तापसी पन्नू और अनुराग कश्यप के खिलाफ इनकम टैक्स के छापे में क्या-क्या मिला और क्यों इसे 'नाकाम' कहा जा रहा है
By हरीश गुप्ता | Published: March 11, 2021 11:03 AM2021-03-11T11:03:06+5:302021-03-11T13:48:42+5:30
हाल में अनुराग कश्यप, तापसी पन्नू और कुछ अन्य के खिलाफ इनकम टैक्स विभाग के छापे सुर्खियों में रहे. हालांकि, इससे क्या कुछ मिला, ये जानना भी बड़ा दिलचस्प है.
अनुराग कश्यप, तापसी पन्नू और अन्य के खिलाफ पिछले सप्ताह आयकर विभाग द्वारा मारे गए छापों ने कुछ नए मापदंड कायम किए हैं. आयकर विभाग के छापों को लेकर नियम और तौर-तरीके लिखित और स्पष्ट तौर पर परिभाषित हैं.
ताजा मामले में विभाग के 168 कर्मचारियों ने कुछ दिन चार शहरों में 28 स्थानों पर छापे मारे. इस उम्मीद के साथ कि कर चोरी कर छिपाई गई ढेर सारी नगदी, संपत्ति और ‘सबूत’ हाथ लगेंगे.
छापे के बाद सीबीडीटी द्वारा जारी बयान काफी रोचक हैं. ‘‘अग्रणी अभिनेत्री के यहां ‘सबूत’ के तौर पर पांच करोड़ के भुगतान की रसीद, " 20 करोड़ की कर चोरी, शेयरों के लेन-देन में अन्य द्वारा लगभग "350 करोड़ की हेराफेरी पाई गई.’’
सीबीडीटी के बयान में पेरिस के फ्लैट का कोई जिक्र नहीं था और न ही किसी ज्वैलरी की जब्ती का. जब विवाद थमने का नाम ही नहीं ले रहा था तो वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने मैदान संभाला. उन्होंने कहा कि 2013 में यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान इन्हीं लोगों ने छापा मारा था और तब कोई हो-हल्ला नहीं हुआ.
उन्होंने इस बात का जिक्र टाल दिया कि उस छापे के बाद एनडीए सरकार के सात साल में क्या हुआ. पन्नू ने तो छापा मारे जाने का ही खंडन कर दिया. इस सबके बीच चर्चा इस बात को लेकर है कि क्या छापों के दौरान तय नियमों का पालन किया गया.
नियमों के मुताबिक इस तरह के छापे तभी मारे जाते हैं जब संदिग्ध के पास ढेर सारी नगदी होने की पक्की जानकारी हो. अगर नियमों की बात की जाए तो यह छापा ‘नाकाम’ कहा जाएगा. जांच विभाग की कमान थामने वाले एक पूर्व सीबीडीटी प्रमुख ने कहा, ‘‘ऐसे मामलों में सर्वेक्षण किए जाते हैं छापे नहीं.’’ लेकिन जब बात केवल प्रचार की हो तो इसकी फिक्र किसे.
मारो और चल पड़ो...
आइटम नंबर की बात आती है तो आमतौर पर किसी थिरकते फिल्मी गाने की याद आती है. लेकिन नंबर कई बार बहुत कड़वा सच भी उगल जाते हैं. हाल ही में वित्तमंत्री ने पिछले 10 साल में सर्वे, छानबीन, जब्ती और जांच के बाद दर्ज आयकर चोरी के मामलों से संबंधित आंकड़े जारी किए.
उद्देश्य था यह बताना कि 2014 में सत्ता में आने के बाद केंद्र सरकार किस तरह से कर चोरों के पीछे हाथ धोकर पड़ गई थी. वित्तमंत्री द्वारा 2010 से उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के मुताबिक यूपीए के शासनकाल में 1377 मामलों में से केवल 116 ही सजा के अंजाम तक पहुंचे.
सजा का प्रतिशत निराशाजनक 8.42% था. जाहिर है इससे यूपीए की छवि नकारात्मक दिखने लगी. एनडीए के छह साल में मामले लगभग नौ गुना उछलकर 11691 तक पहुंच गए. और सजा? केवल 292 में. तो छह साल की सजा की दर क्या रही? बेहद निराशाजनक 2.49% .
2017-18 में सबसे ज्यादा 4527 मामले दर्ज किए गए, लेकिन सजा हुई केवल 68 में. यानी सजा की दर तकरीबन 1-1.5%. नॉर्थ ब्लॉक के अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक फिलहाल मौसम केवल गोली दागकर चल पड़ने का है।
70 लाख किसानों को तोहफा
ममता बनर्जी निश्चित तौर पर उस दिन को कोस रही होंगी, जब उन्होंने 2019 में अपने राज्य में प्रधानमंत्री-किसान योजना को लागू नहीं करने का ऐलान किया था. इस योजना के तहत 2.5 हेक्टेयर तक की जमीन वाले किसान को केंद्र सरकार द्वारा हर साल 6000 दिए जाते हैं.
सीधे खाते में हस्तांतरित होने वाली इस राशि का फायदा अब तक आठ करोड़ किसान परिवार उठा चुके हैं. प. बंगाल की मुख्यमंत्री ने तो केंद्र के साथ लाभ के पात्र किसानों का डेटा तक साझा करने से इंकार कर दिया था.
प. बंगाल में 71.23 लाख किसान परिवार हैं, जिनमें से 96% छोटे और मझोले किसान हैं. इनके पास औसतन 0.77 हेक्टेयर जमीन है. पिछले माह ममता ने काफी ना-नुकुर के बाद ऐसे तीन लाख किसानों का डेटा केंद्र को भेजा. यह काफी देरी से उठाया गया कदम था.
भाजपा ने ऐलान कर दिया कि किसानों को तीन साल (2019, 2020, 2021) की राशि एक साथ, यानी " 18,000 एकमुश्त मिलेंगे. बेहद नजदीकी विधानसभा चुनाव में यह दांव ममता पर भारी पड़ सकता है. और ममता शिकायत करे तो किससे.
बंगाल से किनारा क्यों?
राहुल गांधी विधानसभा चुनावों के लिए तमिलनाडु, केरल, असम और पुडुचेरी में जोरदार प्रचार में जुटे हुए हैं. लेकिन उन्होंने प. बंगाल से किनारा कर रखा है. अंदरूनी सूत्रों के मुताबिक राहुल चाहते हैं कि प. बंगाल में कांग्रेस का प्रचार अभियान ज्यादा तेज न हो. तो क्या आलाकमान ममता को ही सत्ता में बने रहने देना चाहता है? मेरा और आपका अनुमान शायद एक ही होगा.