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ब्लॉग: 75वें स्वाधीनता दिवस पर जश्न के साथ चिंतन भी जरूरी!

By विवेकानंद शांडिल | Updated: August 15, 2021 14:31 IST

Independence Day 2021: ये सवाल आज भी खड़ा है कि जिस आजादी के लिए हमारे पूर्वजों ने बलिदान दिये, अपना सर्वस्व न्यौछावर किया। क्या हम उनके मकसद को आज 75 साल में भी पूरा कर पाये हैं?

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75वां स्वाधीनता दिवस सभी भारतवासी धूमधाम से मना रहे हैं। आजादी का ये जश्न हम सभी के लिए किसी त्यौहार से कम नहीं है। ये आजादी हमारे लिए आसान नहीं थी। कई दशकों के लगातार संघर्ष के बाद मिली है। इसके लिए हमारी कई पीढ़ियों ने बलिदान दिये, त्याग तपस्या और कठिन तप किये और तब जाकर ये आजादी हमें नसीब हुई। सही मायने में कहा जाय तो ये आजादी हमें खून से मिली है। इसलिये ये दिन हमारे लिए खास है, वाकई में किसी उत्सव से कम नहीं।

लेकिन ,सवाल है कि जिस आजादी के लिए हमारे पूर्वजों ने बलिदान दिये, अपना सर्वस्व न्यौछावर किया। क्या हम उनके मकसद को आज 75 साल में भी पूरा कर पाये हैं?

जवाब में हां कहना तो सरासर बेईमानी होगी। समस्याओं से पीछा छुड़ाना होगा। दरअसल, आजादी के बाद हम आर्थिक रूप से तो काफी उन्नति किये। एक समय था जब भारत आर्थिक तंगी से जूझ रहा था तब भारत सोना गिरवी रखने को मजबूर था। आर्थिक रूप से बेहद कमजोर था। आज हम अतीत की उन चुनौतियों को पार कर, आर्थिक रूप से सशक्त होने में काफी हद तक सफल तो जरूर हुए है। 

विश्व की मांग के अनुकूल साइंस और टेक्नोलॉजी की दिशा में भी हम धीरे - धीरे आगे बढ़ रहे हैं लेकिन सामाजिक, शैक्षणिक व आध्यात्मिक - सांस्कृतिक उत्थान में पिछड़ गए है। पिछड़ गए इसलिए क्योंकि इस दिशा में हमारी कोई प्राथमिकता ही नहीं। विकास का दायरा सिर्फ आर्थिक, साइंस व टेक्नोलॉजी तक ही सीमित रहा। 

एक देश विकसित तभी होता है जब वो सर्वांगीण विकास करने में सफल हो पाता है यानि सिर्फ आर्थिक, साइंस - टेक्नोलॉजी में ही विकास नहीं सामाजिक, शैक्षणिक व आध्यात्मिक - सांस्कृतिक के क्षेत्र में भी विकास करने की जरूरत है।

सुस्त रफ्तार से सामाजिक सुधार!

हां, बीते कुछ सालों में कुछ ऐसे बड़े और कड़े फैसले लिए गए हैं जो सामाजिक विकास की दिशा में बड़ी पहल है। मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक की बेड़ियों से आजादी मिली। ये अन्याय दशकों से देश की मुस्लिम बहन - बेटियां सहती आईं थी। 

दरअसल, तीन तलाक के मसले पर 23 अप्रैल 1985 को ही देश की सर्वोच्च अदालत ने मुस्लिम महिला शाहबानो के केस में अपना फैसला सुना दिया था और भारत के न्यायिक इतिहास में शाहबानो का नाम हमेशा के लिए दर्ज हो गया था। 

इसके बाद लेकिन वोट बैंक की राजनीति के दबाव में आकर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने सर्वोच्च अदालत के फैसले को पलट दिया। वरना, तीन तलाक से देश की मुस्लिम बहन - बेटियों को आजादी साल 2019 के बजाय 1985 में ही मिल गई होती।

बेटियों की भागीदारी बढ़ाने में देरी से बढ़े कदम!

पुरूष प्रधान कहे जाने वाले भारत में आज बेटियां दुनिया में भारत के झंडे को बुलंद कर रही है। खेल का मैदान हो या युद्ध का बेटियों की भागीदारी सुनिश्चित हो रही है। अब बेटियां जल, थल और नभ तीनों सेनाओं में अपनी भूमिका अदा कर रही है। तो मेडिकल और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में भी अपना नाम रोशन कर रही है। हालांकि ये आंकड़े कम है। पुरूषों की तुलना में काफी कम।

हां ये जरूर है कि कल तक जिन महिलाओं को हम रसोई के बाहर देखना नहीं चाहते थे, घर के काम काज के अलावा उनके योगदान का आंकलन नहीं पाते थे आज हम उनकी ताकत को समझने लगे हैं।

गरीबी - अशिक्षा से अभी भी नहीं मिली मुक्ति!

विकास की नींव शिक्षा है। आजादी के 75 साल हुए लेकिन आज भी देश में गरीबी है - अशिक्षा है। इसे दूर करने की दिशा में हमारे कदम तो बढ़े है लेकिन रफ्तार धीमी मालूम पड़ती है। महंगी शिक्षा भी अशिक्षा का बड़ा कारण है जिससे पीड़ित गरीब वर्ग का तबका है। हालांकि दिनों - दिन मंहगी होती जा रही शिक्षा का असर मिडिल क्लास पर भी पड़ने लगा है।

आधात्मिक - सांस्कृतिक विकास को किया दरकिनार!

भारत के आध्यात्म और सभ्यता का इतिहास हजारों साल पुराना है। भारत का अध्यात्म और सभ्यता ने विश्व भर में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अपना प्रभाव छोड़ा है।

योग - हमें निरोग्य जीवनयापन देता है। आत्मज्ञान का दर्शन कराता है तो वहीं हमारी सभ्यता में ''वसुधैव कुटुंबकम'' और सर्वे संतु: निरामया। 

खैर, दशकों बाद पुन: अब योग की ताकत को दुनिया ने फिर से पहचाना है। 21 जून को पूरी दुनिया योग दिवस के रूप में मनाने लगी है। लेकिन वहीं दूसरी ओर हम अपनी सभ्यता के विपरीत नजर आते हैं। पूरे विश्व को एक परिवार मानने वाला भारत अपनों में ही कभी कभी विभाजित नजर आता है। कभी क्षेत्रीय अलगाववाद पर कभी जातीय आधार पर।

हमें अगर वाकई में अपने आजादी के नायकों को सच्ची श्रद्धांजली देना चाहते हैं तो हमें इन अलगाववाद - भेदभाव से आगे बढ़ना होगा। उन्होंने एक भारत - श्रेष्ठ भारत की परिकल्पना की थी।

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