ब्लॉग: अगले उपराष्ट्रपति को लेकर सुगबुगाहट तेज, राजनाथ सिंह के नाम की भी चर्चा

By हरीश गुप्ता | Published: April 21, 2022 07:51 AM2022-04-21T07:51:12+5:302022-04-21T07:52:37+5:30

देश के अगले उपराष्ट्रपति पद के लिए कई दिलचस्प नाम चर्चा में हैं. राजनाथ सिंह भी इनमें एक हैं. एम. वेंकैया नायडू का कार्यकाल भी आगे जारी रह सकता है.

Harish Gupta blog Blog: buzz on next Vice President, Rajnath Singh's name also in discussion | ब्लॉग: अगले उपराष्ट्रपति को लेकर सुगबुगाहट तेज, राजनाथ सिंह के नाम की भी चर्चा

अगले उपराष्ट्रपति को लेकर सुगबुगाहट तेज (फाइल फोटो)

राष्ट्रपति चुनाव के तुरंत बाद अगस्त में होने वाले उपराष्ट्रपति के चुनाव के संबंध में सत्ता के गलियारों में फुसफुसाहट शुरू हो गई है. राष्ट्रपति चुनाव के मुद्दे पर कुछ हफ्ते पहले इस कॉलम में चर्चा की गई थी. अब पता चला है कि अगले उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के लिए भी शीर्ष स्तर पर चर्चा शुरू हो गई है.

चूंकि उपराष्ट्रपति राज्यसभा का सभापति भी होता है, इसलिए वह उच्च सदन के सुचारु कामकाज में सक्रिय भूमिका निभाता है. कुछ अपवादों को छोड़कर, अतीत में अधिकांश उपराष्ट्रपतियों को संसद के कामकाज का काफी अनुभव था. वे या तो संसद या राज्यों में विधायिका और मंत्रिमंडलों के सदस्य थे.

राष्ट्रपति चुनावों के विपरीत, उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के सभी 786 सदस्यों द्वारा किया जाता है, जिसमें 14 मनोनीत सांसद (राज्यसभा में 12 और लोकसभा में दो) शामिल हैं. जम्मू और कश्मीर से चार राज्यसभा सांसद इस साल के उपराष्ट्रपति चुनाव में भाग नहीं ले पाएंगे क्योंकि वहां विधानसभा नहीं है. एनडीए के पास वर्तमान में लोकसभा में 336 सीटें हैं और राज्यसभा में लगभग 124 सीटें हैं, जो कुल 460 होती हैं. 

यह संख्या बढ़ सकती है यदि बीजद, वाईएसआर-कांग्रेस, जनता दल (एस), बसपा और अन्य क्षेत्रीय दल एनडीए उम्मीदवार को समर्थन का फैसला करते हैं. मौजूदा द्विवार्षिक चुनावों के बाद भाजपा के पक्ष में स्थिति में और सुधार हो सकता है, जब जुलाई में 60 और राज्यसभा सीटों के लिए चुनाव होंगे.

राजनाथ सिंह सूची में सबसे ऊपर

उपराष्ट्रपति पद के लिए कई नाम चर्चा में हैं और उनमें से प्रत्येक के पीछे एक मजबूत तर्क है. कुछ अज्ञात कारणों से राष्ट्रपति न बन पाएं तो उपराष्ट्रपति पद के लिए सबसे प्रमुख नाम एम. वेंकैया नायडू का है. आखिरकार, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने दस साल (1952-1962) तक पद संभाला और डॉ. हामिद अंसारी (2007-2017) ने भी यही किया. हालांकि, अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि उभरती राजनीतिक स्थिति को देखते हुए इसके लिए संभावनाएं बहुत उज्ज्वल नहीं हैं.

भाजपा पर नजर रखने वालों का कहना है कि पार्टी इन दिनों पीढ़ीगत बदलाव के दौर से गुजर रही है. अगर मोदी के पहले कार्यकाल में लालकृष्ण आडवाणी, एमएम जोशी, यशवंत सिन्हा और 75 वर्ष के पार के अन्य राजनेताओं को दरकिनार किया गया, तो 2021 के कैबिनेट फेरबदल में अटल-आडवाणी युग के 12 मंत्रियों को हटा दिया गया. 

ये दर्जन भर मंत्री 75 साल के कट ऑफ मार्क से काफी नीचे थे. यह तर्क दिया जाता है कि शीर्ष पर परिवर्तन के साथ प्रत्येक पार्टी एक पीढ़ीगत परिवर्तन से गुजरती है. इसलिए जब मोदी-शाह-नड्डा की टीम पार्टी और सरकार में हर स्तर पर नए चेहरे ला रही है तो इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है. 32 कैबिनेट मंत्रियों और स्वतंत्र प्रभार वाले दो राज्य मंत्रियों की वर्तमान सूची पर करीब से नजर डालने से पता चलता है कि राजनाथ सिंह, नितिन गडकरी और मुख्तार अब्बास नकवी को छोड़कर उनमें से अधिकांश पसंदीदा नेता हैं. 

इनमें से ज्यादातर या तो फर्स्ट टाइमर हैं, फ्रेशर हैं या यहां तक कि आरएसएस से बाहर के भी हैं. अगर राजनाथ सिंह ने अपार लचीलापन दिखाया है, तो सार्वजनिक रूप से गडकरी की स्पष्ट टिप्पणियों ने कई बार लोगों की भौंहें चढ़ा दीं. मोदी ने उदासीन रहने की जबर्दस्त क्षमता दिखाई है और यहां तक कि मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक की उनके और सरकार के खिलाफ की गई टिप्पणियों को भी नजरअंदाज कर दिया है.

इस संदर्भ में भाजपा में कई लोगों का मानना है कि राजनाथ सिंह को अगस्त 2022 में अगले उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में आगे बढ़ाया जा सकता है. चतुर ठाकुर रायसीना हिल्स के विशाल राष्ट्रपति भवन में रहने के इच्छुक हैं.  

आनंदीबेन पटेल भी एक दावेदार

इस बार किसी महिला को उपराष्ट्रपति बनाए जाने की भावना बढ़ रही है. अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि अन्य महिला उम्मीदवारों की तुलना में आनंदीबेन पटेल का इस पद पर बड़ा दावा है. उन्हें समय से पहले गुजरात के मुख्यमंत्री के पद से हटा दिया गया था. पीएम मोदी ने उन्हें मध्य प्रदेश का राज्यपाल बनाया और बाद में यूपी स्थानांतरित कर दिया गया. वे शक्तिशाली पटेल समुदाय से ताल्लुक रखती हैं. 

उपराष्ट्रपति के रूप में उनके शामिल होने से गुजरात में पटेलों को एक मजबूत संकेत जा सकता है और पार्टी को इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में 150 सीटों का लक्ष्य हासिल करने में मदद मिल सकती है.

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