एफटीसीः त्वरित न्याय देने के बजाय काम के बोझ से दबते फास्ट ट्रैक कोर्ट, महाराष्ट्र में लंबित मामलों की संख्या 1.74 लाख से अधिक
By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: April 15, 2025 05:18 IST2025-04-15T05:18:01+5:302025-04-15T05:18:01+5:30
FTC: महाराष्ट्र में लंबित मामलों की संख्या 1.74 लाख से अधिक हो चुकी है, जबकि फास्ट ट्रैक कोर्ट की संख्या, जो वर्ष 2022 में 111 थी, 2025 में घटकर 100 ही रह गई है.

सांकेतिक फोटो
FTC: यह बात जितनी हैरानी की है, उतनी ही चिंता की भी कि त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के उद्देश्य से स्थापित फास्ट ट्रैक कोर्ट (एफटीसी) अब स्वयं मामलों की बढ़ती भीड़ से जूझ रहे हैं. महाराष्ट्र तो दोहरी समस्या से जूझ रहा है क्योंकि एक तरफ जहां यहां मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है, वहीं फास्ट ट्रैक कोर्ट की संख्या में कमी आती जा रही है.
राज्य में लंबित मामलों की संख्या 1.74 लाख से अधिक हो चुकी है, जबकि फास्ट ट्रैक कोर्ट की संख्या, जो वर्ष 2022 में 111 थी, 2025 में घटकर 100 ही रह गई है. यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि अदालतों पर काम का बोझ इतना ज्यादा है कि कई बार मुकदमों का फैसला आने में कई दशक लग जाते हैं.
हैरानी की बात यह है कि फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट केंद्र प्रायोजित योजना होने के बावजूद केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा ऐसी अदालतों के गठन के लिए पर्याप्त वित्तीय सहायता नहीं मिल पा रही. केंद्र सरकार मानती है कि न्याय राज्य का विषय है और वह राज्यों से ऐसी अदालतों की संख्या बढ़ाने का आग्रह कर रही है लेकिन कई राज्य वित्तीय और व्यवस्थागत समस्याओं के कारण ठोस कदम नहीं उठा पा रहे हैं.
14वें वित्त आयोग ने जघन्य अपराधों के मामलों; महिलाओं, बच्चों, वरिष्ठ नागरिकों, एचआईवी/एड्स आदि से संबंधित दीवानी मामले और पांच वर्ष से अधिक समय से लंबित संपत्ति संबंधी मामलों के निपटारे के लिए वर्ष 2015-20 के दौरान 1800 फास्ट ट्रैक कोर्ट (एफटीसी) की स्थापना की सिफारिश की थी, लेकिन हकीकत में वर्ष 2024 तक 863 एफटीसी का ही गठन किया जा सका,
जिसमें वर्तमान में 860 एफटीसी काम कर रहे हैं. सवाल यह है कि जब लंबित मामलों की संख्या बढ़ने के बावजूद फास्ट ट्रैक कोर्ट की संख्या ही नहीं बढ़ानी है तो इसके गठन का लक्ष्य ही कैसे हासिल होगा? कायदे से तो इन अदालतों में मामलों का निपटारा एक साल के भीतर हो जाना चाहिए, लेकिन देखने में आ रहा है कि अन्य अदालतों की तरह इन फास्ट ट्रैक कोर्ट में भी मामले सालोंसाल चल रहे हैं.
विभिन्न राज्यों में लंबित मामलों को देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि लंबित मामलों को निपटाने में कई दशकों का समय लग जाएगा. ऐसे में तो इन अदालतों की प्रभावकारिता ही खत्म हो जाएगी! दुर्भाग्य से लोक लुभावन और मुफ्त की योजनाओं के लिए तो सरकारें काफी धनराशि खर्च करती हैं लेकिन न्याय शीघ्र प्रदान करने के लिए वित्तीय व अन्य व्यवस्थाएं करने पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है. इस स्थिति को बदलने की जरूरत है, ताकि पीड़ितों को त्वरित न्याय प्रदान का लक्ष्य हासिल किया जा सके.