प्रो. राम मोहन पाठक का ब्लॉग: भारत के गर्व और गौरव की भाषा है हिंदी

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: November 13, 2021 01:52 PM2021-11-13T13:52:41+5:302021-11-13T13:52:41+5:30

आइए, हम संकल्प लें कि हिंदी का जीवन में अधिक से अधिक प्रयोग करेंगे। जिससे हिंदी को मिले वैश्विक सम्मान के क्रम में अपने घर-भारत में उसे राजभाषा के साथ-साथ राष्ट्रभाषा का व्यावहारिक दर्जा और स्वरूप प्राप्त हो।

Hindi language is pride of India | प्रो. राम मोहन पाठक का ब्लॉग: भारत के गर्व और गौरव की भाषा है हिंदी

हिंदी मान्य राजभाषा के रूप में हमारे गर्व और गौरव की प्रतीक भाषा है।

भारत की मूल थाती ‘विविधता में एकता’ है। भाषाओं की विविधता भी भारतीय समाज की उल्लेखनीय विशिष्टता है। राष्ट्र के भाषाई गुलदस्ते की शोभा में अभिवृद्धि करती संविधान में मान्यता प्राप्त 22 भाषाओं की सूची समृद्ध और विस्तृत है। हिंदी मान्य राजभाषा के रूप में हमारे गर्व और गौरव की प्रतीक भाषा है। ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ अपनी राजभाषा के महत्व और गौरव के स्मरण का भी अवसर है। हिंदी की प्रगति 74 वर्षो में बहुआयामी रही है। ‘निज भाषा’ की उन्नति को समग्र राष्ट्रीय प्रगति का सूचक और आधार मानते हुए काशी से इसका उद्घोष किया गया था। महात्मा गांधी का स्वप्न था ‘सर्वसाधारण की भाषा हिंदी के माध्यम से संपूर्ण भारत को एक सूत्न में बांधना’।

राष्ट्रभाषा या संपर्क भाषा बनने की दिशा में हिंदी के समक्ष स्वाधीनता से पूर्व और बाद के 74 वर्षो में, जो चुनौतियां थीं या रही हैं, उनका सामना करने के लिए संवैधानिक व्यवस्था के अंतर्गत ‘राजभाषा अधिनियम’ का संकल्प पारित किया गया। सरकारी कामकाज तक सीमित और प्रभावी होने के कारण इस अधिनियम का प्रभाव भी सीमित रहा। अधिनियम की व्यवस्थाओं के बावजूद सरकारी कामकाज में हिंदी प्रयोग की स्थिति अधिक संतोषजनक नहीं है और अधिक समन्वित-समर्पित प्रयासों की आवश्यकता है। 

1949 में हिंदी को राजभाषा का दर्जा मिलने के बाद अब तक की प्रगति का आकलन करें तो यह स्पष्ट है कि कानून या विधायी व्यवस्था से हिंदी के प्रयोग-उपयोग की प्रगति सराहनीय रही है किंतु अभीष्ट या लक्ष्य प्राप्ति की लंबी यात्नाओं की चुनौती हमारे समक्ष है। इसके लिए सभी में अपनी भाषा के प्रयोग के प्रति गौरव की आंतरिक भावना का हमें सृजन करना होगा।

हाल के आंकड़ों का विश्लेषण बताता है कि 80 करोड़ से अधिक लोग दुनिया में हिंदी बोल और समझ सकते हैं। जापान में आठ विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है। जापान रेडियो से प्रतिदिन हिंदी में दो बार प्रसारण होता है। भारत के पड़ोसी देश नेपाल में हिंदी समझने-बोलने वालों की संख्या 90 प्रतिशत तक है। यहां 1960 तक शिक्षा का माध्यम हिंदी रहा था। लेकिन आज भी माध्यमिक स्तर पर हिंदी ऐच्छिक विषय के रूप में पढ़ाई जाती है।

भूटान में बौद्ध मतावलंबियों की संख्या ज्यादा होने के नाते भूटान की भाषा पर पाली, संस्कृत व नेपाली का प्रभाव है। म्यांमार ब्रिटिश भारत का ही एक अंग रहा था, इसी कारण संपर्क भाषा के रूप में हिंदी यहां पहले से ही प्रचलित है। थाईलैंड में हिंदी जानने वालों की संख्या लगभग एक लाख है। इनमें से अधिकांश दूसरे विश्वयुद्ध के समय थाईलैंड में बसे थे।

हांगकांग के बाजार में तो हिंदी बोलकर भी काम चलाया जा सकता है। यहां 90 प्रतिशत से ज्यादा आबादी हिंदी समझती है। संयुक्त राष्ट्र से साप्ताहिक हिंदी समाचार बुलेटिन के प्रसारण ने प्रसारण का एक इतिहास रच दिया है। विश्व के 150 विश्वविद्यालय में हिंदी का अध्ययन-अध्यापन होता है। दुनिया के 91 विश्वविद्यालयों में ‘हिंदी चेयर’ स्थापित है, जो इसके प्रचार-प्रसार का काम करती है। 

बोलने वालों की संख्या के आधार पर हिंदी दुनिया की दो सबसे बड़ी भाषाओं में से एक है। एक सर्वेक्षण के मुताबिक हिंदी जल्द इंटरनेट पर अंग्रेजी और चीनी भाषा के बाद सबसे ज्यादा इस्तेमाल की जाने वाली भाषा बन जाएगी। दुनिया में हिंदी की स्थिति पर चर्चा करते हुए यह जान लेना भी जरूरी है कि नियोजकों की संख्या के आधार पर 1952 में हिंदी दुनिया में पांचवें स्थान पर थी। 

1980 के आसपास वह चीनी और अंग्रेजी के बाद तीसरे स्थान पर आ गई। 1991 की जनगणना में हिंदी को मातृभाषा घोषित करने वालों की संख्या के आधार पर पाया गया कि यह पूरी दुनिया में अंग्रेजी भाषियों की संख्या से अधिक है। आइए, हम संकल्प लें कि हिंदी का जीवन में अधिक से अधिक प्रयोग करेंगे। जिससे हिंदी को मिले वैश्विक सम्मान के क्र म में अपने घर-भारत में उसे राजभाषा के साथ-साथ राष्ट्रभाषा का व्यावहारिक दर्जा और स्वरूप प्राप्त हो। 

हिंदी को केवल आंकड़े ही राष्ट्रभाषा पद पर स्थापित नहीं कर सकते। इसके लिए भारत के सवा सौ करोड़ नागरिकों और सभी भारतीय भाषाओं का दृढ़ संकल्प आवश्यक है। आशा करनी चाहिए कि एक दिन भारत में हिंदी पूरे राष्ट्र की भाषा बनेगी और गांधीजी का मूल संकल्प- ‘एक भाषा-एक भारत’ मूर्त रूप लेगा।

काशी और दक्षिण भारत के धार्मिक-आध्यात्मिक और साहित्यिक संबंध अत्यंत प्रगाढ़ रहे हैं। काशी के बाबा विश्वनाथ, गंगा और रामेश्वरम के देवाधिदेव रामनाथ स्वामी के पूजन-अर्चन की परंपरा अत्यंत प्राचीन है और उत्तर-दक्षिण के सांस्कृतिक-धार्मिक संबंधों तथा समन्वय की सेतु यह परंपरा आज एक बार फिर हमारे समक्ष जीवंत है। 

काशी केवल धार्मिक-आध्यात्मिक केंद्र या तीर्थ नहीं, बल्कि साहित्य तीर्थ भी है. कबीर, तुलसी, भारतेंदु, जयशंकर प्रसाद, प्रेमचंद जैसे हिंदी साहित्य में शीर्षस्थ साहित्यकारों की तपोस्थली और रचनास्थली, महामना मदनमोहन मालवीय, आचार्य रामचंद्र शुक्ल जैसे अनेकानेक समर्पित हिंदी सेवी विद्वानों की नगरी में महाकवि सुब्रह्मण्य भारती जैसे साहित्यसाधकों और हिंदी के प्रति ऐतिहासिक योगदान के लिए विख्यात विद्वानों को नमन करने का ‘अखिल भारतीय राजभाषा सम्मेलन’ एक सार्थक अवसर बने, यही हमारी कामना है।

Web Title: Hindi language is pride of India

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे

टॅग्स :Hindiहिन्दी