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कम्युनल-ब्रिगेड वही कर रहा है जिसकी उम्मीद थी, सेक्युलर-ब्रिगेड अपने गिरेबान में कब झाँकेगा?

By रंगनाथ | Updated: June 8, 2018 22:03 IST

सात जून को देश के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी राष्ट्रीय स्यंवसेवक संघ के नागपुर में आयोजित कार्यक्रम में शामिल हुए। मंच पर उनका स्वागत संघ प्रमुख मोहन भागवत ने किया।

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पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के कार्यक्रम में जाने की खबर आने के बाद से शुरू हुआ ड्रामा एंटी-क्लाइमेक्स पर ख़त्म हो चुका है। पूर्व राष्ट्रपति के आरएसएस के कार्यक्रम में जाने की खबर आते ही कांग्रेस और बीजेपी-विरोधी बौद्धिक खेमे ने उनके फैसले की आलोचना शुरू कर दी। कुछेक लोगों ने मुखर्जी का बचाव किया लेकिन ज्यादातर कांग्रेसी और बीजेपी-विरोधी उनके आरएसएस के न्योते के स्वीकार करने के फैसला का विरोध ही किया। मुखर्जी की बेटी और कांग्रेस नेता शर्मिष्ठा मुखर्जी तक ने भी उनका विरोध किया। शर्मिष्ठा ने कहा कि लोग ये भूल जाएंगे कि पूर्व राष्ट्रपति ने उस कार्यक्रम में कहा क्या था, लेकिन वहाँ की तस्वीर याद रखेंगे। शर्मिष्ठा के अलावा बाकियों ने पूर्व राष्ट्रपति के नागपुर जाने के खिलाफ वही तर्क दिए जो सेकुलर-ब्रिगेड के घिसे-पिटे मुहावरे बन चुके हैं।

सेकुलर-ब्रिगेड मानती है कि आरएसएस एक फासीवादी और सांप्रदायिक संगठन है। उसके कार्यक्रम में जाकर पूर्व राष्ट्रपति उसकी मान्यता और स्वीकार्यता प्रदान कर रहे हैं। मैं भी मानता हूँ कि आरएसएस एक सांप्रदायिक संगठन है लेकिन मुझे नहीं लगता कि आज आरएसएस को किसी कांग्रेसी नेता या पूर्व राष्ट्रपति के मान्यता और स्वीकार्यता की जरूरत है। सेकुलर-ब्रिगेड भूल रही है कि आज एक पूर्व आरएसएस कार्यकर्ता देश का राष्ट्रपति है, दूसरा प्रधानमंत्री है और तीसरे-चौथे अन्य वरिष्ठ संवैधानिक पदों पर काबिज हैं। ऐसे में सेकुलर-ब्रिगेड को सबसे पहले इस सवाल का जवाब देना चाहिए कि क्या आज सचमुच आरएसएस या बीजेपी को उनकी या कांग्रेस की मान्यता या स्वीकार्यता की जरूरत है?

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सेकुलर-ब्रिगेड को खुद से दूसरा अहम सवाल ये पूछना चाहिए कि उसे लोकतंत्र में सचमुच आस्था है या नहीं? लोकतांत्रिक देश में  महज किसी कार्यक्रम में किसी के आने-जाने से उसपर किसी खास विचारधार या संगठन से जुड़े होने का आरोप कैसे लगाया जा सकता है? सेकुलर-ब्रिगेड ने जिस तरह बीजेपी-आरएसएस को हौवा बनाया है उसका ज़मीनी असर उलटा होता दिखता है। ज़मीन पर इन संगठनों की लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही है। सेकुलर-ब्रिगेड इन संगठनों के अंतरविरोध और कथनी-करने के बीच भेद को सामने लाने के बजाय उनपर चिप्पियाँ चिपकाता रहता है। इन चिप्पियों से किसी भी तरह का नया जनमत नहीं तैयार होता। बीजेपी-आरएसएस विरोधियों के पुराने विचार इन चिप्पियों से पुष्ट होते हैं। और बीजेपी-समर्थकों के विचार भी इन चिप्पियों से पुष्ट होते हैं कि सेकुलर लोग तो बस इन दोनों संगठनों का गाली ही देते हैं। आरएसएस-बीजेपी लगातार ये दुष्प्रचार करते रहते हैं कि देश के सभी वामपंथी दल देश विरोधी होते हैं। ज़मीनी स्तर पर बीजेपी-आरएसएस अपने इस प्रोपगैंडा में काफी हद तक सफल नज़र आ रहे हैं। वामपंथी दलों औ बुद्धिजीवियों को आत्मविश्लेषण करना चाहिए न कि बीजेपी-आरएसएस पर "मासूम" जनता को बरगलाने का आरोप लगाकर फर्ज-अदायगी करके मुद्दे से हाथ झाड़ लेना चाहिए।

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सेकुलर-ब्रिगेड को ख़ुद से तीसरा सवाल ये पूछना चाहिए कि जिस संगठन से निकले लोग इस समय देश के नीति-नियंता हैं उसके संग "अछूत" जैसा बरताव करना क्या दिखाता है? इस रवैये पर यही कहा जा सकता है कि रस्सी जल गयी लेकिन बल नहीं गया। कुछ लोगों का तर्क है कि किसी संगठन या कार्यक्रम में न जाना भी एक तरह का संदेश है। निस्संदेह। लेकिन इस मसले पर यह तर्क केवल सुविधा भर का तर्क है। आरएसएस या बीजेपी से जुड़े किसी भी कार्यक्रम में जाना देश के सेकुलर या प्रगतिशील तबके में टैबू जैसा है। इधर आप आरएसएस-बीजेपी के कार्यक्रम में गए या उनके नेताओं के संग दिखे उधर आपका वैचारिक शील भंग हुआ। अगर आरएसएस फासीवाद या देशविरोधी संगठन है तो उस पर प्रतिबंध लगवाने के लिए कानूनी रास्ता अपनाना चाहिए। लेकिन जब तक भारत सरकार उसे प्रतिबंधित संगठन नहीं घोषित कर देता तब तक उसके प्रति "अछूत" जैसा बरताव केवल "अहंकार" दिखाता है। 

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प्रणब मुखर्जी ने आरएसएस के कार्यक्रम में काफी संतुलित भाषण दिया और विविधता और बहुलता को लोकतंत्र का प्राण बताया। उनके भाषण के आने के बाद सेकुलर-ब्रिगेड ने यू-टर्न ले लिया है और अब वो कह रही है कि पूर्व राष्ट्रपति ने आरएसएस को आईना दिखा दिया है। वहीं कम्युनल-ब्रिगेड आरएसएस का "गौरवशाली" इतिहास बताने में पिली पड़ी है। कम्युनिल-ब्रिगेड अपने कुख्यात मानसिक स्तर का प्रदर्शन करते हुए आरएसएस के किसी एक या दो कार्यक्रम में महात्मा गांधी और सरदार वल्लभ भाई पटेल के जाने को इस साम्प्रदायिक संगठन को दिए गये "कैरेक्टर सर्टिफिकेट" की तरह पेश कर रहे हैं। कम्युनिल-ब्रिगेड ने मुखर्जी  के बयानों और तस्वीरों को डिस्टॉर्ट करके सोशल मीडिया पर फैलाना भी शुरू कर दिया है। जाहिर है कम्युनिल-ब्रिगेड वही कर रहा है जिसकी उसकी उम्मीद थी। लेकिन सेक्युलर ब्रिगेड को थोड़ा अपने गिरेबान में भी झाँकना चाहिए।

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