Blog: ये दौलत भी ले लो ये शौहरत भी ले लो....मगर मुझको लौटा दो वो बचपन की छुट्टियां

By ऐश्वर्य अवस्थी | Published: April 3, 2018 12:39 PM2018-04-03T12:39:42+5:302018-04-03T12:50:41+5:30

पिछले कई दिनों से मुझे बचपन वाली गर्मी की स्कूल की छुट्टियों की बड़ी याद आ रही है। क्या दिन थे वे जो गए तो फिर कभी आए ही नहीं।

Happy times come and go: Missing summer vacations to enjoy holidays | Blog: ये दौलत भी ले लो ये शौहरत भी ले लो....मगर मुझको लौटा दो वो बचपन की छुट्टियां

Blog: ये दौलत भी ले लो ये शौहरत भी ले लो....मगर मुझको लौटा दो वो बचपन की छुट्टियां

बचपन..बचपन कहां गया तू बचपन....पिछले कई दिनों से मुझे बचपन वाली गर्मी की स्कूल की छुट्टियों की बड़ी याद आ रही है। क्या दिन थे वे जो गए तो फिर कभी आए ही नहीं। घर से ऑफिस, ऑफिस से घर वाली जिंदगी में अगर कुछ सबसे ज्यादा वो छुट्टियां याद आती हैं। जिंदगी आज इतनी तेज भाग रही है कि ना जाने क्या क्या पीछे छूटता जा रहा है। 

वो भी क्या दिन थे जब मई-जून की गर्मी की छुट्टियों का इंतजार शायद हम जुलाई से ही करने लगते थे। अगर अपनी बात करूं तो मैं बचपन से ही ऐसी मस्ती करने वाली लड़की थी जब पेपर हुआ करते थे तो कभी ये नहीं सोचती थी कि मेरी परीक्षा कैसी होगी, बस ये देखती थी कि भगवान कब पेपर खत्म होंगे और छुट्टियां शुरू होंगी। क्योंकि घर में पूरा दिन चहल कदम करने का मौका जो मिलने वाला होता था। छुट्टियों में वो नानी के घर जाना और पूरा दिन बाग में घूमना, नए नए व्यंजन खाना वो खातिरदारी सब ना जानें कहां पंख लगाकर उड़ गए हैं।

याद आता है वो 10 का नोट

जहां छुट्टियां खत्म हुई वहीं रिश्तेदारों का छुट्टियां बिताने का दौर भी शुरू हो जाता था। इन रिश्तेदारों की लिस्ट में जो नाम सबसे ऊपर रहता था वो था बुआ जी का। ये शायद सभी के ही घर होता होगा। ज्वाइंट फैमिली से होने के कारण बुआ लोगों का आना छुट्टियों में लगा ही रहता था, एक आती तो दूसरी जाती। खैर यही वो समय होता था जब पूरा घर एक साथ होता था। सब खुश होते थे। बुआ के आने और उनके वापस जाते समय पैसे देकर जाना भी क्या गजब था। कितनी खुशी देता था वो 10 का नोट। आज इतना कमाकर भी वो खुशी नहीं मिल पाती थी। 

एक बात और खास होती थी बुआ या कोई भी रिश्तेदार 10 दिन से ज्यादा अच्छा नहीं लगता था। ऐसा लगता था मानों ये हमसे हमारी जागीर छीनने का काम कर रहे हों। जब भी दादा जी बुआ के बच्चों को ज्यादा प्यार करते तो दिल करता था ये छुट्टियां आती क्यों हैं कम से कम दादा जी प्यार तो नहीं बंटता।

दिन पर खेल और फिर सो जाना

सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक सब ना जाने कितने खेल खिलौनों का तमाशा होता था। भाइयों के साथ क्रिकेट को कभी सहेलियों के साथ घर-घर खेलना। वो खेल जो पूरी साल हमारा छुट्टियों के आने तक इंतजार करते थे आज किसी संदूक में बंद हो गए हैं। पूरा दिन पागलों की तरह खेलना और फिर रात तो बिना खाए ही अक्सर सो जाते थे। कितनी मासून थीं वो छुट्टियां जिनकी थकाम भी लुभावनी लगती थी।

होमवर्क के बोझ में खोती छुट्टियां

आज छुट्टियां होम वर्क के बोझ में दबती सी नजर आने लगी हैं। स्कूलों में छुट्टियों के दिनों में इतना सारा होमवर्क बच्चों को दिया जाने गया है कि शायद उनको इन छुट्टियों के आने और उन्हें उसी अंदाज में जीने का मौका ही नहीं मिलता जो कभी हमने जिया था। हर दिन के हिसाब से छुट्टियों पर स्कूल के काम को बोझ लाद दिया जाता है। जब तक बच्चे इनको उतार पाते तब तक ये छुट्टियों अलविदा कर कर जा चुकी होती हैं।

नानी घर नहीं हिल स्टेशन हो गया है लुभावना

एक बदलाव और देखने को मिल रहा है। वो ये है कि आज के समय में बच्चे छुट्टियों में नानी के घर ना जाकर किसी हिट स्टेशन पर जाते हैं। आज के बच्चे बदल रह हैं या मां बात कोई बताए जो खुशी और जो यादों का घरौंदा छुट्टियों नें नानी का घर देता है वो कोई भी खूबसूरत से खूबसूरत जगह नहीं सकती है। नानी का घर ही तो होता था जो दिल में प्यार और जिंदगी में यादों की गुल्लक को भरता था।

Web Title: Happy times come and go: Missing summer vacations to enjoy holidays

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे