ब्लॉग: अंगदान से ही रुकेगा अंगों का अवैध कारोबार

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: February 23, 2019 01:18 PM2019-02-23T13:18:11+5:302019-02-23T13:18:11+5:30

पूरी दुनिया की वैज्ञानिक बिरादरी इस कोशिश में है कि इंसान के ज्यादातर अंगों को प्रयोगशाला में ही बना लिया जाए ताकि जरूरतमंदों को दान में मिलने वाले अंगों का इंतजार नहीं करना पड़े

he illegal trade of organs will stop | ब्लॉग: अंगदान से ही रुकेगा अंगों का अवैध कारोबार

ब्लॉग: अंगदान से ही रुकेगा अंगों का अवैध कारोबार

(लेखक-अभिषेक कुमार सिंह)

पूरी दुनिया की वैज्ञानिक बिरादरी इस कोशिश में है कि इंसान के ज्यादातर अंगों को प्रयोगशाला में ही बना लिया जाए ताकि जरूरतमंदों को दान में मिलने वाले अंगों का इंतजार नहीं करना पड़े. कुछ देशों में प्रयोगशाला में बनाई गई मानव त्वचा, कार्टिलेज और हड्डियों का इस्तेमाल मरीजों को ठीक करने में किया भी जा रहा है. पर अभी भी न तो सारे देशों में प्रयोगशाला में बने अंगों का प्रचलन बढ़ा है और न ही दिल, किडनी और रक्त वाहिकाओं जैसे अंग प्रयोगशाला में बनाकर उनका सफल प्रतिरोपण संभव हो पाया है, इसलिए डॉक्टरों को अगले 10-15 वर्षो तक दान किए गए अंगों से ही काम चलाना पड़ सकता है.

यही नहीं, मानव अंगों की इस कमी के कारण किडनी-लिवर जैसे जरूरी अंगों का अवैध कारोबार बदस्तूर जारी है जिसकी एक बानगी हाल ही में यूपी के कानपुर-नोएडा से लेकर दिल्ली के एक नामी अस्पताल तक फैले नेटवर्क के भंडाफोड़ और कुछ गिरफ्तारियों के रूप में मिली है.

हालांकि कहा जा रहा है कि इस संबंध में कुछ नामी अस्पतालों-डॉक्टरों की दलालों से मिलीभगत कर गरीबों की मजबूरी का फायदा उठाया जा रहा है, क्योंकि यह नेटवर्क गरीबों को 3-4 लाख रु पए थमाकर अमीरों को एक किडनी 35 से 40 लाख रु पए में और एक लिवर 70 से 80 लाख रु पए में बेचकर चांदी कूट रहा है. पर समस्या यह भी है कि हमारे देश में अंगदान की स्वस्थ परंपरा विकसित नहीं होने के कारण जरूरी मानव अंगों की बेहद कमी है. यह एक सच्चाई है कि हमारे अस्पतालों में जरूरतमंद मरीजों के कई अंगों का ट्रांसप्लांट सिर्फ इसलिए नहीं हो पा रहा है क्योंकि उन्हें इसके लिए कहीं से वे अंग दान में नहीं मिल पा रहे हैं. कहने को तो देश में किडनी, हार्ट और लिवर के हर साल ढाई लाख ट्रांसप्लांट होने लगे हैं पर इनमें सफलता की दर काफी कम है.

इनमें से सिर्फ 5 हजार ट्रांसप्लांट सफल हो पाते हैं. वजह यह है कि मरीज के मुताबिक एकदम सही अंग ट्रांसप्लांट के लिए उपलब्ध नहीं होते. यही नहीं, जरूरत जितने अंगों की है, उसके मुकाबले काफी कम अंग मुहैया हो पा रहे हैं. एक लाख आंखों की जगह उपलब्धता सिर्फ 25 हजार की है. तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में स्थिति थोड़ी बेहतर है, लेकिन बाकी राज्यों में तो मरीज अंग नहीं मिल पाने के कारण या तो स्थायी अपंगता ङोलते हैं या फिर असमय मृत्यु. 

डॉक्टरों का मत है कि हर साल देश में सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों के आंकड़ों के मद्देनजर अंगदान की प्रवृत्ति एक बहुत बड़ा वरदान साबित हो सकती है. हमारे देश में करीब डेढ़ लाख लोगों को सड़क दुर्घटनाओं में अपनी जान गंवानी पड़ती है. इनमें से ज्यादातर की मृत्यु का कारण दिमाग में चोट लगना होता है. ऐसे लोगों के अन्य कई अंग सही-सलामत होते हैं.

यदि ऐसे लोगों के परिजन स्वीकृति दे दें या फिर ये लोग अंगदान के लिए पंजीकृत हों तो प्रत्येक व्यक्ति के शरीर से आठ मरीजों को जरूरी अंग मिल सकते हैं. यही नहीं, सड़क दुर्घटनाओं में ही गंभीर रूप से घायल लोगों के इलाज में भी ऐसे लोगों के अंग काम आ सकते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 2015 में तैयार अपनी वैश्विक रिपोर्ट में दावा किया है कि पूरी दुनिया में हर साल 12 लाख लोग सड़क हादसों के शिकार हो रहे हैं.

इनमें भी 15 से 29 वर्ष की आयु के बीच के युवाओं की मौत सड़क दुर्घटना की एक चिंताजनक तस्वीर सामने लाती है क्योंकि कुल मौतों में इनका हिस्सा एक चौथाई है. दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने 2014 में एक रिपोर्ट दी थी, जिसके मुताबिक 2012 में देश की राजधानी में सड़क दुर्घटनाओं में जान गंवाने वालों में साढ़े 26 हजार लोग युवा (35 वर्ष से कम उम्र के नौजवान) थे.

रिपोर्ट सड़क दुर्घटनाओं के कारणों-आंकड़ों पर आधारित थी. हालांकि इस रिपोर्ट से यह नहीं पता चला कि इनमें से ऐसे युवा कितने थे, जिन्होंने अंगदान या देहदान का प्रण लिया था या उनमें से किसी के कुछ अंग मृत्यु के बाद किसी के काम आ सके या नहीं.

पर यदि उनमें से एक चौथाई युवाओं के परिजनों ने भी ऐसा कोई निर्णय लिया होता, तो संभवत: हजारों अन्य युवाओं को विकलांगता अथवा मृत्यु तक से बचाया जा सकता था. ऐसी एक पहल वर्ष 2014 में मुंबई में नेशनल कमीशन फॉर वुमेन की एक सदस्य निर्मला सामंत प्रभावलकर ने ली थी. उन्होंने अपनी युवा बेटी की असामयिक मौत को कुछ अन्य लोगों को जिंदगी देने के उदाहरण में बदल दिया था.

अठारह साल की उनकी बेटी हेमांगी की ब्रेन हैमरेज से असमय मृत्यु हुई थी. एक मां के तौर पर निर्मला सामंत को निश्चय ही अपनी युवा बेटी को खोने का अपार दुख था, पर उन्होंने धीरज रखते हुए हेमांगी की किडनी और लिवर को दान करने का फैसला किया. हेमांगी के कार्निया भी डोनेट किए गए. ऐसे कुछ और उदाहरण अनुकरणीय हैं, लेकिन अफसोस यह है कि इनकी संख्या बहुत कम है. 

Web Title: he illegal trade of organs will stop

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