वेदप्रताप वैदिक का ब्लॉग: भारत से छुट्टियों की होनी चाहिए छुट्टी
By वेद प्रताप वैदिक | Published: January 8, 2022 02:32 PM2022-01-08T14:32:54+5:302022-01-10T08:20:25+5:30
दुनिया के समृद्ध और विकसित राष्ट्रों की तुलना भारत से करें तो हमें मालूम पड़ेगा कि वे राष्ट्र वैतनिक छुट्टियां कम से कम देते हैं। अमेरिका में 11, ब्रिटेन में 8, चीन में 7, यूरोप में 8 या 10, जापान में 16, मलेशिया में 19 और ईरान में 27 और नार्वे में सिर्फ 2 छुट्टियां होती हैं।
भारत दुनिया का शायद एकमात्र देश है, जिसकी जनता साल में सबसे ज्यादा छुट्टियां मनाती है। मुंबई उच्च न्यायालय ने अपने ताजा फैसले में कहा है कि सार्वजनिक अवकाश कोई मौलिक अधिकार नहीं है। उसने उस याचिका को रद्द कर दिया है, जिसमें दादरा-नगर हवेली में 2 अगस्त की छुट्टी की मांग की गई थी। इसी दिन 1954 में पुर्तगाली शासन से वह मुक्त हुआ था।
आजकल हमारे सरकारी दफ्तर शनिवार और रविवार को बंद होते हैं यानी साल में 104 दिन की छुट्टी एकदम पक्की है। 24 छुट्टियां धार्मिक त्यौहारों की होती हैं। लगभग 30 छुट्टियों के कुछ और बहाने बन जाते हैं। इसके अलावा बाकायदा वैतनिक छुट्टियां 30 दिन और बीमारी की भी 15 दिन होती हैं।
इनके साथ आकस्मिक छुट्टियां भी होती हैं। यानी कुल मिलाकर साल भर में हमारे सरकारी कर्मचारी लगभग 200 दिन की छुट्टी ले सकते हैं। अर्थात उन्हें तब भी वेतन मिलता है जबकि वे कोई काम नहीं करते। हम जरा दुनिया के समृद्ध और विकसित राष्ट्रों की तुलना भारत से करें तो हमें मालूम पड़ेगा कि वे राष्ट्र वैतनिक छुट्टियां कम से कम देते हैं।
अमेरिका में 11, ब्रिटेन में 8, चीन में 7, यूरोप में 8 या 10, जापान में 16, मलेशिया में 19 और ईरान में 27 और नार्वे में सिर्फ 2 छुट्टियां
होती हैं। जिन राष्ट्रों में कर्मचारियों की तनख्वाह ज्यादा होती है, उनकी सरकारें और कंपनियां उन्हें छुट्टियां भी कम देती हैं लेकिन जिन राष्ट्रों में तनख्वाह कम होती हैं, उनमें ज्यादा छुट्टियां होती हैं।
हमारे देश में ज्यादातर कर्मचारी दफ्तरों में पूरे समय डटकर काम भी नहीं करते, 7-8 घंटों में से वे अगर 4-5 घंटे भी रोज डटकर काम करें तो हमारा भारत दूनी रफ्तार से आगे बढ़ सकता है। जो एक बार सरकारी नौकरी पा गया, उसे जीवन भर का आराम मिल गया। यदि देश में छुट्टियां आधी कर दी जाएं और हर नौकरी के चलते रहने की हर पांच साल में समीक्षा होती रहे तो यह रेंगता हुआ भारत दौड़ने लगेगा।
भारत अपने आप को धर्मनिरपेक्ष कहता है लेकिन नेता लोग थोक वोट के लालच में हर धर्म और संप्रदाय की खुशामद में छुट्टियां करने पर उतारू हो जाते हैं। त्यौहारों के लिए आधे दिन की छुट्टी काफी क्यों नहीं होनी चाहिए? अपने कर्तव्य-कर्म से बड़ी पूजा कोई नहीं है। इसका रहस्य हम सीखना चाहें तो अपने दुकानदारों से सीखें, जो चौबीसों घंटे अपने ग्राहकों की सेवा के लिए तैयार रहते हैं।
अपने स्वतंत्रता-दिवस, गणतंत्र दिवस और गांधी जयंती जैसे दिनों पर हमें एक-एक घंटा अतिरिक्त कार्य क्यों नहीं करना चाहिए? अपनी कार्यनिष्ठा इतनी गहन होनी चाहिए कि अपने घर में हर्ष या शोक की बड़ी से बड़ी घटना होने पर भी हमारा रोजमर्रा का कर्तव्य-निर्वाह किसी न किसी रूप में होता रहे।
अपने छुट्टीप्रेमी भारत के किसी नेता में इतना साहस नहीं है कि वह छुट्टियों के इस सरकारी ढर्रे को ढहा सके। इन छुट्टियों की छुट्टी तभी हो सकती है, जब कोई जन-आंदोलन चले।