हरीश गुप्ता का ब्लॉग: चुनाव प्रचार से क्यों दूर हैं शरद पवार, नीतीश कुमार?
By हरीश गुप्ता | Published: April 8, 2021 09:49 AM2021-04-08T09:49:26+5:302021-04-08T09:50:42+5:30
ममता बनर्जी को राकांपा का समर्थन देने की शरद पवार की घोषणा से कांग्रेस नाराज थी क्योंकि वह उसके साथ महाराष्ट्र में सत्ता में भागीदार है. राकांपा सुप्रीमो यूपीए में भी राष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा सक्रिय भूमिका निभाने के लिए उत्सुक हैं.
शरद पवार ने प.बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस को राकांपा का समर्थन देने की घोषणा जोरशोर से की थी. मराठा दिग्गज ने यह भी कहा था कि वे तृणमूल उम्मीदवारों के चुनाव प्रचार के लिए प. बंगाल भी जाएंगे.
ममता बनर्जी को राकांपा का समर्थन देने की पवार की घोषणा से कांग्रेस नाराज थी क्योंकि वह उसके साथ महाराष्ट्र में सत्ता में भागीदार है. राकांपा सुप्रीमो यूपीए में भी राष्ट्रीय स्तर पर ज्यादा सक्रिय भूमिका निभाने के लिए उत्सुक हैं.
मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए, राकांपा ने समझाया कि ममता बनर्जी से ‘साहेब’ के अच्छे संबंध हैं और वे समर्थन के प्रतीक स्वरूप सिर्फ कुछ रैलियों को ही संबोधित करेंगे. लेकिन पवार मार्च में ऐसा नहीं कर सके क्योंकि वे उस संकट को हल करने में व्यस्त थे जो वाङोकांड में राज्य के गृह मंत्री पद से अनिल देशमुख के इस्तीफे से पराकाष्ठा पर पहुंच गया.
बाद में पवार को गंभीर पेट दर्द की वजह से एक निजी अस्पताल में भर्ती होना पड़ा. ऑपरेशन के पूर्व उन्हें पूरी तरह से विश्रम करने की सलाह दी गई क्योंकि वे ऑपरेशन के लिए जरूरी सभी मापदंडों के लिहाज से फिट नहीं थे. वे अब चुनाव प्रचार नहीं कर सकते और निकट भविष्य में भी उनके प. बंगाल के किसी चुनाव अभियान में भाग ले पाने की संभावना नहीं है.
तेजस्वी यादव ने भी बनाई दूरी-
शरद पवार अकेले नहीं हैं जो चुनावों से गैरहाजिर हैं. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद नेता तेजस्वी यादव भी विधानसभा चुनाव से अब तक दूर रहे हैं. हालांकि जनता दल (यू) ने भाजपा गठबंधन में भागीदार होने के बावजूद प. बंगाल के चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारे हैं लेकिन नीतीश कुमार ने चुनाव प्रचार अभियान से अपने आपको दूर ही रखा है.
दूसरी ओर, बिहार में कांग्रेस के साथ गठबंधन होने के बावजूद राजद ने तृणमूल कांग्रेस का समर्थन किया है. लेकिन तेजस्वी ने भी प्रचार अभियान में हिस्सा नहीं लिया है. जदयू ने प. बंगाल में अपने उम्मीदवारों को अधर में छोड़ने का कारण तो नहीं बताया है लेकिन नीतीश कुमार के नजदीकी सूत्रों का कहना है कि वे भाजपा और ममता बनर्जी के साथ संबंधों को बिगड़ने से बचाने के लिए ही अपनी प. बंगाल की यात्र टाल रहे हैं.
ममता का एक पैर फ्रैक्चर है और इन परिस्थितियों में नीतीश कुमार उनके घाव पर नमक नहीं छिड़कना चाहते हैं. आखिरकार तो नीतीश कुमार के भीतर भी शरद पवार की तरह राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं हैं. कांग्रेस भी असमंजस में है क्योंकि प. बंगाल में वामपंथियों के साथ उसके अच्छे संबंध हैं तो केरल में उसकी माकपा के साथ लड़ाई है. दूसरे, राहुल गांधी ने अभी तक प. बंगाल में चुनाव प्रचार के लिए अपना कार्यक्रम नहीं बनाया है.
प्रियंका भी परिदृश्य से हटीं
प्रियंका गांधी वाड्रा ने लगभग एक हफ्ते पहले अपने पति रॉबर्ट वाड्रा के कोरोना टेस्ट में पॉजीटिव आने के बाद से खुद को क्वारंटाइन कर लिया है. इससे बहुत बड़ा झटका लगा है क्योंकि वे केरल में अपनी रैलियों के दौरान भारी भीड़ जुटा रही थीं.
कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार चुनाव प्रचार की अपनी शैली के कारण उनके पास मतदाताओं से बेहतर ढंग से जुड़ने की क्षमता थी, इसलिए पार्टी के कुछ हिस्सों में चिंता नजर आ रही है. हालांकि प्रियंका की रिपोर्ट निगेटिव आ चुकी है, फिर भी वे घर पर ही बनी हुई हैं. कारण जो भी हो, उनकी अनुपस्थिति पार्टी के लिए एक धक्का है, क्योंकि पार्टी के 30 स्टार प्रचारक पहले ही प्रचार अभियान से दूर हैं जिनमें कैप्टन अमरिंदर सिंह, नवजोत सिंह सिद्धू जैसे नाम शामिल हैं. यहां तक कि राहुल गांधी भी, कम से यह कॉलम लिखे जाने तक तो, प. बंगाल में चुनाव प्रचार से दूर ही हैं. शायद यह चुनाव प्रचार अभियान से नेताओं के दूरी बनाने का मौसम है.
फ्रंटलाइन वर्कर्स की हिचकिचाहट
एक तरफ वैक्सीनेशन के लिए प्रधानमंत्री की टास्क फोर्स दिन रात एक कर रही है तो दूसरी ओर अनेक फ्रंटलाइन वर्कर्स ही वैक्सीन लेने के लिए सामने नहीं आ रहे हैं. तीन करोड़ फ्रंटलाइन वर्कर्स में से केवल 65 प्रतिशत ने ही पिछले 90 दिनों में वैक्सीन की पहली डोज ली है, जबकि 50 प्रतिशत दूसरी डोज ले चुके हैं.
सरकार इन वैक्सीन नहीं लेने वाले कोरोना योद्धाओं के बारे में चिंतित है. उनके बीच वैक्सीन को लेकर ङिाझक स्पष्ट दिख रही है. यह चिंताजनक स्थिति है क्योंकि वे सीधे तौर पर इस घातक महामारी से निपट रहे हैं. विशेषज्ञों और इंडियन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा भी सुझाई गई वैक्सीन को लेने से इंकार करने वालों पर सरकार ने कुछ कार्रवाई करने के बारे में भी सोचा. लेकिन यह कठिन समय है और सरकार वैक्सीन लेने से इंकार करने वालों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई करने का जोखिम नहीं ले सकती.
ऐम्स के डायरेक्टर और प्रधानमंत्री की कोविड फोर्स के सदस्य डॉ. रणदीप गुलेरिया का कहना है कि यह हिचकिचाहट इसलिए हो सकती है क्योंकि वे इंतजार करना और इसके बारे में अधिक जानकारी हासिल करना चाहते हैं. उन्होंने विस्तार से तो नहीं बताया लेकिन कई लोग इसलिए चिंतित हैं क्योंकि सरकार टीकाकरण के बाद की प्रतिकूल घटनाओं के आंकड़ों को साझा नहीं कर रही है.
हालांकि सरकार ने संसद को बताया है कि 89 प्रतिकूल घटनाएं हुईं और उनमें से कोई भी टीकाकरण के कारण नहीं थी. लेकिन 13 मामलों को छोड़कर ऐसी मौतों के कारणों को नहीं बताया गया है.