International Yoga Day: भारत की महान परंपरा और आत्मविकास का सबसे बड़ा माध्यम है योग

By कलराज मिश्र | Published: June 21, 2022 09:12 AM2022-06-21T09:12:50+5:302022-06-21T09:12:50+5:30

योग तन के साथ मन से जुड़ा है. मन यदि स्वस्थ हाे ताे तन अपने आप ही स्वस्थता की ओर अग्रसर होता है. अंतर्ज्ञान में व्यक्ति का अपने भीतर के अज्ञान से साक्षात्कार होता है.

International Yoga Day: Our great tradition of yoga connected with the common people | International Yoga Day: भारत की महान परंपरा और आत्मविकास का सबसे बड़ा माध्यम है योग

भारत की महान परंपरा और आत्मविकास का सबसे बड़ा माध्यम है योग (फाइल फोटो)

योग शब्द संस्कृत की ‘युज’ धातु से बना है. अर्थ है जोड़ना. योग से संबद्ध शास्त्रों में योग काे स्वस्थ जीवन यापन की कला एवं विज्ञान से ही अभिहित किया गया है. हमारे यहां पहले-पहल महर्षि पतंजलि ने विभिन्न ध्यानपारायण अभ्यासों को सुव्यवस्थित कर योग सूत्राें काे संहिताबद्ध किया. वेदाें की भारतीय संस्कृति में जाएंगे ताे वहां भी याेग की परंपरा से साक्षात होंगे. हिरण्यगर्भ ने सृष्टि के आरंभ में योग का उपदेश दिया. पंतजलि, जैमिनी आदि ऋषि-मुनियों ने बाद में इसे सबके लिए सुलभ कराया.

हमारे यहां योग काे आरंभ से ही स्वस्थ तन और स्वस्थ मन के अंतर्गत आदर्श जीवन शैली के रूप में स्वीकार किया गया है. महर्षि अरविंद ने समग्र जीवन-दृष्टि हेतु याेगाभ्यास काे बहुत महत्वपूर्ण बताया है. मैं यह मानता हूं कि योग चिकित्सा नहीं है, योग आत्मविकास का सबसे बड़ा माध्यम है. परमतत्व से साक्षात्कार की विधा के रूप में ही इसे हमारे यहां सदा महत्व मिलता रहा है.

ऐसे दौर में जब भौतिकता की अंधी दौड़ में निरंतर मन भटकता है, मानसिक शांति एवं संताेष के लिए योग सर्वथा उपयोगी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र माेदी की पहल पर संयुक्त राष्ट्र ने भारत की इस महान परंपरा काे विश्वभर के लिए उपयाेगी मानते हुए बाकायदा अंतरराष्ट्रीय याेग दिवस की घाेषणा की. यह हमारी परंपरा और संस्कृति की वैश्विक स्वीकार्यता है.

भारतीय संस्कृति जीवन के उदात्त मूल्यों से जुड़ी है. योग उसी संस्कृति का नाद है. यह वह आदर्श जीवन शैली है, जिसमें अपने लिए ही नहीं, समस्त विश्व के कल्याण के उदात्त विचाराें से मन जुड़ता है. यह सर्वविदित है कि हमारे यहां जाेड़ने में ही सदा विश्वास रहा है, ताेड़ने में नहीं. योग इसी का मूलाधार है.

महर्षि अरविंद ने योग काे बहुत गहरे से व्याख्यायित किया है. उन्हाेंने लिखा है, योग का अर्थ जीवन काे त्यागना नहीं है बल्कि दैवी शक्ति पर विश्वास रखते हुए जीवन की समस्याओं एवं चुनौतियों का साहस से सामना करना है. महर्षि अरविंद की दृष्टि में योग कठिन आसन व प्राणायाम का अभ्यास करना भर ही नहीं है बल्कि ईश्वर के प्रति निष्काम भाव से आत्म समर्पण करना तथा मानसिक शिक्षा द्वारा स्वयं काे दैवी स्वरूप में परिणत करना है.

योग तन के साथ मन से जुड़ा है. मन यदि स्वस्थ हाे ताे तन अपने आप ही स्वस्थता की ओर अग्रसर होता है. अंतर्ज्ञान में व्यक्ति का अपने भीतर के अज्ञान से साक्षात्कार होता है. योग इसमें मदद करता है. मैंने इसे बहुतेरी बार अनुभूत किया है. महर्षि अरविंद ने जीवन में अंतर्ज्ञान काे ही सबसे अधिक महत्व दिया है इसलिए कि इसी से मानवता प्रगति की वर्तमान दशा काे पहुंची है.

यौगिक दिनचर्या से यदि आधुनिक पीढ़ी जुड़ती है, विद्यालयाें और महाविद्यालयाें में इसे अनिवार्य किया जाता है ताे जीवन से जुड़ी बहुत सारी जटिलताओं काे बहुत आसानी से हल किया जा सकता है.

हम सभी इस बात काे जानते हैं कि प्राणशक्ति ही शरीर की सभी क्रियाओं और व्यवस्थाओं काे नियंत्रित करती है. प्राणशक्ति का संचय और उसकी सुव्यवस्था योग से ही संभव है. योग प्राकृतिक रूप में प्राणायाम से जुड़ा है. प्राणायाम ही हमारी आंतरिक ऊर्जा काे जागृत कर उसे स्वस्थ और संतुलित व सक्रिय करता है. योग के बारे में यह कहा जाता है कि यह चित्त की वृत्तियों का निराेध करता है. इसका अर्थ ही यही है कि योग हमारे चित्त से जुड़ी वृत्तियों काे नियंत्रित कर उसे स्वस्थ जीवन के अनुकूल बनाता है.

भस्त्रिका, कपालभाति, त्रिबंध, अनुलाेम-विलाेम, भ्रामरी आदि ऐसे आसान योग हैं, जिन्हें थाेड़े प्रयास से हर काेई साध सकता है. इनकाे यदि नियमित किया जाता है ताे तन ही नहीं मन भी स्वस्थ रहता है. स्वस्थ, सुखी और कल्याणकारी जीवन के लिए योग से जुड़ी यह क्रियाएं इस रूप में भी उपयोगी हैं कि इससे सकारात्मक जीवन काे दिशा मिलती है.

योग का अर्थ ही है अपने भीतर की शक्तियों काे जानना. उन्हें काम में लेना और अंतर्मन से साक्षात्कार करते हुए भीतर की अपनी अनंत शक्तियों काे जागृत करना. स्वामी विवेकानंद ने अपने समय में याेगियाें काे नसीहत दी थी कि उनका आचरण और उन्हें स्वयं ही प्रमाण बनना चाहिए. उनके कहने का तात्पर्य यह था कि योग काे व्यावसायिकता से दूर रखा जाए. इसे चमत्कार से न जाेड़ते हुए मानवता के कल्याण के रूप में देखा जाए. यही इस समय की सबसे बड़ी जरूरत है.

भगवान श्रीकृष्ण ने भगवद्गीता में कहा है, ‘योगः कर्मसु काैशलम्’ अर्थात् किसी भी काम को निपुणता से करना ही योग है. यह बहुत गहरे अर्थ की बात है. इसे समझ लिया ताे भारतीय संस्कृति में समाहित योग से जुड़ी अपनी जीवन शैली काे हम और निकट से समझ सकेंगे. चित्त काे जानना और तदनुरूप जीवन काे अपने अनुकूल करना, यही ताे असली योग है. आइए, योग दिवस की इस शुभ बेला पर हम आदर्श और उदात्त जीवन मूल्यों से जुड़ी हमारी इस महान परंपरा काे आगे बढ़ाते हुए ‘सर्वे भवंतु सुखिन:’ काे जन-मन में व्याप्त करें.

Web Title: International Yoga Day: Our great tradition of yoga connected with the common people

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