मधुप मोहता का ब्लॉगः भारत-नेपाल सीमा- दो धाराओं की कहानी

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: June 2, 2020 06:28 AM2020-06-02T06:28:52+5:302020-06-02T06:28:52+5:30

नेपालियों का दावा है कि कुंती यांक्ती को काली नदी का स्रोत माना जाना चाहिए, जल विज्ञान के आधार पर यह बात भले ही सही हो लेकिन सार्वजनिक मानस में इसकी कोई स्वीकृति नहीं है और निश्चित रूप से यह बात उन लोगों के दिमाग में भी नहीं थी जिन्होंने सुगौली संधि का मसौदा तैयार किया था.

Indo-Nepal border: Story of two streams, know about Map details, Treaty of Sugauli | मधुप मोहता का ब्लॉगः भारत-नेपाल सीमा- दो धाराओं की कहानी

भारत-नेपाल बॉर्डर, अन्य सीमाओं के विपरीत एक जीवंत गतिशील बॉर्डर है. (फाइल फोटो)

मधुप मोहता

कालापानी के बारे में मीडिया में बहुत कुछ कहा जा रहा है, और नेपाल में भी, इस तथ्य को समझे बिना कि भारत-नेपाल बॉर्डर, अन्य सीमाओं के विपरीत एक जीवंत गतिशील बॉर्डर है. यह सीमा रेखा हर बार बदलती है जब सर्दियों में नदी जमती है, गर्मी में बहना शुरू करती है और मानसून की बाढ़ के कारण अस्त-व्यस्त होती है. बाढ़ जब उतरती है तो 1800 किमी लंबी विषम सीमा पर हजारों एडवर्स पजेशन (प्रतिकूल कब्जे) तैयार हो जाते हैं. प्रत्येक मानसून के बाद ये प्रतिकूल कब्जे अलग-अलग आकार और आयाम के होते हैं. लगभग 60 हजार नदी-नाले हैं जो नेपाल से भारत की दिशा में बहते हैं और सीमा का स्वरूप हर साल प्रत्येक बाढ़ के साथ बदल जाता है. बॉर्डर के पिलर्स मौसम की मार से बच नहीं पाते हैं और सीमाओं पर रहने वाले लोग इसकी परवाह नहीं करते. नदियां और सीमा पर रहने वाले लोग ही इसे तय करते हैं.

पहाड़ी क्षेत्र के नेपाली लोग सर्दियों में नीचे की ओर पलायन करते हैं और भारत के मैदानी इलाकों में बड़ी संख्या में काम करते हैं, अक्सर बिना दस्तावेज के ही. सरकारें आमतौर पर इस तथ्य को जानती हैं और प्रचलित कानून भारत में नेपाली नागरिकों के साथ समान व्यवहार होता है जिसमें उनकी संपत्ति और उसके संरक्षण का अधिकार शामिल है. यही कारण है कि प्रत्येक भारतीय शहरों में नेपालियों के पास काफी अचल संपत्ति है. जाहिर है कि आम नेपाली के जीवन में इस सीमा का कोई वास्तविक अर्थ नहीं है. वे कभी भी इच्छा होने पर भारत आ सकते हैं. 

यह व्यवस्था एकतरफा है. इसलिए कालापानी क्षेत्र में और आसपास के लोगों के लिए इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कालापानी में सीमा कहां है. बुधी और गुंजी की बस्तियां साल में अधिकांश समय जनशून्य रहती हैं. करीब आधी शताब्दी पहले मानसरोवर यात्रा के दौरान वहां कुछ लोग रहते थे, लेकिन अब वहां आमतौर पर कोई नहीं रहता क्योंकि यात्रा खुद केएमवीएन (कुमाऊं मंडल विकास निगम) द्वारा आयोजित की जाती है, जिसमें स्थानीय लोगों की कोई भूमिका नहीं होती.

ऐसे में हमारे पास चर्चा के लिए केवल मानचित्र का विवरण है. सुगौली की संधि में काली नदी का उल्लेख है, न कि शारदा, जिस नाम से इसे भारत में जाना जाता है और महाकाली के नाम से नेपाल में.  काली नदी शब्द का उपयोग नदी के पानी के लिए किया जाता है जो कालापानी के झरने से निकलती है, जिसे पवित्र माना जाता है और जहां एक मंदिर मौजूद है. हर मानसरोवर यात्री कालापानी में रुकता है और इस मंदिर में धर्मार्थ कार्यों के लिए अपनी इच्छा से योगदान देता है. तथ्य यह है कि आम लोग आस्था के चलते कालापानी के झरने को ही सुगौली संधि में उल्लिखित काली नदी का स्रोत मानते हैं.

नेपालियों का दावा है कि कुंती यांक्ती को काली नदी का स्रोत माना जाना चाहिए, जल विज्ञान के आधार पर यह बात भले ही सही हो लेकिन सार्वजनिक मानस में इसकी कोई स्वीकृति नहीं है और निश्चित रूप से यह बात उन लोगों के दिमाग में भी नहीं थी जिन्होंने सुगौली संधि का मसौदा तैयार किया था. यही कारण है कि यहां कोई सीमा स्तंभ नहीं हैं. 1961 के चीनी-नेपाली समझौते में बॉर्डर पिलर नंबर एक, काली और टिंकर के बीच स्थित है, न कि लिम्पियाधुरा में. इसके विपरीत, भारत तिब्बत व्यापार हमेशा लिपुलेख से संचालित होता रहा है, न कि लिम्पियाधुरा से और यह सामान और लोगों के लिए भूमि पारगमन के लिए एक बिंदु के रूप में मान्यता प्राप्त है.

इस प्रचलित प्रथा ने हमेशा भारत-नेपाल के बीच समझ बरकरार रखी है इसलिए और भी क्योंकि भले ही कालापानी मानचित्र पर भारतीय सीमा के भीतर है, नेपालियों को रस्सी के पुल पार करके भारतीय सीमा में आने और संपत्ति बनाने से भी कोई चीज नहीं रोकती है. चूंकि भूमि रिकार्ड को पिथौरागढ़ जिले द्वारा संभाला जाता है, इसलिए भूमि का स्वामित्व (नेपाली नागरिकों के स्वामित्व सहित) उत्तराखंड राज्य द्वारा अभिलिखित किया जाता है और करों की वसूली की जाती है.  यह तथ्य कि मानसरोवर अब नो मैन्स लैंड नहीं है, आज के तिब्बत में बहुत अधिक आर्थिक और सामाजिक संघर्ष का कारण है. नेपाल के वर्तमान राजनीतिक नेतृत्व को इस बात को समझने की जरूरत है, जैसा कि इस क्षेत्र की अब तक की सभी सरकारों ने समझा है, जिसमें ब्रिटिश, तिब्बती और चीनी शामिल हैं, कि ओम पर्वत को हिंदू/जैन/सिख तीर्थयात्रियों से दूर करने का कोई भी प्रस्ताव इसे हल करने के बजाय और अधिक समस्याएं ही पैदा करेगा.

यह बात 1841 में जोरावर सिंह कहलूरिया के अभियानों से ही स्थापित हो गई थी. एडविन टी एटकिंसन द्वारा रिकॉर्ड किए गए हिमालयन गजेटियर्स (अध्याय 5) में 1817 में कुमाऊं हिल्स के बारे में दी गई जानकारी में 1817 के बेंस समझौते की शर्तों का उल्लेख था. इसमें इस बात का उल्लेख था कि कालापानी से निकलने वाली छोटी धारा ही काली नदी का उद्गम है.
(लेखक भारत-नेपाल सीमा निर्धारण के लिए बनी संयुक्त तकनीकी समिति के सदस्य थे.) 

Web Title: Indo-Nepal border: Story of two streams, know about Map details, Treaty of Sugauli

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