हरीश गुप्ता का ब्लॉग: इतिहास से सबक ले रहे हैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
By हरीश गुप्ता | Published: February 25, 2021 09:14 AM2021-02-25T09:14:04+5:302021-02-25T09:14:20+5:30
चीन भले ही गलवान घाटी में पीछे हटा है लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सतर्क हैं. 1962 में भी कुछ ऐसा ही हुआ था जब चीन पीछे तो हटा था लेकिन कुछ दिन बाद उसने आक्रमण कर दिया था.
इसमें कोई शक नहीं कि गलवान घाटी के फिंगर एरिया से चीनी सैनिकों की वापसी को प्रधानमंत्री मोदी के प्रशंसक उनकी ‘ऐतिहासिक’ जीत मान रहे हैं. बेशक चीनी सैनिकों की वापसी के दृश्यों से उत्साह का वातावरण बना है और इसका स्वागत किया गया है. लेकिन यह पहली बार नहीं है जब गलवान घाटी से चीनी सैनिक पीछे हटे.
7 जुलाई 1962 को पहली बार इसी गलवान घाटी से उन्होंने एकतरफा वापसी की थी, जिससे देश भर में खुशी का माहौल पैदा हुआ था और तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू को भी राहत मिली थी. वास्तव में भारत तब गलवान घाटी से एक इंच भी पीछे नहीं हटा था. लेकिन चीन का पीछे हटना एक फंदा था क्योंकि 96 दिनों बाद 20 अक्तूबर 1962 को वापस लौट कर उसने भारत पर आक्रमण कर दिया था.
भारत को तब अपमानजनक हार झेलनी पड़ी थी. प्रशंसक भले ही इतिहास के उस सबक को भूल गए हों लेकिन मोदी नहीं भूले हैं. वे सामने आने वाले खतरों के प्रति सजग हैं और यही कारण है कि न तो मोदी और न ही एनएसए अजित डोवाल ने इस बारे में एक शब्द भी कहा है.
यहां तक कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी 11 फरवरी को संसद में बयान देते समय इस बारे में विस्तार से कुछ नहीं कहा. विदेश मंत्रालय ने भी समझौते के बारे में ज्यादा कुछ नहीं कहा है. कारण यह है कि यदि चीनी सेना पैंगोंग त्सो से पीछे हटी है तो भारत भी कैलाश रेंज में राचिन ला और रेजांग ला हिल्स से पीछे हटा है.
भारत अब डेपसांग पठार के हॉट स्प्रिंग, गोगरा से पीछे हटने के लिए चीनी सेना पर दबाव बनाए हुए है. मोदी सतर्क निगाहों से देख रहे हैं कि चीन आने वाले दिनों, महीनों और यहां तक कि वर्षो में क्या करता है.
मोदी को गहरा आघात पहुंचा है. आखिरकार, उन्होंने ही वर्ष 2014 में गुजरात रिवरफ्रंट पर शी जिनपिंग को आमंत्रित किया था और दोनों को एक साथ झूला झूलते देखा गया था. लेकिन अप्रैल 2020 की घुसपैठ ने सब कुछ बदल दिया. उन्होंने अतीत से सबक लेकर चीन को आगे नहीं बढ़ने देने का निश्चय किया है.
व्यापार और सीमा के बीच जुड़ाव
चीन और पाकिस्तान के साथ संबंधों को निभाने में मोदी ने दो बड़े परिवर्तन किए हैं : पहला यह कि व्यापारिक सौजन्य और सीमा पर मुठभेड़ एक साथ नहीं चल सकते और दूसरा, विदेश मंत्रालय को रक्षा बलों द्वारा जमीनी स्तर पर लिए जाने वाले फैसलों में हावी होने की अनुमति नहीं है.
मोदी ने दिसंबर 2015 में पाकिस्तान की अपनी आकस्मिक असफल यात्र के बाद पाकिस्तान के साथ सभी संबंध तोड़ दिए थे. ठीक यही चीज चीन के साथ की गई, जब अप्रैल 2020 के बाद, कोविड संकट के बीच सीमा पर तनाव चरम पर पहुंच गया.
व्यापार संबंधों को रातोंरात खत्म नहीं किया जा सकता है. लेकिन चीनी एप्स पर प्रतिबंध लगाकर, 5जी टेक्नालॉजी में चीन को प्रवेश नहीं देकर और एफडीआई में मुक्त प्रवाह की अनुमति नहीं देकर इसकी गति को धीमा किया गया है.
दूसरा, विदेश मंत्रालय की शक्तियों को बरकरार रखते हुए, जमीनी स्तर पर स्थितियों से निपटने के लिए सैन्य बलों को खुली छूट दे दी गई है. निश्चित रूप से इसमें विदेश मंत्रालय पर्दे के पीछे से तो सक्रिय रहेगा ही.
मोदी ने राहुल को कैसे चौंकाया
राहुल गांधी ने ‘मोदी भक्तों’ को शायद अनजाने में ही पुडुचेरी में यह कहकर खुशी दे दी है कि दिल्ली में एक मत्सय मंत्रलय भी होना चाहिए. यह एक भूल थी क्योंकि मोदी ने जून 2019 में ही ऐसा मंत्रलय बना दिया था और गिरिराज सिंह उस विभाग के मंत्री हैं. लेकिन जो बात मजाक में डूबकर रह गई, वह यह कि राहुल गांधी चाहते थे कि मछुआरों को किसान माना जाए.
वे चाहते थे कि मछुआरों को भूमि के किसानों की तरह ‘समुद्र का किसान’ माना जाए. लेकिन उनके संदेश को मजाक के बीच अनदेखा कर दिया गया और मोदी ने दिल्ली में बैठे-बैठे उसके मर्म को समझ लिया. वे चुपचाप काम करते हैं और रातोंरात निर्णय लेते हैं.
अगले दिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने घोषणा कर दी कि नौ राज्यों और 4 केंद्रशासित राज्यों के मछुआरों को किसानों के रूप में माना जाएगा. शाह यहीं पर नहीं रुके. उन्होंने घोषणा की कि लाखों मछुआरे पीएम किसान योजना के लाभ के हकदार होंगे और हर साल 6000 रु. पाएंगे.
जाहिर है कि सभी चुनावी राज्यों-केरल, तमिलनाडु, प. बंगाल और पुडुचेरी के मछुआरों को इसका सीधा फायदा होगा. फिशरी सव्रे ऑफ इंडिया, 2003 के अनुसार, भारत में मछुआरों की आबादी 1.44 करोड़ थी.
नाना पटोले होने का महत्व
राहुल गांधी भले ही तीन कृषि कानूनों को लेकर मोदी पर तीखा हमला करने में व्यस्त हैं, लेकिन विडंबना यह है कि नाना पटोले के हटने के बाद एआईसीसी के पास पिछले एक साल से किसान कांग्रेस का प्रमुख नहीं है.
अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी द्वारा पीसीसी चीफ बने नाना पटोले के लिए पद को खाली रखा गया था. शायद वे किसान कांग्रेस को भी पर्दे के पीछे से चला सकते हैं!