ब्लॉग: हिमालय की 188 ग्लेशियर झीलें अगर फूट गईं तो...?

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: April 11, 2024 10:48 AM2024-04-11T10:48:20+5:302024-04-11T10:48:26+5:30

सार्वजनिक होते ही एआई उसे हड़प लेगा और आपका विरोध अरण्य रोदन बन कर रह जाएगा। कौन जानता है कि सृजनात्मकता और मानवता के बगैर, एआई से संचालित दुनिया कुछ वर्षों के भीतर ही कैसी होगी!

global warming If 188 glacier lakes of Himalayas burst | ब्लॉग: हिमालय की 188 ग्लेशियर झीलें अगर फूट गईं तो...?

ब्लॉग: हिमालय की 188 ग्लेशियर झीलें अगर फूट गईं तो...?

जहां के लोग अपने पर्यावरण के प्रति इतने सजग हों कि जरा सा प्रदूषण करने से भी बचते हों और अगर किसी ने पॉलिथीन या पर्यावरण के लिए घातक अन्य कोई कचरा फैलाया है तो उसे बीन कर उसका सुरक्षित निपटान करते हों; जहां वन्य जीवों को भी लोग अपने परिवार का सदस्य मानते हों और दुर्लभ हो चले हिम तेंदुए के किसी राह भटके शावक को जंगली कुत्तों या बाहरी पर्यटकों से बचाने के लिए गांववाले 17 घंटे पहरेदारी कर उसकी मां से उसे मिलवाते हों, कितनी बड़ी विडंबना है कि उसी लेह-लद्दाख के लोगों को अपने यहां के पर्यावरण को कथित विकास से बचाने के लिए अनशन-आंदोलन करने को मजबूर होना पड़ रहा है।

यहां का पारिस्थतिकी तंत्र कितना नाजुक हो चुका है, उसका उदाहरण यह है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के डिजास्टर मैनेजमेंट डिवीजन और हिमालय पर्यावरण एक्सपर्ट की टीम द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि यदि हिमालयी राज्यों में सात रिक्टर पैमाने का भूकंप आ गया तो 188 ग्लेशियर झीलें फूट जाएंगी और इससे आने वाली बाढ़ से भयानक तबाही मचेगी।

सरकारें तो हम विकास लाने के लिए ही चुनते हैं, पर ऐसा अंधाधुंध विकास भी किस काम का कि सबकुछ ले डूबे! जिनके हाथों में सत्ता है वे कैसे इतने विवेकहीन हो सकते हैं कि विकास की वास्तविक परिभाषा ही न समझ सकें? कहीं पर्दे के पीछे खेल कथित विकास में पूंजी लगाने वाले पूंजीपतियों का तो नहीं!

खेल तो दुनिया को युद्ध की आग में झोंक देने वालों का भी समझ में नहीं आता। गुस्सा क्षणिक हो तो समझ में आता है, लेकिन सालोंसाल अगर ठंडे दिमाग से नरसंहार किया जाता रहे तो मानवता के लिए स्थान कहां बचता है! खंडहरों के बीच स्तब्ध खड़े या खून से लथपथ बच्चों की इक्का-दुक्का फोटो के वायरल होने पर समूची दुनिया की संवेदना जाग जाती है लेकिन कौन नहीं जानता कि दुनिया में करोड़ों बच्चे इस तरह की यातना को झेल रहे हैं?

सवाल चाहे डिप्रेशन में जा चुके यूक्रेन के 25 लाख बच्चों का हो या समूची गाजापट्टी के बच्चों की मेंटल हेल्थ का; शुतुरमुर्ग की तरह रेत में गर्दन दबाकर अपनी मानवता के जिंदा होने का भ्रम पाले रखना ही क्या हम सबकी नियति है!

नियति तो शायद दुनिया की भी किसी को नहीं मालूम, क्योंकि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस(एआई) जिस तरह से दुनियाभर के डेटा का उपयोग करके सर्वज्ञानी बनता जा रहा है, उससे कॉपीराइट जैसे कानूनों के बेमानी होने का खतरा पैदा हो गया है। आप अपनी सृजनात्मकता पर अपना अधिकार होने का दावा तभी तक कर सकते हैं जब तक उसे दुनिया की नजरों से बचाए रखें।

सार्वजनिक होते ही एआई उसे हड़प लेगा और आपका विरोध अरण्य रोदन बन कर रह जाएगा। कौन जानता है कि सृजनात्मकता और मानवता के बगैर, एआई से संचालित दुनिया कुछ वर्षों के भीतर ही कैसी होगी!

Web Title: global warming If 188 glacier lakes of Himalayas burst

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