ब्लॉग: इंडिया गठबंधन में अब कितना दम?

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: December 13, 2023 09:15 AM2023-12-13T09:15:35+5:302023-12-13T09:15:45+5:30

नेताओं की ओर से लगातार हो रही बयानबाजी ने भी गठबंधन के भविष्य पर सवालिया निशान लगाने का काम किया है। इसके अलावा सीटों का बंटवारा इंडिया गठबंधन के लिए सबसे बड़ा मसला है।

How much strength does the India alliance have now | ब्लॉग: इंडिया गठबंधन में अब कितना दम?

फाइल फोटो

तीन राज्यों में भाजपा की जीत के तत्काल बाद केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने राहुल गांधी का दस सेकेंड का एक वीडियो सोशल मीडिया पर जारी किया।

वह वीडियो एक चुनावी सभा का है जिसमें राहुल गांधी कांग्रेस के बारे में बात करते हुए कह रहे हैं कि राजस्थान में सरकार जा रही है.. छत्तीसगढ़ में सरकार जा रही है। फिर वे मु्स्कुराते हुए अपनी फिसली जुबान को संभालते हैं। पीयूष गोयल ने सोशल मीडिया पर लिखा कि राहुल की भविष्यवाणी सच हो गई! स्वाभाविक रूप से लोग मजे ले रहे हैं।

मगर अब सवाल तीन राज्यों के चुनाव परिणाम को लेकर नहीं हैं बल्कि सवाल यह है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में मोदी को उखाड़ फेंकने की मंशा के साथ जिस इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इनक्लूसिव अलायंस (इंडिया) यानी भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन नाम का तंबू ताना गया था, उसका क्या होगा? क्या तंबू में सभी विपक्षी दल टिके रहेंगे?

यह सवाल इसलिए पैदा हुआ है क्योंकि तीन राज्यों में कांग्रेस की हार के साथ कुछ दल बेकाबू नजर आ रहे हैं। तीन राज्यों के चुनाव के पहले इंडिया गठबंधन वजूद में आ चुका था। खासकर मध्यप्रदेश जैसे राज्य में अखिलेश यादव चाहते थे कि गठबंधन मिलकर चुनाव लड़े ताकि भाजपा की हार सुनिश्चित हो सके। मगर कांग्रेस को यह भरोसा था कि मतदाता इस बार भाजपा से नाराज हैं और सत्ता कांग्रेस की झोली में गिरने वाली है।

एमपी के राजनीतिक हलकों में तो यह चर्चा भी खूब चल रही है कि चुनावी समीकरण के लिए अखिलेश यादव ने पहल भी की थी लेकिन कांग्रेस ने कोई भाव ही नहीं दिया! कमलनाथ उनसे मिले भी नहीं। अखिलेश ने तो साफ कह दिया कि मध्यप्रदेश में अपनी पराजय के लिए कांग्रेस खुद जिम्मेदार है।

लालू यादव ने भी यही बात कही है। दरअसल छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी कांग्रेस को खुद पर बहुत भरोसा था इसलिए उसने गठबंधन में शामिल दलों को साथ नहीं लिया।

चुनाव परिणाम के बाद कांग्रेस को बात समझ में आई कि उसकी गलती से गठबंधन के सहयोगी दल नाराज हैं। नाराजगी दूर करने के लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने 6 दिसंबर को इंडिया की बैठक भी बुलाई। उस बैठक में राहुल गांधी भी थे। इसमें सहयोगी दलों के संसदीय दल के नेता तो इकट्ठे हुए लेकिन ममता बनर्जी और नीतीश कुमार बैठक में शामिल नहीं हुए। ममता ने तो जुबान की तल्खी भी दिखाई! नीतिश ने खुद की खांसी-सर्दी को कारण बताया।

ध्यान देने वाली बात है कि पश्चिम बंगाल और बिहार दो ऐसे राज्य हैं जहां लोकसभा की कुल 82 सीटें हैं। राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो राष्ट्रीय स्तर पर करीब 200 सीटें ऐसी हैं जहां भाजपा का मुकाबला केवल कांग्रेस से ही होगा लेकिन 150 सीटें ऐसी हैं जहां क्षेत्रीय दलों की भूमिका कांग्रेस से ज्यादा होगी। इसलिए कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों के बीच मजबूत गठबंधन ही भाजपा के लिए कोई चुनौती पेश कर सकता है।

अन्यथा भाजपा का कुछ नहीं बिगड़ेगा! तो क्या गठबंधन वाकई 2024 की दिशा में एकजुट होकर बढ़ेगा? शंका इसलिए हो रही है क्योंकि अभी तक यह तय नहीं है कि इस गठबंधन का संयोजक कौन होगा? नीतीश कुमार भले ही कुछ भी कहें लेकिन वे संयोजक जरूर बनना चाहते हैं. इससे जीत की स्थिति में प्रधानमंत्री पद के वे स्वाभाविक उम्मीदवार हो सकते हैं।

उनके दल के नेता कहते रहे हैं कि कांग्रेस को उदार रवैया अपनाना चाहिए यानी नीतीश को संयोजक का पद देना चाहिए। बिहार के नवादा जिले की हिसुआ से कांग्रेस विधायक नीतू कुमारी ने तो यहां तक कह दिया कि साल 2024 का लोकसभा चुनाव बिहार मॉडल पर नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा जाना चाहिए।

लेकिन क्या कांग्रेस नीतीश को संयोजक के रूप में देखने को तैयार है और क्या गठबंधन के नेताओं में वही उत्साह कायम है जो राज्यों के विधानसभा चुनावों से पहले था? कुछ लोग चुनाव आयोग के आंकड़ों का हवाला देकर साफ तौर पर कह रहे हैं कि विधासभा चुनावों में कांग्रेस को बीजेपी के मुकाबले करीब 10 लाख ज्यादा वोट मिले हैं।

इसका मतलब है कि कांग्रेस रेस से बाहर नहीं हुई है बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का विकल्प बनने की क्षमता केवल उसी में है, किसी क्षेत्रीय दल में कांग्रेस जैसी ताकत नहीं है। यह बात क्षेत्रीय दलों को समझनी होगी और कांग्रेस को भी समझना होगा कि गठबंधन की ताकत ही उसे केंद्र की सत्ता में लाने में सक्षम है।

मुझे लगता है कि समस्या दोनों तरफ से है। कांग्रेस को लगता है कि यदि विपक्षी दलों की ओर से कोई संयोजक बना तो इससे कांग्रेस का कद छोटा हो जाएगा।

दूसरी तरफ विपक्षी दलों को लगता है कि असली सुपर स्टार वही हैं। कांग्रेस ताकतवर नहीं है तो उसे प्रमुखता क्यों दें? यही सोच इंडिया गठबंधन के लिए घातक साबित हो रही है। नेताओं की ओर से लगातार हो रही बयानबाजी ने भी गठबंधन के भविष्य पर सवालिया निशान लगाने का काम किया है। इसके अलावा सीटों का बंटवारा इंडिया गठबंधन के लिए सबसे बड़ा मसला है। इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है।

गठबंधन में आम आदमी पार्टी शामिल है लेकिन दिल्ली और पंजाब में दोनों दो ध्रुवों पर हैं। वहां आम आदमी पार्टी की सरकार है। वह कांग्रेस को क्या सीटें देना चाहेगी?

लोकतंत्र के लिए मजबूत विपक्ष का होना बहुत जरूरी है। यह बात गठबंधन में शामिल हर पार्टी और हर नेता को समझनी होगी। वक्त ही बताएगा कि गठबंधन के लिए भारत महत्वपूर्ण है या उनका अपना ‘इंडिया’!

Web Title: How much strength does the India alliance have now

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