ब्लॉग: चीन कर रहा है अपनी सर्जरी, भारत को भी सीख लेनी चाहिए
By भरत झुनझुनवाला | Published: November 8, 2021 12:07 PM2021-11-08T12:07:08+5:302021-11-08T12:13:39+5:30
भारत को चीन के द्वारा लिए गए कदमों से सीख लेनी चाहिए. पहला यह कि अपने देश में थर्मल बिजली संयंत्रों और जल विद्युत परियोजनाओं द्वारा भारी मात्रा में प्रदूषण किया जा रहा है जिस पर रोक लगाने से हमारी अर्थव्यवस्था कुशल होगी. बिजली के क्षेत्र में भारत को चीन की तरह अपनी सर्जरी करनी होगी अन्यथा हम चीन से पिछड़ जाएंगे.
चीन इस समय तीन संकटों से जूझ रहा है. पहला संकट बेल्ट एंड रोड परियोजना या बीआरआई का है. बीते दो दशकों में चीन ने संपूर्ण विश्व को माल निर्यात किया है और चीन को भारी मात्रा में आय हुई है. इस रकम का निवेश करना जरूरी था. चीन ने इसका उपयोग बीआरआई में किया है.
इससे चीन के निर्यातकों को और आसानी होगी क्योंकि वे माल दूसरे देशों में आसानी से पहुंचा सकेंगे. साथ-साथ चीन की निर्माण कंपनियों को भी बड़े ठेके मिलेंगे. लेकिन दूसरे देशों पर बीआरआई का प्रभाव संदिग्ध है.
विश्व बैंक के अनुसार चीन से यूरोप को जाने वाली बीआरआई पर कजाकिस्तान और पोलैंड में निर्माण की गतिविधियां बढ़ी हैं. लेकिन बीआरआई में भ्रष्टाचार व्याप्त है. चीन की नौकरशाही द्वारा परियोजनाओं की लागत को बढ़ा-चढ़ाकर बताया जाता है और पर्याप्त रकम का रिसाव कर लिया जाता है.
इस दृष्टि से मलेशिया के प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद ने बीआरआई को ‘नया उपनिवेशवाद’ बताया है. म्यांमार ने कुछ एक बंदरगाह परियोजना को निरस्त किया है. अन्य तमाम देशों ने परियोजनाओं के आकार में बदलाव की मांग की है इसलिए बीआरआई के दो परस्पर विरोधी संकेत उपलब्ध हैं.
एक तरफ कजाकिस्तान और पोलैंड जैसे देशों को लाभ हो रहा है जबकि दूसरी तरफ मलेशिया जैसे देश इसका विरोध कर रहे हैं. इन दोनों परस्पर विरोधी संकेतों के बीच चीन को बीआरआई की सर्जरी करनी होगी जिसमें कि केवल कुशल परियोजनाओं को लागू किया जाए और परियोजनाओं में रिसाव पर नियंत्रण किया जाए. फिलहाल चीन यह सर्जरी नहीं कर रहा है इसलिए बीआरआई पर संकट विद्यमान रहने की संभावना है.
चीन का दूसरा संकट एवरग्रैंड नाम की कंस्ट्रक्शन कंपनी और दूसरी इसी तरह की विशाल कंपनियों का है. इन कंपनियों ने भारी मात्रा में लोन लिए थे. एवरग्रैंड ने भारी संख्या में बहुमंजिले रिहायशी मकान बनाए लेकिन कोविड संकट के कारण इनकी बिक्री नहीं हो सकी. फलस्वरूप यह कंपनी लोन से दब गई.
इस तरह की कंपनियों के डूबने से संपूर्ण अर्थव्यवस्था में संकट पैदा न हो इसलिए शी जिनपिंग ने नियम बनाया कि किसी भी कंपनी को लोन तब ही दिए जाएंगे जब वे तीन शर्तो को पूरा करेंगी.
पहली शर्त थी कि कंपनी की कुल संपत्ति, कंपनी के द्वारा लिए गए कुल लोन से अधिक होनी चाहिए. दूसरी शर्त थी कंपनी के पास अल्प समय में लोन के रिपेमेंट को जितनी रकम की जरूरत है, उससे अधिक नगद उपलब्ध होना चाहिए. तीसरी शर्त थी कि कंपनी के अपनी पूंजी या शेयर कैपिटल की तुलना में लिया गया लोन कम होना चाहिए.
जिन कंपनियों द्वारा इन तीनों शर्तो को पूरा किया जाता था केवल उन्हीं को बैंक लोन दे सकते थे. एवरग्रैंड इन तीनों ही शर्तो को पूरा नहीं कर सकी. फलस्वरूप एवरग्रैंड को नए लोन नहीं मिल सके.
चीन सरकार ने सार्वजनिक इकाइयों से कहा कि एवरग्रैंड की संपत्तियों को वे कम दाम पर खरीद सकती हैं. यदि सरकार इस प्रकार का सख्त कदम नहीं उठाती तो बैंक इस कंपनी को और लोन देते रहते और आने वाले समय में यह बड़े संकट के रूप में संपूर्ण चीन की अर्थव्यवस्था को डूबा सकता था. इसलिए चीन द्वारा अपनी वित्तीय अर्थव्यवस्था की सर्जरी की गई है ऐसा मानना चाहिए.
वर्तमान में चीन के सामने तीसरा संकट बिजली का है. इसका कारण यह है कि शी जिनपिंग ने प्रदूषण करने वाले थर्मल संयंत्रों द्वारा वायु प्रदूषण किए जाने पर रोक लगाई है. कोयले से बिजली उत्पादन करने वाले कई संयंत्न बंद हो गए हैं और बिजली का संकट पैदा हो गया है. यह भी चीन के लिए शुभ संकेत है. प्रदूषण कम होने से अर्थव्यवस्था मूलत: सुदृढ़ होती है.
चीन के तीन संकटों में एवरग्रैंड का वित्तीय संकट और पॉवर कट का संकट इसलिए पैदा हुआ है कि चीन स्वयं अपनी सर्जरी कर रहा है. बीआरआई की सर्जरी फिलहाल चीन करता नहीं दिख रहा है लेकिन यदि इसकी भी सर्जरी करेगा तो चीन उस संकट से भी सुदृढ़ निकलेगा.
इस परिस्थिति में भारत को चीन के द्वारा लिए गए कदमों से सीख लेनी चाहिए. पहला यह कि अपने देश में थर्मल बिजली संयंत्रों और जल विद्युत परियोजनाओं द्वारा भारी मात्रा में प्रदूषण किया जा रहा है जिस पर रोक लगाने से हमारी अर्थव्यवस्था कुशल होगी.
भारत सरकार फिलहाल सस्ती बिजली के लिए प्रदूषण को छूट दे रही है जो कि अर्थव्यवस्था को डुबाएगी. फिर भी भारत सरकार ने वित्तीय अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए सही कदम उठाए हैं.
बड़ी संकटग्रस्त कमजोर कंपनियों को भारतीय बैंकों से लोन मिलना कम हो गए हैं और आने वाले समय में वित्तीय संकट भारत पर उत्पन्न नहीं होगा. लेकिन बिजली के क्षेत्र में भारत को चीन की तरह अपनी सर्जरी करनी होगी अन्यथा हम चीन से पिछड़ जाएंगे.