जयशंकर पांडेय का ब्लॉग: कोविड-19 के बाद बदला हुआ होगा समाज
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: October 9, 2020 03:17 PM2020-10-09T15:17:55+5:302020-10-09T15:17:55+5:30
कोविड-19 ने हमारे जीवन को बहुत हद तक बदल दिया है. इसका असर आगे भी दिखेगा. धीरे-धीरे हम और आप वास्तविक संसार से हटते हुए एक आभासी विश्व की ओर बढ़ते चले जा रहे हैं.
फिलहाल हम ये कल्पना ही कर सकते हैं कि कोविड-19 के जाने के बाद हमारा सामाजिक स्वरूप कैसा होगा आर्थिक, राजनीतिक, भौतिक, मनोवैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक दृष्टिकोण से.
धीरे-धीरे हम और आप वास्तविक संसार से हटते हुए एक आभासी विश्व की ओर बढ़ते चले जा रहे हैं क्योंकि हमारे वर्तमान जीवन का अधिकांश हिस्सा या तो लैपटॉप की गोद में बीत रहा है या मोबाइल के सान्निध्य में, जो कि आज हमारे व्यक्तित्व का आईना बन चुका है?
हमारा दैनिक व्यापार हो, दवाइयों की खरीदी हो, विद्यालयों-महाविद्यालयों की शिक्षा-दीक्षा हो, कार्यशालाएं हों अथवा सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक अथवा वैज्ञानिक सम्मेलन हों, सभी आज आभासी स्पेस में हो रहे हैं.
जैसे कि आजकल सभी प्रमुख स्थानों, एयरपोर्ट, रेलवे स्टेशन, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स आदि पर सिक्योरिटी स्कैनिंग होती है, वैसे ही भविष्य में वायरल-स्कैनिंग हुआ करेगी और ये अपने सामाजिक जीवन का एक अभिन्न अंग बन जाएगी. फलत: भविष्य में सरकारों को एवं अन्यान्य संस्थाओं को वायरस जैसे सूक्ष्म-जीवाणुओं की मॉनिटरिंग की व्यवस्था के लिए ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे.
जब सूक्ष्म जीवाणुओं का आक्रमण होता है, तो पूरा समाज सहसा एक जैसा दिखाने लगता है, क्योंकि वह समवेत रूप से एक ही पीड़ा से गुजरता है. तब इस बात का कोई महत्व नहीं रहता कि आपके पास कितना पैसा है, धन-संपत्ति है या आप किस ओहदे पर बैठे हुए हैं, क्योंकि इस परिस्थिति में हर व्यक्ति की त्नासदी एक ही होती है. इस त्नासदी से निकलना आज हम सभी का सबसे बड़ा लक्ष्य है.
क्षेत्र चाहे कृषि का हो, उद्योग का हो, वाणिज्य का हो, पर्यावरण एवं वन-संरक्षण का हो, बिना शिक्षा एवं जनजागरण के रोजगार के वो आयाम नहीं खुल पाएंगे, जिनके लिए हम आज जी-तोड़ प्रयास कर रहे हैं. सतत-उत्साह के साथ सही दिशा-निर्देश की भी उतनी ही आवश्यकता है.
इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है कि हम एकजुट होकर काम करना सीखें. दूसरों का मखौल उड़ाने या उनकी टांग खींचने के बजाय हम उनसे सीखें, उनके गुणों से भी और उनकी गलतियों से भी.
आज की असामान्य परिस्थितियों में, जब हमारे लिए यह जरूरी हो गया है कि हम एक निर्धारित शारीरिक दूरी बनाए रखें, तो हमें मानसिक एवं आध्यात्मिक दृष्टिकोण से एक साथ आना होगा, अन्यथा न तो हम सूक्ष्म-जीवाणुओं का सामना कर पाएंगे न उन पथभ्रांत व्यक्तित्वों या परिस्थितियों का, जिन्होंने आज हमें इस त्नासदी और विपदा के सामने ला दिया है.