ब्लॉग: महाकाव्य के नायक जैसा था महात्मा गांधी का व्यक्तित्व

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Published: October 2, 2018 08:18 PM2018-10-02T20:18:14+5:302018-10-02T20:22:14+5:30

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जीवन महाकाव्य के एक ऐसे नायक के चरित्र सा है जो समग्र भारतीय जीवन के लिए एक दृष्टि उपलब्ध कराता है परंतु जिसके सोच-विचार की पृष्ठभूमि में सारी मनुष्य जाति और मानवता की चिंता व्याप्त है।

gandhi jayanti mahatma gandhi was like hero of en epic | ब्लॉग: महाकाव्य के नायक जैसा था महात्मा गांधी का व्यक्तित्व

महात्मा गांधी का जन्म दो अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबंदर में हुआ था। (फाइल फोटो)

गिरीश्वर मिश्र

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का जीवन महाकाव्य के एक ऐसे नायक के चरित्र सा है जो समग्र भारतीय जीवन के लिए एक दृष्टि उपलब्ध कराता है परंतु जिसके सोच-विचार की पृष्ठभूमि में सारी मनुष्य जाति और मानवता की चिंता व्याप्त है। उन्होंने परदेसी राजा और शोषण करने वाली औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था के बीच गरीब और टूटे-बिखरे भारत के समाज के कड़वे सच की नब्ज पकड़ी। अपने अध्ययन और उससे भी ज्यादा भारत और विदेश के निजी अनुभवों से गुजरते हुए उन्होंने व्यापक धरातल पर तत्कालीन सामाजिक-राजनैतिक परिस्थितियों पर गहन विचार के साथ-साथ उससे जुड़ने तथा बदलने की कार्ययोजना बनाई और उस पर अमल किया। 

उन्होंने समस्त मानवता और मानव जीवन के मद्देनजर एक वैश्विक अध्यात्म की समझ विकसित की। उनके समर्पित सामाजिक जीवन की घटनाएं देखने पर यही लगता है कि उनके सोच-विचार और कर्म ऐसे ही अध्यात्म-भाव से अनुप्राणित हैं।

‘सत्य ही ईश्वर है’ यह खोज और उसे स्वीकार कर उसकी राह पर चलना अदम्य साहस का परिचायक है। वे कहते हैं कि ‘यह सत्य रूप परमेश्वर मेरे लिए रत्न चिंतामणि सिद्ध हुआ है।’ इसकी पूर्ति में ही वे अनावश्यक दिखावा और आडंबर त्याग कर शरीर, मन और आत्मा तीनों के लिए जरूरी खुराक जुटाते रहे। अस्तेय, अहिंसा और अपरिग्रह के व्रत गांधीजी के दैनिक जीवन के स्वाभाविक अंग बन गए थे। इन सबका आधार सत्य ही है।

स्वराज्य की कल्पना

देश को स्वतंत्रता तो मिली,  विदेशी सत्ता से छुटकारा भी मिला परंतु रचनात्मकता पर यथेष्ट ध्यान नहीं दिया गया। स्वावलंबन और राष्ट्र निर्माण का काम पिछड़ गया।   हमारी राजनैतिक दृष्टि विभक्त चेतना वाली व दुविधाग्रस्त थी। हम महात्मा गांधी का समाजवाद भी चाहते रहे और विदेशी रास्ता भी अपनाते रहे। गांधीजी कहते थे कि ‘मैं भारत का उत्थान इसलिए चाहता हूं कि सारी दुनिया उससे लाभ उठा सके।

मैं यह नहीं चाहता कि भारत का उत्थान दूसरे देशों की नींव पर हो।’ वह स्वराज्य के द्वारा सारे विश्व की सेवा करने का स्वप्न देखते थे। आज पर्यावरण विनाश, चरित्र की गिरावट और हिंसा की विश्वव्यापी चुनौती हमें सोचने को बाध्य कर रही है कि हम शरीर, बुद्धि और आत्मा के संतुलित विकास पर विचार करें। आज तेज रोशनी में चौंधियाई आंखों से जब सब धुंधला नजर आ रहा है महात्मा गांधी का आलोक एक विकल्प प्रस्तुत करता है। 

(लेखक वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय के वाइस-चांसलर हैं।)

Web Title: gandhi jayanti mahatma gandhi was like hero of en epic

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