ब्लॉग: पूर्वोत्तर प्रदेशों में हिंसा के पीछे परदेसी हाथ?

By राजेश बादल | Published: May 30, 2023 01:58 PM2023-05-30T13:58:02+5:302023-05-30T14:01:36+5:30

सेना और अर्धसैनिक बलों के लिए स्थिति पर काबू पाना कठिन हो गया है। सतही तौर पर भले ही यह मैतेई और नगा-कुकी के बीच विवाद नजर आता हो, लेकिन परदे के पीछे की कहानी कुछ हिंदुस्तान की भौगोलिक और सांस्कृतिक-सामाजिक विविधता को ध्यान में रखते हैं तो पाते हैं कि इस मुल्क के सूबों में इतनी महत्वपूर्ण घटनाएं एक साथ घटती हैं कि सब पर नजर रखना एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आती है।

Foreigners behind violence in Northeast | ब्लॉग: पूर्वोत्तर प्रदेशों में हिंसा के पीछे परदेसी हाथ?

फाइल फोटो

Highlightsइंफाल में अत्याधुनिक विदेशी हथियारों से लैस सैकड़ों उग्रवादी घुसे हुए हैंमैतेई वहां बहुसंख्यक हैं मणिपुर जल रहा है आमतौर पर शांत रहने वाले इस खूबसूरत पहाड़ी प्रदेश के नागरिक इस दावानल से दुखी हैं।

पूर्वोत्तर प्रदेशों को भले ही सेवन सिस्टर्स के नाम से हम जाने-पहचानें, मगर यह भी सच है कि अरसे तक मिजोरम में इसी तरह की हिंसा और अलगाववादी प्रवृत्तियां पनपती रही हैं। मणिपुर जल रहा है आमतौर पर शांत रहने वाले इस खूबसूरत पहाड़ी प्रदेश के नागरिक इस दावानल से दुखी हैं। ऐसी हिंसा उन्होंने 74 साल में कभी नहीं देखी राजधानी इंफाल में अत्याधुनिक विदेशी हथियारों से लैस सैकड़ों उग्रवादी घुसे हुए हैं।

उनमें से चालीस मारे गए हैं। सौ से अधिक निर्दोष नागरिक जान गंवा चुके हैं। सड़कों पर लाशें बिखरी पड़ी हैं। सेना और अर्धसैनिक बलों के लिए स्थिति पर काबू पाना कठिन हो गया है। सतही तौर पर भले ही यह मैतेई और नगा-कुकी के बीच विवाद नजर आता हो, लेकिन परदे के पीछे की कहानी कुछ हिंदुस्तान की भौगोलिक और सांस्कृतिक-सामाजिक विविधता को ध्यान में रखते हैं तो पाते हैं कि इस मुल्क के सूबों में इतनी महत्वपूर्ण घटनाएं एक साथ घटती हैं कि सब पर नजर रखना एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आती है। एक प्रदेश के नागरिक नई सरकार के स्वागत जश्न में डूबे होते हैं तो दूसरा चुनाव के शोर-शराबे में डूबा होता है। तीसरा सूबा सूखे की मार झेल रहा होता है तो चौथे प्रदेश में बर्फबारी हो रही होती है।

पांचवां प्रदेश बाढ़ की विभीषिका से लड़ रहा होता है और छठवें में कम उत्पादन तथा कर्जवसूली से परेशान किसान आत्महत्या कर रहे होते हैं। ऐसे में एक तंत्र के लिए स्थानीय संवेदनाओं के मद्देनजर काम करना बेहद मुश्किल भरा हो जाता है। ईमानदारी की बात तो यह है कि दक्षिणी और सीमांत राज्यों की समस्याओं तथा उनके विकास की बाधाओं के बारे में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही हम गहराई से ध्यान नहीं दे सके हैं इसीलिए कभी एक राज्य में नक्सल समस्या विकराल रूप लेती रही है तो दूसरे में आतंकवाद जोर पकड़ता रहा है।

पूर्वोत्तर प्रदेशों को भले ही सेवन सिस्टर्स के नाम से हम जाने-पहचानें, मगर यह भी सच है कि अरसे तक मिजोरम में इसी तरह की हिंसा और अलगाववादी प्रवृत्तियां पनपती रही हैं। असम भी इसी तरह आंतरिक अशांति और खून-खराबे का शिकार रहा है। गोरखालैंड की मांग और दार्जीलिंग के इर्दगिर्द स्थानीय पृथकतावादी समूह पनाह पाते रहे हैं। पहली बार राजीव गांधी की सरकार ने इन मसलों पर गहराई से विचार किया था। अर्जुन सिंह के राज्यपाल रहने के दौरान पंजाब में आतंकवाद को जड़ से समाप्त करने के लिए संत लोंगोवाल के साथ राजीव सरकार ने समझौता किया था। यह समझौता जुलाई 1985 में हुआ था।

इसके अतिरिक्त मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट के नेता लालडेंगा ने राजीव गांधी सरकार के साथ जब जून 1986 में समझौता किया तो वहां शांति के नए दरवाजे खुले. मिजो नेशनल फ्रंट ने हथियार डाले और लोकतांत्रिक मुख्य धारा में शामिल हो गया। लालडेंगा मुख्यमंत्री बने यह तो केवल दो उदाहरण हैं। कहा जा सकता है कि जब-जब भी पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों को विकास की मुख्यधारा में शामिल किया गया तो अपनी पहचान के साथ शामिल हुए।
जहां तक मणिपुर के ताजा दौर की बात है, उसमें प्राथमिक तौर पर प्रशासन तंत्र की जिम्मेदारी दिखाई देती है। लगातार अपनी-अपनी पहचान के साथ रहती आ रही मैतेई और नगा-कुकी कभी आपस में खून खराबे के इस हालात तक नहीं पहुंचे।

नगालैंड और मणिपुर के बीच यदाकदा मतभेद पनपे भी तो उन्हें समझदारीपूर्वक सुलझा लिया गया लेकिन इस बार धीरे -धीरे परिस्थितियां गंभीर रूप लेती रहीं और स्थानीय सरकार तथा प्रशासन उसके विवेकपूर्ण हल खोजने की दिशा में काम नहीं कर पाया। यह बेतुकी बात थी कि सरकार ने वहां वनभूमि में निवास कर रहे नगा और कुकी जनजाति के लोगों को घुसपैठिया बताते हुए उन्हें बाहर खदेड़ने का निर्णय लिया। चूराचांदपुर के यह नगा - कुकी इससे खफा थे। उनमें अधिकतर ईसाई धर्मावलंबी हैं। भारतीय मतदाताओं को अपने ही मुल्क में घुसपैठिया बताने का यह अजीबोगरीब उदाहरण है।

मैतेई वहां बहुसंख्यक हैं और जब हाल ही में मणिपुर उच्च न्यायालय ने मैतेई समुदाय को जनजाति में शामिल करने का आदेश दिया तो इसी श्रेणी के नगा-कुकी भयभीत हैं कि अब उनके अधिकारों में कटौती हो जाएगी। इस अदालती आदेश ने आग में घी डालने का काम किया। राज्य सरकार ने यहां संवेदनशीलता नहीं दिखाई। इसके अलावा आपको याद होगा कि कुकी समुदाय के अनेक संगठन उग्रवादी समूहों में बंटे रहे हैं।

डॉक्टर मनमोहन सिंह की सरकार ने 2008 में उनके साथ संधि की और उनके खिलाफ सैनिक कार्रवाई रोक दी इसके बाद सब शांत चल रहा था पर राज्य सरकार ने इसी बरस 10 मार्च को दो संगठनों के साथ इकतरफा समझौता तोड़ने की घोषणा कर दी। जोमी रिवोल्यूश्नरी आर्मी और कुकी नेशनल आर्मी नाम के यह दोनों हथियारबंद संगठन हैं। इस तरह पहले से जारी तनाव ने एक और घातक शक्ल अख्तियार कर ली महत्वपूर्ण यह है कि पूर्वोत्तर के अधिकतर हथियारबंद संगठनों के तार भारत से बाहर भी जुड़ते हैं।

चीन और म्यांमार के मधुर संबंध इन दिनों इन सशस्त्र संगठनों के लिए बड़े काम के साबित हुए हैं। उन्हें म्यांमार के रास्ते हथियार मिलते रहे हैं और सैनिक प्रशिक्षण शिविरों में प्रशिक्षण भी मिलता रहा है। नौ साल पहले म्यांमार में चल रहे ऐसे ही कुछ शिविरों पर भारतीय सेना ने स्ट्राइक की थी। उसके बाद वाहवाही भी लूटी गई जाहिर है इससे म्यांमार ने अपमानित महसूस किया।

यह पहली बार नहीं था, जब इस तरह की कार्रवाई हुई पहले भी होती रही हैं लेकिन अब समीकरण बदले हुए हैं। म्यांमार में लोकतांत्रिक सरकार की मुखिया आंग सान सू ची जेल में बंद हैं और चीन सरकार वहां की फौजी हुकूमत को भारत के विरुद्ध जब तब उकसाती रहती है। हिंदुस्तान को ध्यान में रखना होगा कि जो समस्या देखने में घरेलू दिखाई देती है, उसके तार दूर कहीं किन्हीं ताकतों के हाथ में होते हैं। 

Web Title: Foreigners behind violence in Northeast

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