International Tiger Day: क्यों नहीं रूक रही बाघों की मौतें? इस साल हो चुकी है 74 की मौत

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: July 29, 2022 12:32 PM2022-07-29T12:32:46+5:302022-07-29T12:32:46+5:30

बाघों के शिकार पर अंकुश लगाने के लिए सरकार को गैर-सरकारी संगठनों को साथ लेकर शीघ्र ठोस पहल करनी होगी. स्थानीय लोगों का भी सहयोग बहुत महत्वपूर्ण है.

International Tiger Day: Why are the deaths of tigers not stopping? 74 have died this year | International Tiger Day: क्यों नहीं रूक रही बाघों की मौतें? इस साल हो चुकी है 74 की मौत

International Tiger Day: क्यों नहीं रूक रही बाघों की मौतें? इस साल हो चुकी है 74 की मौत

सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद भारत में बाघों की मौत के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) का कहना है कि उसकी ओर से बाघों की सुरक्षा के लिए कई उपाय किए जा रहे हैं जिनमें गश्त करना और अवैध शिकार के लिए लोगों को गिरफ्तार करना शामिल है. बावजूद, इसके इतनी बड़ी तादाद में बाघों की मौत हुई है. 

राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने हाल ही में अपनी वेबसाइट पर जो आंकड़े प्रकाशित किए हैं, उनके अनुसार, इस साल 15 जुलाई तक देश में कुल 74 बाघों की मौत दर्ज की गई थी, उनमें से अकेले मप्र में 27 मौतें हुईं. बाघों की मौत के मामले में मध्यप्रदेश पहले स्थान पर है, जबकि महाराष्ट्र बाघों की मौत के मामले में दूसरे स्थान पर है. जहां इसी अवधि के दौरान करीब 15 बाघों की मौत हुई है. 

गौरतलब है कि हर साल 29 जुलाई को ‘अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस’ मनाया जाता है. विश्व के बाघों की आबादी का 70 प्रतिशत भारत में है. हम देश में ‘सेव टाइगर’ कैंपेन भी चला रहे हैं, फिर क्या वजह है कि बाघों की मौतें रुक नहीं रही हैं? बाघों का औसत जीवन काल 10-12 वर्ष का होता है और प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र में वृद्धावस्था, रोग, आपस में लड़ाई, बिजली का झटका, डूबना, सड़क और रेल दुर्घटनाओं में घायल होना जैसे कारणों की वजह से बाघों की मौत हो जाती है. 

बाघों के बीच क्षेत्रीय लड़ाई को टाला नहीं जा सकता क्योंकि यह उनके लिए एक प्राकृतिक प्रक्रिया है. लेकिन, चिंता का विषय यह है कि इंसानों और बाघों के बीच संघर्ष लगातार तेज हो रहा है. आबादी के बढ़ते दबाव और पर्यावरण असंतुलन और तेजी से कटते वनों की वजह से बाघों का घर यानी जंगल सिकुड़ते जा रहे हैं. इसके चलते आसपास रहने वाले लोग भी बाघ की चपेट में आ रहे हैं. 

कई मामलों में भोजन की तलाश में बाघ अक्सर जंगल से बाहर निकल कर नजदीक की बस्तियों में पहुंचते रहते हैं. इस दौरान अपनी जान बचाने के लिए लोग कई बार इन जानवरों को मार देते हैं. जानकार वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी को भी बाघों की मौत के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं. 

विशेषज्ञों का कहना है कि बाघों की आबादी भले बढ़ रही हो, उनकी मौतों के मामले भी उसी अनुपात में बढ़ रहे हैं. खाद्य श्रृंखला में बाघ शीर्ष के जीवों में से एक है जिस पर पूरा पारिस्थितिकी तंत्र निर्भर करता है. पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखने के लिए बाघों का संरक्षण बहुत ही आवश्यक है. 

बाघों के मरने का अर्थ यह है कि आहार श्रृंखला में उनसे नीचे के जीव, जैसे हिरण, खरगोश वगैरह और उन्हें जिंदा रखने वाली जंगली वनस्पतियां या तो साफ हो चुकी हैं, या होने वाली हैं. पहले राजा-महाराजा, संपन्न लोग और शिकारी बाघों का शिकार अपनी बहादुरी दिखाने के लिए करते थे लेकिन अभी उनका शिकार तस्करी के लिए किया जाता है. 

विशेषज्ञों के मुताबिक, देश में बाघ आबादी के संरक्षण और उनके सुरक्षित भविष्य के लिए टाइगर रिजर्वों को जोड़ने हेतु आरक्षित बाघ गलियारों का निर्माण या सड़क या रेल परियोजनाओं के लिए भूमिगत मार्गों का निर्माण किया जाना चाहिए. वन्य क्षेत्रों के निकट किसी भी परियोजना की शुरुआत के लिए पर्यावरणीय प्रभाव आकलन के साथ-साथ अन्य पहलुओं की व्यापक जांच की जानी चाहिए. 

बाघों के संरक्षण के प्रयासों में कानूनी प्रावधानों और तकनीकी विशेषज्ञता के साथ स्थानीय लोगों का भी सहयोग बहुत महत्वपूर्ण है. बाघों के शिकार पर अंकुश लगाने के लिए सरकार को गैर-सरकारी संगठनों को साथ लेकर शीघ्र ठोस पहल करनी होगी. ऐसा नहीं होने की स्थिति में उनकी आबादी और मौतों का संतुलन गड़बड़ाने में ज्यादा देरी नहीं लगेगी.

Web Title: International Tiger Day: Why are the deaths of tigers not stopping? 74 have died this year

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