो केवल पर्दे पर नाटकीय संवाद बोलते हैं? उनकी सफल फिल्में दृढ़ स्त्रियों पर केंद्रित रही हैं, जो पितृसत्ता को परास्त करती हैं. अब वे मोदी के अभिजन-विरोधी अभियान में एक प्रभावी सहयोगी कलाकार की भूमिका में हैं. शेक्सपियर ने लिखा है कि दुनिया एक रंगमंच है और सभी लोग अभिनय करते हैं तथा सबके आने-जाने का समय निश्चित है.

कंगना जानती हैं कि मंच पर पदार्पण कैसे किया जाता है. राहुल गांधी के विरुद्ध दिए गए उनके बयान न केवल राजनीतिक रूप से गलत हैं, बल्कि उनकी भाषा भी ठीक नहीं है. उन्होंने राहुल गांधी के एक अत्यंत आपत्तिजनक मीम को सोशल मीडिया पर साझा करते हुए लिखा- ‘जातिजीवी, जिसे बिना जाति पूछे जाति गणना करनी है.’ वे शाकाहारी हैं, पर विरोधियों का कीमा बना देना चाहती हैं.

इंडिया गठबंधन का पसंदीदा काम मोदी की आलोचना करना है, तो कंगना राहुल गांधी को निशाना बनाकर भाजपा के अघोषित वैचारिक लड़ाके की भूमिका निभा रही हैं. एक बयान में उन्होंने कहा- ‘‘अपनी जात का कुछ अता पता नहीं, नानू मुस्लिम, दादी पारसी, मम्मी क्रिश्चियन और खुद ऐसा लगता है जैसे पास्ता को कढ़ी पत्ते का तड़का लगाकर खिचड़ी बनाने की कोशिश की हो.

इनको सबकी जात पता करनी है.’’ एक दूसरे बयान में कंगना ने कहा- ‘‘राहुल गांधी में कोई आत्मसम्मान नहीं है, कल वे कह रहे थे कि हम शिवजी की बारात हैं और यह चक्रव्यूह है. मुझे लगता है, उनकी जांच होनी चाहिए कि कहीं वे नशे का सेवन तो नहीं कर रहे. होश में कोई व्यक्ति ऐसे बयान नहीं दे सकता.’’ यह बयान ध्यान देने योग्य है क्योंकि अतीत में कंगना नशे की लत छोड़ने के लिए उपचार करा चुकी हैं.

बॉलीवुड के शीर्षस्थ लोगों के लिए उनका तिरस्कार उनकी प्रतिष्ठान-विरोधी सोच का परिचायक है. उन्होंने करण जौहर को ‘भाई-भतीजावाद का ध्वजवाहक’ तथा ‘मूवी माफिया’ का हिस्सा कहा है. एक सिपाही के साथ झगड़े के मामले में साथ नहीं देने के लिए उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री को ट्रोल भी किया. उन्होंने उर्मिला मातोंडकर को ‘सॉफ्ट-पॉर्न स्टार’, सोनम कपूर को ‘माफिया बिम्बो’ और स्वरा भास्कर एवं ऋचा चड्ढा को ‘बी-ग्रेड अभिनेत्री’ कहा. कंगना ने आज की राजनीति के ढंग को समझ लिया है- अनाप-शनाप बोलो और अपनी ओर ध्यान खींचो.

ताकतवर फिल्मी लोगों द्वारा लगातार अपमानित किए जाने के बाद कंगना रणावत ने ए-ग्रेड अभिनेत्री होने का निर्णय लिया. यह आसान नहीं था. उनके पास उन लोगों से अधिक राष्ट्रीय पुरस्कार हैं, जो पार्टियां करते हैं, जहां कंगना को नहीं बुलाया जाता. अपने अंग्रेजी उच्चारण के लिए मजाक बनाए जाने तथा सोशल मीडिया पर राजनीतिक टिप्पणियों और गलतियों के लिए उलाहना दिए जाने के बाद भी कंगना डटी रहीं. उन्होंने अपनी भूमिकाएं चुनीं और अपनी पटकथा लिखी. अभी वे केवल ऐसी भूमिका कर रही हैं, जिससे उन्हें पर्याप्त भगवा ऑस्कर मिल जाए ताकि वे राजनीति में लंबे समय के लिए बनी रह सकें.

राजनीति एक बड़ा बुलडोजर है. कंगना मोदी के दुश्मनों के ध्वंस में जुटी हैं. उन्होंने ममता बनर्जी पर तब तंज कसा, जब उन्होंने बांग्लादेश में अस्थिरता पर बंगालियों से शांति रखने और मोदी के फैसले का समर्थन करने की अपील की. कंगना ने कहा- ‘‘ममता दीदी को भी प्रधानमंत्री की याद आई, आखिरकार उन्होंने पहली बार बंगाल को भारत का हिस्सा माना, सेंटर को सपोर्ट किया.’’

खुले तौर पर भारत की एकमात्र राष्ट्रवादी फिल्म स्टार को मस्तिष्क विहीन कहना गलत पटकथा पढ़ना होगा. उनके नाटकीय व्यवहार के पीछे एक ऐसा व्यक्ति है, जो जानता है कि बहस में किस तरह ध्रुवीकरण किया जाता है. नेताजी सुभाष चंद्र बोस को भारत का प्रथम प्रधानमंत्री कह कर वे सत्ता समर्थकों को आकर्षित कर रही थीं, जो नेहरू-गांधी टीम को पसंद नहीं करते.

कंगना हर मामले, चाहे वह कूटनीति का हो या राजनीति का, में हिंदू आयाम जोड़ देती हैं. जब शेख हसीना भारत आईं तो कंगना ने दावा किया- ‘‘भारत पड़ोस के सभी इस्लामिक गणराज्यों की मूल मातृभूमि है. हमें इस बात का गर्व और खुशी है कि बांग्लादेश की प्रधानमंत्री भारत में अपने को सुरक्षित महसूस कर रही हैं. पर जो लोग भारत में रहते हैं और पूछते हैं कि हिंदू राष्ट्र क्यों, राम राज्य क्यों, उन्हें समझ जाना चाहिए कि क्यों. मुस्लिम देश में कोई भी सुरक्षित नहीं है, मुस्लिम भी नहीं. हम भाग्यशाली हैं कि हम राम राज्य में रहते हैं. जय श्री राम.’’

कंगना अन्य सांसद कलाकारों की तरह अपने नए अवतार को बर्बाद नहीं करना चाहती हैं. हेमा मालिनी, शबाना आजमी और जयललिता आलू से लेकर राजनीति तक हर मामले में नहीं बोलती थीं. कंगना ने अपनी पहचान और गंतव्य को परिभाषित कर लिया है.

पर अगर वे ठोस आधार की जगह केवल बोलने की रणनीति पर चलना चाहती हैं, तो उनके लिए मुश्किल हो सकती है. फिल्मों की तरह राजनीति में भी कंगना अपने संवाद लिख रही हैं, पर उनकी राजनीतिक रसोई में क्या पक रहा है, इसका अनुमान लगाना कठिन है.

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