प्रवीण दीक्षित का ब्लॉग: पुलिस बल में महिलाओं की बढ़ानी होगी भागीदारी
By प्रवीण दीक्षित | Published: March 8, 2022 11:27 AM2022-03-08T11:27:28+5:302022-03-08T12:35:41+5:30
भारत में आजादी के बाद भी पुलिस पुरुष प्रधान बनी रही. कुछ बदलाव हुए हैं. हालांकि आज भी भर्ती में पुरुषों को वरीयता देना जारी है.
विकसित देशों की तुलना में, भारत सहित विकासशील देशों में रोजगार में महिलाओं का प्रतिशत बहुत कम है. हालांकि हाल ही में इसमें सुधार होना शुरू हो गया है क्योंकि अब ज्यादा महिलाएं उच्च शिक्षा प्राप्त करती हैं और इनमें से कई महिलाएं नौकरी करना पसंद करती हैं.
चूंकि भारत अपनी स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है, यह जानना समीचीन होगा कि पुलिस क्षेत्र में क्या समस्याएं हैं और भारत में पुलिस में महिलाओं का प्रतिशत बढ़ाने के लिए क्या करने की आवश्यकता है. पुलिस सेवा में महिलाओं की उपस्थिति कई कारणों से अनिवार्य है.
आंकड़े मोटे तौर पर बताते हैं कि समाज में लगभग पचास प्रतिशत महिलाएं हैं. इसलिए आमतौर पर पुलिस में भी महिलाओं का प्रतिशत समान होना चाहिए था. इस लेख में स्थिति को सुधारने के लिए सुधारात्मक उपायों के साथ-साथ समस्या की पहचान करने का प्रयास किया गया है.
जब से ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन और फिर ब्रिटिश भारत के तहत आधुनिक पुलिस बल बनाया गया, तब से पुलिस बल को पुरुषों के लिए विशेष क्षेत्र माना जाता है. हालांकि यूनाइटेड किंगडम में ही तस्वीर अलग है और ब्रिटेन में महिलाएं बड़ी संख्या में पुलिस में काम कर रही हैं. भारत के साथ-साथ अन्य उपनिवेशों में ब्रिटिश शासन का उद्देश्य स्थानीय आकांक्षाओं का दमन करना और ब्रिटिश शासन के लाभ के लिए उनको लूटना था.
आजादी मिलने के बाद भी, पहले की नीतियां नहीं बदलीं और भारत में पुलिस पुरुष प्रधान बनी रही. 1972 में पहली बार कुछ चुनिंदा महिलाओं को भारतीय पुलिस सेवा में अधिकारियों के रूप में शामिल किया गया. बाद के कई वर्षो तक ये संख्या दस से भी कम रही और इन महिला अधिकारियों को विभिन्न राज्यों में भेजा गया.
1990 के दशक के बाद, जैसे-जैसे विमानन क्षेत्र का प्रसार हुआ, अपहरण की घटनाओं से बचने के लिए, जो तब दुनिया में विमानन सुरक्षा के लिए एक बड़ा खतरा था, महिला यात्रियों की तलाशी लेने के लिए पुलिस के निचले रैंक में महिलाओं का होना आवश्यक महसूस किया गया. लेकिन इन महिला पुलिस अधिकारियों को पुलिस के महत्वपूर्ण कार्यो को करने से रोका गया और उन्हें पुलिस जांच का प्रशिक्षण भी नहीं दिया गया.
नब्बे के दशक के उत्तरार्ध में, भारत सरकार ने राज्य सरकारों को अपनी नीति से अवगत कराया कि राज्य पुलिस बलों को तैंतीस प्रतिशत महिला पुलिस कर्मियों को समानांतर सामाजिक आरक्षण के रूप में भर्ती करना चाहिए. दिलचस्प बात यह है कि यह सिफारिश महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से महिलाओं के प्रति कल्याणकारी उपाय के रूप में की गई, न कि गृह विभाग की ओर से, जो पुलिस का मूल विभाग है. साथ ही, इस सिफारिश ने राज्यों को यह अनुमति भी दी कि यदि महिलाएं पर्याप्त संख्या में न हों तो पुरुषों द्वारा रिक्तियों को भरा जाए.
इस प्रकार आज भी भर्ती में पुरुषों को वरीयता देना जारी है. हालांकि कानून और व्यवस्था राज्य का विषय होने के कारण, पुलिस में महिलाओं की भर्ती राज्य सरकारों द्वारा नियंत्रित होती है, लेकिन राज्यों में स्थिति बेहद असंतुलित है. कुछ राज्यों में पुलिस बल में महिलाओं की उपस्थिति दस प्रतिशत है और वे इसे और बेहतर बनाने का प्रयास कर रहे हैं; लेकिन कई अन्य राज्यों ने स्थिति को सुधारने के लिए शायद ही कोई प्रयास किया है.
इसके अलावा, उन राज्यों में भी, जहां पुलिस में महिलाओं की संख्या बढ़ रही है, पुलिस थानों में ड्यूटी पर मौजूद महिलाओं के लिए अलग शौचालय, चेंजिंग रूम, रिटायरमेंट / फीडिंग प्लेस या अपने बच्चों की देखभाल के लिए जगह जैसी पर्याप्त सुविधाएं नहीं हैं. इसके अलावा, पुलिस थानों में काम करने का माहौल भी महिलाओं के लिए अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिए अनुकूल नहीं है.
इस पृष्ठभूमि में, यदि स्थिति में सुधार करना है और पुलिस बल में महिलाओं को पर्याप्त संख्या में शामिल करना है, तो यह अनिवार्य है कि कई महिला पुलिस अधिकारियों द्वारा व्यक्त की गई वास्तविक चिंताओं पर प्राथमिकता से ध्यान दिया जाए, जो कि निम्न हैं-
प्रत्येक जिले में महिलाओं के लिए भर्ती पूर्व कोचिंग व्यवस्था होनी चाहिए, जहां अधिकारियों के साथ-साथ निचले रैंकों में भर्ती के लिए विभिन्न शारीरिक और लिखित परीक्षाओं में उनके प्रदर्शन को सुधारने के लिए परीक्षा से कम से कम चार महीने पहले नि:शुल्क प्रशिक्षण उपलब्ध कराया जाए.
अनारक्षित सीटों पर भी भर्ती में महिलाओं को प्रोत्साहित किया जाए. समानांतर आरक्षण के तहत महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों को हर साल विशेष भर्ती अभियान के जरिए भरा जाए.
प्रशिक्षण के दौरान, कई महिलाएं विभिन्न शारीरिक मापदंडों को पूरा करने में असमर्थ होती हैं. इसलिए महिलाओं के लिए मासिक धर्म, गर्भावस्था और प्रसव के बाद की अवधि के दौरान उनकी कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए उपयुक्त संशोधन होना चाहिए. महिला प्रशिक्षकों की संख्या में भी पर्याप्त वृद्धि करने की आवश्यकता है ताकि छेड़छाड़ और भेदभाव के आरोप न लगें.
बार-बार स्थानांतरण और परिवार से अलगाव कई महिलाओं को दूरस्थ स्थानों पर काम करने से रोकता है. अत: उन्हें यथासंभव उनके परिवार के स्थानों पर तैनात करने की व्यवस्था की जानी चाहिए. महिलाओं के लिए सुरक्षित स्थानों पर क्वार्टर उपलब्ध कराए जाएं ताकि उन्हें अपने परिवार की सुरक्षा की कोई चिंता न हो.
छह घंटे काम करने के बाद, महिला पुलिसकर्मियों को घर जाने की अनुमति दी जाए और उन्हें कॉल पर उपलब्ध रहने को कहा जाए. महिलाओं के लिए दो साल में एक बार रिफ्रेशर कोर्स होना चाहिए ताकि जांच में उनके कौशल में सुधार हो और उन्हें सभी अपराधों को हैंडल करने में सक्षम बनाया जा सके.
उनकी शारीरिक आवश्यकताओं के अनुसार विशेष परामर्श सत्र आयोजित किए जाने चाहिए, इसके अलावा उनकी मानसिक व शारीरिक फिटनेस सुनिश्चित करने के लिए योग को अनिवार्य किया जाए.