बच्चों की मौत के लिए लीची कैसे जिम्मेदार?
By एनके सिंह | Published: June 19, 2019 02:02 PM2019-06-19T14:02:11+5:302019-06-19T14:02:11+5:30
‘चमकी’ बुखार (एक्यूट इनसेफेलाइटिस सिंड्रोम) से सौ से ज्यादा बच्चे काल के काल में समा चुके हैं. झगड़ा इस बात पर है कि बच्चे लीची खाने से मर रहे हैं जैसा सूबे के एक मंत्नी ने अपने विभाग के डॉक्टरों के साथ मिलकर दावा किया है या यह एक बीमारी है जिसकी रोकथाम के प्रयास पहले से नहीं किए गए.
चमकी बुखार से बिहार में जब हर रोज कई बच्चे मर रहे हैं, सरकार के स्वास्थ्य विभाग ने दोष सदियों से पैदा होने वाली ‘लीची’ पर डाल दिया और मंत्नी मीटिंग में ही भारत-पाक क्रिकेट मैच का स्कोर पूछते दिखे.
पिछले 29 साल से हर 37 मिनट पर देश में एक किसान आत्महत्या कर लेता है पर सरकारें उसका कारण गृह-कलह या बीमारी बताती रही हैं. सत्ता में बैठने पर एक अलग किस्म का ‘ज्ञान’ पैदा होता है जो अपनी अक्षमता को ढक कर आरोप समाज, उसकी आदतों और कई बार बेजान वस्तुओं पर डाल देता है. अबकी बार ‘गरीबों की गलत आदत’ और शाही फल लीची पर यह गाज गिरी है. खबर है कि पिछले दस सालों में 1000 बच्चे इस बीमारी से मां की गोद से हट कर मौत की गोद में समा चुके हैं. सत्ता भी वही, शासक भी वही, पर यह नया ‘ज्ञान’ आज तक नहीं आया था.
‘चमकी’ बुखार (एक्यूट इनसेफेलाइटिस सिंड्रोम) से सौ से ज्यादा बच्चे काल के काल में समा चुके हैं. झगड़ा इस बात पर है कि बच्चे लीची खाने से मर रहे हैं जैसा सूबे के एक मंत्नी ने अपने विभाग के डॉक्टरों के साथ मिलकर दावा किया है या यह एक बीमारी है जिसकी रोकथाम के प्रयास पहले से नहीं किए गए. चूंकि यह बीमारी लीची पैदा करने वाले मुजफ्फरपुर में पहले फैली तो मंत्नीजी का ब्रrाज्ञान सीधे समाज की ‘गरीबी के कारण गलत आदत’ यानी ‘खाली पेट लीची खाने’ पर जा टिका.
वोट लेने के बाद सत्ता में आने के बाद सरकार तो गलत होती नहीं, समाज ही गलत होता है, गरीब होता है, सुबह नाश्ते में लीची खा लेता है और मर जाता है. लेकिन सातवें दिन जब यही बीमारी आसपास के जिलों मसलन सीतामढ़ी, सीवान, छपरा और हाजीपुर में भी फैली तो मंत्नीजी और भ्रष्टाचार व प्रशासनिक निष्क्रि यता में आकंठ डूबे स्वास्थ्य विभाग के इस ‘ब्रrाज्ञान’ पर कफन में भी बच्चे तरस खाने लगे. लीची बिहार में आज भी 50-60 रुपए किलो है. मासूम जो मर रहे हैं उनमें लगभग सभी महादलित वर्ग के हैं जिनकी प्रतिदिन आय इसकी एक चौथाई भी नहीं है. चालाक स्वास्थ्य विभाग अपने सुरक्षा कवच को मजबूत करने के लिए वैज्ञानिक तर्क भी दे रहा है. उसके अनुसार लीची में दो तत्व हाइपोग्लायसीन ए और मेथीलीन साइक्लोप्रोपाइल ग्लायसीन4 पाए जाते हैं जो खाली पेट लीची खाने पर शुगर लेवल अचानक घटा देते हैं.
अब जरा गौर कीजिएगा सरकार के कुतर्क पर. अगर लीची इतनी खतरनाक है तो क्या बिहार सरकार के स्वास्थ्य विभाग को यह ब्रrाज्ञान नहीं आया कि पहले से लोगों को सतर्क करे. यह लीची सैकड़ों साल से इस इलाके में पैदा होती है और उतने ही वर्षो से खाई भी जाती होगी. यही बच्चे पहले भी होंगे. लीची में ये दोनों तत्व भी आम चुनाव के बाद आज नहीं घुस गए हैं. इसलिए बिहार सरकार का सुरक्षा कवच के रूप में यह कुतर्क आपराधिक महसूस होता है.