ब्लॉग: ना...ना करते फड़नवीस कैसे बन गए शिंदे कैबिनेट का हिस्सा, अब भी पहले बने हुए हैं वे तीन घंटे

By हरीश गुप्ता | Published: July 7, 2022 08:33 AM2022-07-07T08:33:42+5:302022-07-07T08:48:09+5:30

सूत्रों के अनुसार पीएम नरेंद्र मोदी और जेपी नड्डा ने व्यक्तिगत रूप से देवेंद्र फड़नवीस से बात की थी. यह प्रधानमंत्री के लिए एक कठिन फैसला था लेकिन भाजपा के बड़े राजनीतिक उद्देश्यों के लिए ऐसा किया गया.

How Devendra Fadnavis become part of Eknath Shinde cabinet, after he refued earlied | ब्लॉग: ना...ना करते फड़नवीस कैसे बन गए शिंदे कैबिनेट का हिस्सा, अब भी पहले बने हुए हैं वे तीन घंटे

फड़नवीस कैसे बन गए शिंदे कैबिनेट का हिस्सा, तीन घंटे में बदली स्क्रिप्ट

महाराष्ट्र का सत्ता परिवर्तन राजनीतिक पंडितों को लगातार परेशान किए हुए है क्योंकि किसी को भी इस बात की जानकारी नहीं है कि 30 जून को तीन घंटे- दोपहर 3.30 बजे से शाम 6.37 बजे- के दौरान क्या हुआ था. जानकारी टुकड़ों-टुकड़ों में सामने आ रही है कि कैसे देवेंद्र फड़नवीस यह घोषणा करने के बाद कि वे एकनाथ शिंदे सरकार का हिस्सा नहीं होंगे, उपमुख्यमंत्री बनने के लिए सहमत हुए. 

फड़नवीस की घोषणा से लेकर भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के शाम 6.37 बजे के ट्वीट तक, इन 187 मिनटों के दौरान वास्तव में क्या हुआ, यह अभी भी रहस्य है. अटकलें हैं कि मुंबई में पीएम के समर्पित सहयोगी फड़नवीस के लुटियंस दिल्ली में कम ही दोस्त हैं और उन्होंने सुनिश्चित किया कि उन्हें सरकार में शामिल किया जाए. सत्ता के गलियारों में एक और कहानी घूम रही है कि एकनाथ शिंदे ने दिल्ली में भाजपा नेतृत्व से संपर्क कर फड़नवीस को अपनी सरकार में शामिल करने का अनुरोध किया था. 

उनका तर्क था कि उनकी सरकार हमेशा अस्थिर रहेगी और भाजपा अपने दोहरे उद्देश्यों को हासिल नहीं कर पाएगी. एक सुराग तब मिला जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह 30 जून को दोपहर 3.45 बजे एक महत्वपूर्ण समारोह का उद्घाटन करने के लिए विज्ञान भवन के अपने निर्धारित कार्यक्रम से पीछे हट गए. उन्होंने अंतिम समय में एनएचआरसी समारोह में अपना प्रतिनिधित्व करने के लिए ऊर्जा मंत्री आर. के. सिंह को प्रतिनियुक्त किया. 

प्रधानमंत्री, भाजपा प्रमुख जे.पी. नड्डा, बी. एल. संतोष और शाह के बीच गहन चर्चा हुई. भाजपा महासचिव सी. टी. रवि भी मुंबई में परेशान थे. यहीं पर भाजपा की स्क्रिप्ट बदल गई.  पीएम मोदी और नड्डा ने व्यक्तिगत रूप से फड़नवीस से बात की थी. यह प्रधानमंत्री के लिए एक कठिन फैसला था लेकिन यह भाजपा के बड़े राजनीतिक उद्देश्यों को पाने के लिए किया गया था.

मोदी चाहते हैं महाराष्ट्र में 44 लोकसभा सीटें

एकनाथ शिंदे को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाने के पीछे भाजपा के कई उद्देश्य हैं ताकि इस जनधारणा को गलत साबित किया जा सके कि उसने देवेंद्र फड़नवीस को सीएम बनाने के लिए एमवीए सरकार को अस्थिर किया. दूसरी बात, मोदी अपने सभी सहयोगियों को यह भी संदेश देना चाहते थे कि भाजपा ‘एकला चलो’ की नीति पर नहीं चलती है और उसे अपने सहयोगियों की परवाह है. भाजपा अपने सहयोगियों का स्थान हड़पने में विश्वास नहीं करती है. 

बिहार में नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने के पीछे काफी हद तक यही कारण था. भाजपा 2024 तक शांति बनाए रखना चाहती है इसलिए सभी विवादास्पद मुद्दों को छोड़ रही है. तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य यह है कि मोदी 48 में से महाराष्ट्र में एनडीए के लिए 44 लोकसभा सीट चाहते हैं. भाजपा-शिवसेना गठबंधन ने पहले 42 सीटें जीती थीं लेकिन मोदी कम से कम दो और सीटें चाहते हैं. 

उद्धव की सेना को बीएमसी से बेदखल करना चौथा कारण है. शिंदे को आगे कर, भाजपा ने सहयोगी दलों के साथ रणनीति बदलने का फैसला किया है. उसने राहुल नार्वेकर को महाराष्ट्र विधानसभा अध्यक्ष नियुक्त किया ताकि अन्य दलों से आए सभी लोगों को यह संकेत दिया जा सके कि उनके लिए सम्मानजनक स्थान है. यह शेष एमवीए विधायकों के लिए भी संकेत है कि उन्हें भी पुरस्कृत किया जा सकता है. उसने हरियाणा में सहयोगी दल जेजेपी के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला को व्यापक अधिकार दे रखे हैं.

नए उपराष्ट्रपति के लिए उलटी गिनती शुरू

राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मू के साथ, प्रधानमंत्री को एक ऐसे उपराष्ट्रपति की आवश्यकता होगी, जिसके पास संसद में व्यापक अनुभव हो और जो पर्याप्त राजनीतिक लाभ भी दे सके. विपक्षी दलों की हालिया आक्रामकता को देखते हुए उन्हें राज्यसभा चलाने में भी सक्षम होना चाहिए. जानकार सूत्रों का कहना है कि एम. वेंकैया नायडू के इच्छुक नहीं होने और दक्षिण से कोई सक्षम नाम (सी. विद्यासागर राव को छोड़कर) सामने नहीं आने से सूची छोटी होती जा रही है. 

हैदराबाद राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में प्रधानमंत्री के इस बात पर जोर देने कि भाजपा कार्यकर्ताओं को ‘पसमांदा मुसलमानों’ (मुसलमानों में पिछड़े और गरीब) तक पहुंचना चाहिए, यह संकेत मिलता है कि अगला उपराष्ट्रपति अल्पसंख्यकों में से हो सकता है. मई में नूपुर शर्मा का विवाद शुरू होने के बाद से ही पीएमओ इस तरह के संकेत दे रहा था. इस कॉलम में पूर्व में भी इसका उल्लेख किया जा चुका है. 

केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी सहित कई नामों का जिक्र किया जा रहा है. दिलचस्प बात यह है कि नकवी का राज्यसभा का कार्यकाल 7 जुलाई को खत्म हो रहा है. गुलाम नबी आजाद और आरिफ मोहम्मद खान के नाम भी चर्चा में रहे हैं. दो केंद्रीय मंत्री; राजनाथ सिंह और हरदीप सिंह पुरी भी संभावितों की सूची में हैं. इस बात की संभावना है कि भाजपा अपने उम्मीदवार के नाम की घोषणा को तीसरे हफ्ते तक के लिए टाल सकती है क्योंकि आखिरी तारीख 19 जुलाई है.

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