जींद उपचुनावः हरियाणा के इस महायुद्ध पर क्यों टिकी हैं पूरे देश की निगाहें, जानें चुनावी समीकरण और जीत-हार के राजनीतिक मायने

By बद्री नाथ | Published: January 20, 2019 11:57 AM2019-01-20T11:57:51+5:302019-01-20T11:57:51+5:30

Jind bypolls on 28th January: हरियाणा के दिल यानी जींद में हो रहा उपचुनाव कई मायनों में अहम है। दिलचस्प मुकाबले में सभी पार्टियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। पढ़िए, जींद के राजनीतिक समीकरणों के हालात बयां करता विशेष लेख...

Jind Bye Election Haryana analysis: Jind bypolls equation, candidates and why it is important for India politics, Know details here | जींद उपचुनावः हरियाणा के इस महायुद्ध पर क्यों टिकी हैं पूरे देश की निगाहें, जानें चुनावी समीकरण और जीत-हार के राजनीतिक मायने

जींद उपचुनावः हरियाणा के इस महायुद्ध पर क्यों टिकी हैं पूरे देश की निगाहें, जानें चुनावी समीकरण और जीत-हार के राजनीतिक मायने

हरियाणा के जींद में 28 जनवरी को विधानसभा उपचुनाव होने हैं। आईएनएलडी विधायक हरि चंद मिड्ढा का अगस्त में निधन हो जाने के कारण इस सीट पर उपचुनाव कराना अनिवार्य हो गया था। जींद उपचुनाव में बने वर्तमान माहौल और परिस्थितियों ने विगत वर्षों में हुए दो हाई प्रोफाइल उपचुनावों की याद दिला दी है। पहला उपचुनाव है तमिलनाडु के आरके नगर सीट का और दूसरा उपचुनाव है आंध्र प्रदेश की नांदयाल सीट का। इन दोनों चुनावों में खूब पैसे खर्च किये गए थे। ये दोनों चुनाव देश के सबसे महंगे उपचुनावों में गिने जाते हैं जहां पैसे को पानी की तरह बहाने के साथ जोड़-तोड़, मान मनौव्वल और पाला-बदल का भी खेल भी खूब खेला गया था। 

इस संदर्भ में यह बात दीगर है कि जैसे भूमा नेगी रेड्डी (वाईएसआर विधायक) के निधन के बाद आंध्र प्रदेश के नांदयाल में हुए उपचुनाव में जिस प्रकार भतीजे भूमा ब्रह्मानंद रेड्डी ने सत्ताधारी पार्टी टीडीपी के टिकट पर चुनाव लड़ा था उसी प्रकार अब हरियाणा के जींद में भी दिवंगत विधायक हरि चंद मिड्डा मुख्य विपक्षी दल आईएनएलडी से विधायक थे लेकिन इनके बेटे और राजनीतिक वारिस कृष्ण मिड्डा आईएनएलडी का साथ छोड़कर सत्ताधारी बीजेपी के टिकट से चुनाव मैदान में हैं। जिस प्रकार से जींद में दो परिवारों (मिड्डा और मांगेराम) का वर्चस्व रहा है ठीक उसी प्रकार दो दलीय व्यवस्था वाले आन्ध्र प्रदेश के नांदयाल विधान सभा में शिल्पा और भूमा परिवारों का वर्चस्व रहा है। 

तमिलनाडु की आरके नगर सीट जो कि तमिलनाडु की लोकप्रिय मुख्यमंत्री एआईडीएमके की मुखिया जे.जयललिता की निधन के बाद खाली हुई थी, पर पार्टी के अन्दर बने गुटों के द्वारा खुद को जयललिता का वारिस चुनने का चुनाव भी बताया गया था। एक तरफ जहाँ तमिलनाडु की सत्ता पर काबिज पनीरसेल्वम और पलानीसामी थे दो दूसरी तरफ टीटीवी दिनाकरन। टीटीवी दिनाकरन के इस चुनाव में जीत के बाद देश के मशहूर पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने ट्वीट कर कहा था “पैसा बोलता है “। 

इन दोनों उपचुनावों का जिक्र इसलिए किया है क्योंकि जींद उपचुनाव में भी राजनीतिक दिग्गजों के उतारे जाने के बाद स्थिति कमोबेश वैसी ही बन गई है। इस चुनाव में सत्ताधारी दल की प्रतिष्ठा दांव पर है वहीं विपक्षी दलों के पास स्वयं के दल को हरियाणा का विकल्प बनने का सुनहरा अवसर है। सत्ताधारी दलों द्वारा अपने राज्य में होने वाले उपचुनावों को हर हाल में जीतने की कोशिश और जन प्रतिनिधियों के सत्ता सुख पाने के लालच में हमेशा राजनितिक मर्यादाएं तार-तार होती हैं क्योंकि प्रतिष्ठा के लिए लड़े जा रहे इन चुनावों को कैबिनेट के प्रति अविश्वास और विश्वास के रूप में देखा जाता है। इस अविश्वास का फैसला सदन में न होकर जनता की अदालत में हो रहा होता है। उपचुनाव नतीजों से राजनीतिक माहौल बदलते हैं इसका उदाहरण हम राजस्थान (अजमेर, अलवर लोस व मांडलगढ़ विस उपचुनाव) और मध्य प्रदेश (मुंगावली और कोलारस उपचुनावों) में हार के बाद बीजेपी के खिलाफ और कांग्रेस के पक्ष में बने माहौल से समझ सकते हैं।
 
हरियाणा के महत्वपूर्ण राजनीतिक बदलावों का केंद्र है जींद। यहां आगामी 28 जनवरी को उपचुनाव होने जा रहे हैं। लोकसभा चुनाव से पहले हो रहे जींद विधान सभा के उपचुनाव में हर दलों ने जहाँ अपने तुरुप के एक्के चुनाव मैदान में उतार कर खुद को विकल्प के रूप में प्रस्तुत करने की कवायद में पूरी ताकत से लग गए हैं। वहीं राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव प्रचार के लिए प्रदेश स्तरीय नेताओं की ड्यूटी लगाकर मुकाबले को काफी दिलचस्प बना दिया है। 

जींद की एक रोचक राजनीतिक घटना...

जींद की धरती को राजनितिक महकमे में पवित्र धरती माने जाने के सन्दर्भ में यह वाकया महत्वपूर्ण है कि 1982 विधान सभा चुनाव में चौधरी देवीलाल के पास सबसे ज्यादा विधायकों के समर्थन के बाद भी जब तत्कालीन राज्यपाल गणपतराव देवीजी थाप्से द्वारा सरकार बनाने का मौका देने के बजाए भजनलाल को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिला  दी गई थी। तब उन्होंने अपने खिलाफ हुए इस अन्याय को हरियाणा की जनता के साथ अन्याय बताते हुए जींद की पावन धरती से ही “न्याय युद्ध” की शुरुआत की थी और उसके बाद होने वाले विधान सभा चुनाव में 90 सीटों वाली हरियाणा विधान सभा में 87 सीटें जीतकर पूरे देश के सामने अनोखा रिकार्ड कायम किया था। इस घटना ने जींद को राजनितिक सफलता की शुरुआत के लिए पवित्र बना दिया। इसके बाद तो मानो यह धारणा भी फ़ैल गई कि जींद न्याय दिलाता है और बदलाव भी लाता है।

हरियाणा के जनक चौधरी देवीलाल के 1987 में मिली अपार बहुमत की जीत के बाद से कई बदलाव यहीं से होते देखे गए। समय के साथ-साथ यह धारणा कि “यहाँ से उठे हर बदलाव का असर पूरे हरियाणा में होता है” की मान्यता बलवती होती गई। पिछले चुनाव नतीजों पर गौर करें तो लोकसभा चुनावों में जीत दर्ज करने वाले दल ही विधान सभा चुनावों में भी काफी मजबूत स्थिति में होते हैं। इन्हीं सभी मान्यताओं और पिछले चुनाव नतीजों के मद्देनजर जींद में होने वाले उपचुनाव और भी महत्वपूर्ण हो गए हैं यहाँ सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि आसन्न लोकसभा और अक्टूबर के महीने में होने वाले विधान सभा चुनाव का एजेंडा सेट करने के लिए प्रदेश की सभी दलों ने पूरी ताकत झोंक दी है।

चुनावी मैदान में किसने ठोंकी ताल

जींद सीट पर इंडियन नेशनल लोकदल के टिकट पर पंजाबी समुदाय के नेता हरिचंद मिड्डा दो बार से चुनाव जीत रहे थे। विगत 26 अगस्त को उनकी मृत्यु के बाद खाली हुई सीट पर उपचुनाव हो रहा है। उनकी मृत्यु के बाद इस सीट पर तमाम राजनीतिक उठा-पठक देखने को मिले हैं। पूरी तरह से बदले राजनीतिक परिदृश्य में होने वाले इस चुनाव में उहापोह की स्थिति बनी हुई है। जींद विधान सभा में  पंजाबी समुदाय बनिया वर्ग के खिलाफ वोट करता रहा है। बीजेपी नें दिवंगत विधायक के मरने के बाद उपजी सहानुभूति को अपने पाले में करने के लिए कैबिनेट मंत्री मनीष ग्रोवर की मदद से उनके बेटे कृष्ण मिड्डा को भाजपा में शामिल करवाया और अपना उम्मीदवार भी बनाया है। दुष्यंत चौटाला की नवगठित पार्टी जेजेपी ने अपने सबसे कद्दावर और युवाओं में लोकप्रिय नेता दिग्विजय चौटाला पर दांव लगाया है वही इस लड़ाई में सबसे नीचे प्रतीत होने वाली कांग्रेस ने एकदम अंतिम समय में अपने स्वच्छ छवि वाले कुशल वक्ता और राहुल गाँधी के चहेते और हरियाणा कांग्रेस के सन्दर्भ में गुटनिरपेक्ष नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला को अपना उम्मीदवार बनाकर कांग्रेस को मुख्य मुकाबले में ला खड़ा किया है। 

त्रिकोणीय मुकाबले की बात करने वाली अधिकांश मीडिया इंडियन नेशनल लोक दल को मुकाबले में नहीं गिन रही है। पहली नजर में ऐसा ही लगता है लेकिन सभी पहलुओं पर नजर दौड़ाने पर यह मिथ टूट जाता है और त्रिकोणीय लग रहा मुकाबला चतुष्कोणीय प्रतीत होता है। यह बात सच है कि जेजेपी के बनने से लोकदल का एक हिस्सा दिग्विजय के समर्थन में खड़ा है लेकिन आईएनएलडी नें बसपा से गठबंधन किया है और इसके लिए बसपा के हरियाणा प्रभारी अशोक बहुजन मतदाताओं को लामबंद करने के लिए इनेलो समर्थित क्षेत्रीय नेता ढुल के पक्ष में वोट मांग रहे हैं।  जेजेपी के साथ इनेलो इनेलो के एक बड़े वोट बैंक के जानें के बाद इनेलो को होने वाले वोटों के नुकसान की भरपाई बसपा करती दिख रही है। इस विधान सभा चुनाव लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी ने  नगर परिषद् के पूर्व चैरमैन रहे पूर्व कांग्रेसी नेता विनोद आसरी (इन्होंने कुछ दिन पहले ही कांग्रेस छोड़ एलएसपी ज्वाइन की थी) को चुनाव मैदान में उतारा है। इन्हें पांचवें फैक्टर के रूप में जोकि ब्राहमण और सैनी वोटों का एक बड़ा हिस्सा ले रही है अगर ऐसा होता है तो बीजेपी जाट व नॉन जाट की लड़ाई में पिछड़ सकती है।

क्या कहते हैं जींद के राजनीतिक समीकरण

जाटलैंड की यह जमीन जाटों के लिए अनुर्वर रही है। 1972 के चुनाव के बाद कोई भी जाट नेता यहाँ से चुनाव नहीं जीत सका है। यहाँ से दल सिंह अंतिम जाट विधायक रहे थे, पर इस बार के चुनाव में हरियाणा के तीन मुख्य दलों ने जाट उम्मीदवार को चुनाव में उतारा है। जींद विधानसभा में 1 लाख 72,000 मतदाता हैं जिसमे तकरीबन 56  हजार से अधिक जाट मतदाता हैं। जाट समुदाय के 45 हज़ार मतदाता, OBC वोट 46 हज़ार के करीब, 38 हजार अनुसूचित जाति के वोट, पंजाबी और ब्राह्मण समाज के 15 -15 हजार मतदाता हैं। वहीं बनिया समाज के  11 हजार और सैनी मतदाताओं की तादाद लगभग 8 हजार के आस पास हैं। मुस्लिम समेत अन्य जातियों के करीब 5 हज़ार मतदाता हैं। इन्ही आंकड़ों के आधार पर सभी दलों ने अपनें टिकट का वितरण किया है।

हालांकि कोई भी दल  इस बात को खुलकर मानने को तैयार नहीं है। सारे दल अपने आपको 36 बिरादरी का दल बताते नहीं थकते। इनमें शहरी मतदाता 1 लाख 7 हजार हैं जबकि 62 हजार ग्रामीण मतदाता हैं। इन गावों में 36 गांव और 31 वार्ड, जाट बाहुल्य माने जाते हैं। जींद में कंडेला और माजरा खापों का अस्तित्व है। इन खापों में कंडेला खाप का राजनीतिक महत्व इन लाइनों से समझ सकते हैं , “हरियाणा का इतिहास जींद लिखता है तो जींद का इतिहास कंडेला खाप लिखता है।” इनमें  टेकराम कंडेला यहाँ की कंडेला खाप के मुखिया हैं। इन्हें सुभाष बराला व चौधरी वीरेंद्र सिंह ने हाल ही में बीजेपी में शामिल हुए थे लेकिन टिकट नहीं मिलने के बाद कंडेला नाराज चल रहे हैं। वो आगामी 23 तारीख को अपने रुख का एलान करेंगे और इसी दिन चौधरी ओम प्रकाश चौटाला पैरोल पर जेल से बाहर आने वाले हैं इस दिन जाट वोटों के किसी दल के तरफ जाने के अंदाजा मिल सकेगा। बीजेपी से नाराज चल रहे पूर्व सांसद और जाट बिरादरी से आने वाले सुरेन्द्र बरवाला जो पिछले तीन बार से बीजेपी की टिकट पर चुनाव लड़कर हार रहे थे इस बार इन्हें टिकट न मिलने पर वो काफी नाराज थे। उन्होंने टिकट न मिलने के बाद अपने शक्ति प्रदर्शन के लिए एक कार्यकर्ता मीटिंग भी बुला ली थी लेकिन इन्हें भी बीजेपी के नेता अब मना लिए हैं। ऐसी चर्चाएँ हैं कि बीजेपी से इस सौदेबाजी में सुरेन्द्र बरवाला और टेकराम कंडेला को बीजेपी सरकार इन्हें निगमों आदि का अध्यक्ष पद दे सकती है। 

खट्टर ने विधान सभा में हरिचंद मिड्डा द्वारा उठाये गए मांगों को उनकी मृत्यु के बाद मानकर पहले ही यह संकेत दे दिया था कि जींद में कई चुनावों से जाट प्रत्याशी उतारने वाली बीजेपी इस बार नॉन जाट उमीदवार उतारेगी। कई मायनो में वो सिम्पैथी और सोच पूरी होती नहीं दिख रही। कई विश्लेषकों का यह भी मानना था कि कृष्ण मिड्डा इतने प्रभावशाली नहीं हैं अगर खट्टर प्रचार में उतरते तो पंजाबी समाज के मतदाता बीजेपी की तरफ खुद ब खुद वोट कर देते। दल-बदल करने से जहाँ कृष्ण मिड्डा के पक्ष में मिलने वाली सहानुभूति कम हुई है वहीं जाट आरक्षण न मिलने से नाराज जाट समाज बीजेपी से और नाराज हो गया है। इसे आतंरिक तौर पर विपक्षी दल अपने प्रचार में भुना भी रहे हैं। वैसे बीजेपी की तरफ से सभी को साधने की कोशिशें अब भी जारी हैं।

कांग्रेस का 'सुरजेवाला दांव', लड़ाई में वापसी

चुनाव से पूर्व भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के करीबी और पूर्व विधायक वृजेन्द्र सिंगला के बेटे अंशुल सिंगला और कलायत से निर्दली विधायक जय प्रकाश के बेटे को कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ाने की बात की जा रही थी। इन दोनों उम्मीदवारों को कमजोर और कांग्रेस को इस लड़ाई से बाहर माना जा रहा था पर अंत समय में पार्टी आला कमांड ने जींद के सबसे लोकप्रिय नेता व कांग्रेस के राष्ट्रीय मीडिया इंचार्ज को उतारकर इस चुनाव को कांग्रेस के लिए नाक का सवाल बना दिया। इनके चुनाव मैदान में उतरते ही कांग्रेसी कार्यकर्ताओं में जान आ गई निर्गुट पड़ी कांग्रेस एकजुट दिखने लगी। 

गौरतलब है कि सुरजेवाला नरवाना से विधायक चुने जाते थे लेकिन इस सीट के आरक्षित हो जाने के बाद वे अपने पिता व कांग्रेस के कैबिनेट मंत्री तथा राजीव गाँधी के करीबी रहे शमसेर सिंह सुरजेवाला की कैथल सीट का रुख किया था। सुरजेवाला को कट्टर जाट नेता नहीं माना जाता इसका फायदा और नुकसान दोनों है। फायदा ये कि अन्य जातियों के लोगों का भी समर्थन मिलेगा परन्तु जाट व नॉन जाट की लड़ाई होने पर जाट वोट दूसरे जाट नेताओं के पक्ष में जा सकता है। इसके लिए कांग्रेस भूपिंदर सिंह हुड्डा को चुनाव प्रचार में उतारकर जाटों को आकर्षित करने की रणनीति पर कार्य कर रही है।  

सुरजेवाला ने अपने भाषण शैली और संगठन कौशल से इस लड़ाई काफी दिलचस्प बना दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने भी अपनी पूरी ताकत झोंक दी है इन्होने अपने करीबी अंशुल सिंगला (जींद के पूर्व विधायक बृजेश सिंगला के पुत्र हैं) जो कि टिकट न मिलने के कारण नाराज चल रहे थे का परचा वापस करवाकर मध्य प्रदेश चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के जैसी सफल कूटनीति से कांग्रेस को मजबूत करने का एक सफल कार्य किया है। कांग्रेस के सभी नेता दिन रात एक करके सुरजेवाला के पक्ष में वोट मांग रहे हैं सुरजेवाला को अशोक तंवर और किरण चौधरी का भी भरपूर समर्थन मिल रहा हैं। कांग्रेस मख्य तौर पर आईएनएलडी को घेरने के लिए  चौटाला के समय जींद में किसानो पर हुए गोलीकांड को मुद्दा बना रही है साथ ही साथ खट्टर को घेरने के लिए उनके 154 वायदे का जिक्र कर रही है जो भाजपा ने विधान सभा चुनाव में अपने घोषणापत्र में किये थे। सुरजेवाला मौका मिलने पर मोदी को भी घेरने नहीं चूकते।

नवगठित जेजेपी ने भी लगाया पूरा जोर

अगर चुनाव प्रचार में नवगठित जेजेपी भी पूरा जोर लगा रही है। पार्टी नेता दुष्यंत ने सरकारी बसों में बैठकर प्रचार का अनोखा तरीका अख्तियार किया है। इनकी माँ नैना चौटाला हरी की चुनरी चौपाल के माध्यम से महिलाओं को जोड़ने का अभियान चला रही हैं। दिग्विजय ने जींद को राजधानी बनाने का मुद्दा बनाने का मुद्दा उठाकर जींद के लोगों में खुद को लम्बे समय का नेता बनाने  का वादा कर रहे है। दिग्विजय अपने इस चाल से  रेडू, सुरजेवाला और मिड्डा को अस्थाई नेता के रूप स्थापित करने का मेसेज देनें में सफल हो रहे हैं और इन्हें अच्छा समर्थन मिल रहा है। 

इनेलो से टूटकर बनी जेजेपी के द्वारा दिग्विजय चौटाला को चुनाव में उतारे जाने के बाद ऐसी चर्चा होने लगी थी कि इनेलो अपनी पार्टी के युवा चहरे अर्जुन चौटाला को मैदान में उतारेगी लेकिन अंत समय में कई बार से जिला पंचायत सदस्य चुने जा रहे प्रभावी मानी जानी वाली कंडेला खाप के नेता उमेद सिंह रेडू को मैदान में उतारकर चौका दिया था। इनेलो इन्हें मैदान में उतारकर स्थानीय बनाम बाहरी को मुद्दा बनाकर चुनाव प्रचार कर रही है। गौरतलब है कि इनेलो प्रत्याशी उमेद सिंह रेडु 3 बार से जिला पंचायत सदस्य चुने जा रहे हैं और हर बार इनके जीत का अंतर बढ़ता ही गया है इस बार वो 8,000 मतों से जिला पंचायत का चुनाव जीते हैं।

जींद उपचुनाव का राजनीतिक हासिल

इस चुनाव की सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि जींद की राजनीति की धुरी माने जाने वाले मांगेराम गुप्ता जींद की राजनितिक फिजा से ओझल हो गए हैं। गुटबाजी से ग्रस्त कांग्रेस निर्गुट दिख रही है। विपक्षी दल जहाँ पिछले हरियाणा विधान सभा चुनाव में बीजेपी के द्वारा किये गए 154 वादों पर घेर रहे हैं वहीं बीजेपी अपनी उपलब्धियों के बल पर वोट मांग रही है। बीजेपी का पूरा कैबिनेट चुनाव मैदान में उतर गया है। दूसरे दलों के ज्यादातर नेता और कार्यकर्ता जींद की जमीन पर अपनी जीत की जुगत लगाने की पूरी कोशिश में जुटे हैं। इस उपचुनाव में मुद्दे अब गौड़ हो गए हैं, जोड़ तोड़ की राजनीति चल रही है। यहाँ तक कि जाट आरक्षण का मुद्दा भी नहीं उठ रहा है।

क्यों अहम है जींद उपचुनाव

हरियाणा के दिल यानी जींद में हो रहा उपचुनाव कई मायनों में अहम है। जींद उपचुनाव लोकसभा चुनाव के पहले देश का अंतिम उपचुनाव है। उपचुनाव दर उपचुनाव हारने और बीते महीने 5 राज्यों में हुए विधान सभा चुनावों में 5-0 से बुरी पराजय और 3 अहम् राज्यों में सत्ता गवाने के बाद हरियाणा में हुए निगम चुनावों में मिली जीत ने बीजेपी को ताकत दी थी। इसलिए जींद के इस उपचुनाव को जीतकर बीजेपी जहाँ इसे आसन्न लोकसभा और आगामी हरियाणा विधान सभा चुनाव में भुनाना चाहेगी तो वहीं कांग्रेस बीजेपी को हराकर पूरे देश में बीजेपी के खिलाफ माहौल बनाने का काम करेगी। अगर बात चुनाव नतीजों के बाद हरियाणा के राजनितिक संभावनाओं की हो तो कांग्रेस के जीतने से जहाँ हरियाणा कांग्रेस में  रणदीप सुरजेवाला का कद हुड्डा के समानांतर बढेगा और उन्हें  सीएम पद के रूप में प्रोजेक्ट करने की मांग भी बढ़ेगी। साथ ही साथ हरियाणा को एक अन्य उपचुनाव भी देखना पड़ सकता है क्यों कि सुरजेवाला अभी कैथल से विधायक हैं और हरियाणा विधान सभा का कार्यकाल साढ़े 9 महीने से ज्यादा बचा है।

संविधान का एक टेक्निकल फैक्टर भी...

भारतीय जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 151 के मुताबिक किसी भी खाली सीट पर (मृत्यु, दूसरे सदन के सदस्य चुने जाने पार्टी से निकाले जाने या इस्तीफा देने व दल बदल की वजह से ) 6 महीने के अन्दर चुनाव सम्पन्न हो जाना चाहिए। इस सन्दर्भ में अगर हम संविधान के तकनीकी पहलुओं पर गौर करें तो जाट और प्रभावशाली नेता के रूप में दीपेंदर हूड्डा कांग्रेस के पास अच्छे बिकल्प हो सकते थे क्यूकि दीपेंदर हुड्डा (ये रोहतक से लोस सदस्य हैं और लोकसभा का कार्यकाल 77 दिन ही बचा है ) को प्रत्याशी बनाये जाने की स्थिति में कांग्रेस के जीत के बाद भी  हरियाणा को एक एक्स्ट्रा उपचुनाव में जाने की संभावना से बचा रहता। लेकिन हरियाणा की राजनीति में एक बार फिर से हुड्डा का वर्चस्व कायम होने से तंवर और शैलजा आदि नेता मोर्चा खोल सकते थे, शायद इसी वजह से पूर्व कांग्रेसी नेता और वर्तमान में केंद्र की बीजेपी सरकार में मंत्री चौधरी वीरेंद्र सिंह ने सुरजेवाला को कांग्रेस के द्वारा प्रत्याशी बनाये जाने के राहुल गाँधी के फैसले को सही बताया था। इनके इस बात से ये भी संकेत मिले हैं कि अगर कांग्रेस सुरजेवाला को आगे करती है तो कांग्रेस की गुटबाजी समाप्त की जा सकती है और साथ ही साथ कांग्रेस छोड़कर बीजेपी ज्वाइन कर चुके पूर्व हरियाणा कांग्रेस के नेताओं की घर वापसी का मार्ग भी प्रशस्त होगा। 

वहीं इंडियन नेशनल लोकदल और उससे अलग होकर बनी जेजेपी में से जो पार्टी चुनाव जीतेगी या आगे रहेगी, इनेलो के पारंपरिक मतदाताओं का रुझान आने वाले चुनावों में उसी दल की ओर होगा। पारिवारिक वर्चस्व की लड़ाई में जिस प्रकार देवीलाल के दो पुत्रों ओपी चौटाला और चौधरी रणजीत सिंह में ओपी चौटाला को विरासत मिली थी उसी प्रकार इन नतीजों से चाचा अभय और भतीजे दुष्यंत का राजनीतिक भविष्य तय होगा। अगर बात भाजपा की हो तो सूबे में नॉन जाट और जीटी रोड बेल्ट में एकतरफा जीत दर्ज करने वाली भाजपा के लिए भी नॉन जाट वोटों को सहेजने की कठिन चुनौती है। इस चुनाव में भाजपा के वर्तमान सांसद और लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी के मुखिया राजकुमार सैनी भी भाजपा को  कठिन चुनौती पेश कर रहे हैं अगर इस चुनाव में नान जाट वोट भाजपा से अलग हुआ तो आगामी लोक सभा और विधान सभा चुनावों में हरियाणा के राजनीति में नान जाट वोटो पर बने भाजपा के एकछत्र साम्राज्य पर सैनी का दावा भी मजबूत होगा। बाकी जींद के चुनावी रणभूमि में जोड़-तोड़ और वायदों और आरोपों का कारोबार अभी जारी है। चतुष्कोणीय मुकाबले में शामिल जींद उपचुनाव में जीत उसी पार्टी की होगी जो गावं (60 ,000 मतदाताओं) के साथ-साथ शहरी (1 लाख 10 हजार ) और जाटों (56,000 मतदाताओं) के साथ-साथ नान जाट (1 लाख 14 हजार) मतदाताओं  को जोड़ने में सफल होगा।

* ये लेख में लेखक के निजी विचार व्यक्त किए गए हैं।

English summary :
Assembly By-election to be held in Jind, Haryana on 28 January. Due to the death of Indian National Lok Dal (INLD) MLA Hari Chand Middha in August last, it was compulsory to have a bypolls on this seat. Here is everything you need to know about the Jind bypolls equation, candidates and why it is important for Haryana politics.


Web Title: Jind Bye Election Haryana analysis: Jind bypolls equation, candidates and why it is important for India politics, Know details here

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