जयंतीलाल भंडारी का ब्लॉगः चीन से व्यापार घाटा कम करने की रणनीति
By डॉ जयंती लाल भण्डारी | Published: October 18, 2019 07:25 AM2019-10-18T07:25:42+5:302019-10-18T07:25:42+5:30
वर्ष 2019-20 में भारत-चीन कारोबार का लक्ष्य 95 अरब डॉलर है. चीन इस समय भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साङोदार है. अप्रैल 2019 में चीन के साथ द्विपक्षीय कारोबार में व्यापार घाटे को कम करने के लिए भारत ने 380 उत्पादों की सूची चीन को भेजी है, जिसके तहत चीन को निर्यात बढ़ता जा रहा है.
इस समय चीन की अर्थव्यवस्था अमेरिका से बढ़ते ट्रेड वार और बढ़ती मंदी के कारण सबसे बुरे दौर से गुजर रही है और चीन वैश्विक व्यापार बढ़ाने के लिए हरसंभव कोशिश कर रहा है. ऐसे में 12 अक्तूबर 2019 को चेन्नई के मामल्लापुरम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग दूसरी अनौपचारिक शिखर वार्ता में सकारात्मक कारोबार संकेतों के साथ आगे बढ़े हैं.
दोनों देशों के बीच व्यापार घाटा, निवेश और सेवाओं से संबंधित मुद्दों को सुलझाने के लिए मंत्रिस्तरीय व्यवस्था का गठन सुनिश्चित किया गया. इसके साथ-साथ चीन ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साङोदारी (आरसीईपी) मुक्त व्यापार समझौते को लेकर भारत की चिंताओं के निराकरण हेतु सहमति दी.
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2019-20 में भारत-चीन कारोबार का लक्ष्य 95 अरब डॉलर है. चीन इस समय भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साङोदार है. अप्रैल 2019 में चीन के साथ द्विपक्षीय कारोबार में व्यापार घाटे को कम करने के लिए भारत ने 380 उत्पादों की सूची चीन को भेजी है, जिसके तहत चीन को निर्यात बढ़ता जा रहा है. इनमें मुख्य रूप से बागवानी, वस्त्र, रसायन और औषधि क्षेत्र के उत्पाद शामिल हैं.
पिछले दिनों भारत में चीन के राजदूत ने कहा है कि अमेरिका के साथ चीन के बढ़ते हुए ट्रेड वार के बीच चीन विदेश व्यापार के लिए भारत की जरूरत अनुभव कर रहा है और भारत-चीन व्यापार असंतुलन कम करने के लिए चीन के द्वारा ध्यान दिया जा रहा है.
ऐसे में अब मामल्लापुरम वार्ता के बाद निश्चित रूप से चालू वित्तीय वर्ष 2019-20 में भारत-चीन कारोबार बढ़ेगा तथा भारत के व्यापार असंतुलन में और अधिक कमी आएगी. चूंकि अमेरिका के साथ चीन का ट्रेड वार लगातार बढ़ता जा रहा है, ऐसे में चीन कारोबार बढ़ाने के लिए भारत की आवश्यकता और अधिक अनुभव कर रहा है.
वर्ष 2018 की शुरुआत से चीन के अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध के कारण चीन में 35 लाख से अधिक लोगों का रोजगार छिन गया है और चीन की कारोबार व आपूर्ति श्रृंखला टूट रही है. चीन में तेजी से मंदी का परिदृश्य बढ़ता जा रहा है. हाल ही में चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो (एनबीएस) ने कहा है कि चीन में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर वर्ष 2018 में घटकर 6.6 फीसदी पर आ गई है.
यह 27 साल में सबसे कम है. अब चीन के लिए निकट भविष्य में मंदी घटाना और विकास दर बढ़ाना कठिन काम है. ऐसे परिदृश्य में चीन - भारत के साथ कारोबार बढ़ाने की अहमियत को समझ रहा है. भारत के पास तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था और शानदार बाजार है.
इसमें कोई दो मत नहीं है कि भारत और चीन दोनों को कारोबार के लिए एक दूसरे की जरूरत है. ये दोनों देश अपने-अपने आर्थिक संसाधनों और मानव संसाधनों की बदौलत दुनिया में चमकते हुए दिखाई दे रहे हैं. चीन दुनिया का कारखाना बना हुआ है. चीन दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक देश है. सॉफ्टवेयर विकास के क्षेत्र में भारत और हार्डवेयर विकास के क्षेत्र में चीन दुनिया में सबसे आगे है, इसलिए दोनों देश अगर मिलकर काम करते हैं तो वे दुनिया में शीर्ष पर रहेंगे.
12 अक्तूबर को मोदी और जिनपिंग की दूसरी अनौपचारिक शिखर वार्ता के बाद यह संभावना उभरी है कि अगर भारत और चीन एक-दूसरे को साझा हित के भागीदार बनाएं तो दोनों देश मिलकर दुनिया की नई आर्थिक शक्ति के रूप में दिखाई दे सकते हैं. अमेरिकी राष्ट्रीय खुफिया निदेशालय की ग्लोबल ट्रेंड्स-2025 रिपोर्ट में बहुध्रुवीय दुनिया में भारत और चीन की पहचान प्रमुख नई आर्थिक शक्तियों के तौर पर की गई है.
यदि हम चाहते हैं कि भारत चीन के साथ व्यापार असंतुलन में तेजी से कमी लाए और चीन को अपना निर्यात बढ़ाए तो हमें कई बातों पर ध्यान देना होगा. हमें आर्थिक सुधारों को गतिशील करना होगा. देश में जीएसटी से संबंधित कई उलझनों का निराकरण किया जाना होगा. अर्थव्यवस्था को डिजिटल करने की रफ्तार तेज करनी होगी, सरकार को निर्यात प्रोत्साहन के लिए और अधिक कारगर कदम उठाने होंगे.
सरकार के द्वारा भारतीय उत्पादों को प्रतिस्पर्धी बनाने वाले सूक्ष्म आर्थिक सुधारों को लागू किया जाना होगा. मैन्युफैरिंग सेक्टर की अहम भूमिका बनाई जानी होगी. मेक इन इंडिया योजना को गतिशील करना होगा. उन ढांचागत सुधारों पर भी जोर दिया जाना होगा, जिसमें निर्यातोन्मुखी विनिर्माण क्षेत्र को गति मिल सके.
हमें अपनी बुनियादी संरचना में व्याप्त अकुशलता एवं भ्रष्टाचार पर नियंत्रण कर अपने प्रोडक्ट की उत्पादन लागत कम करनी होगी. भारतीय उद्योगों को चीन के मुकाबले में खड़ा करने के लिए उद्योगों को नए अविष्कारों, खोज से परिचित कराने के मद्देनजर सीएसआईआर, डीआरडीओ और इसरो जैसे शीर्ष संस्थानों को महत्वपूर्ण बनाना होगा.
हम आशा करें कि 12 अक्तूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच मामल्लापुरम में जो दूसरी अनौपचारिक शिखर वार्ता हुई है, उससे भारत-चीन कारोबार बढ़ने और भारत का व्यापार असंतुलन कम होने की सुकूनभरी संभावनाएं साकार होते हुए दिखाई दें.