डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: एक हत्यारे पर राजनीतिक मेहरबानी क्यों?

By विजय दर्डा | Published: May 1, 2023 06:57 AM2023-05-01T06:57:53+5:302023-05-01T06:59:39+5:30

यह तो सत्ता के लिए राजनीतिक नीचता की हद है! एक युवा कलेक्टर को मार डालने वाली भीड़ के नेता आनंद मोहन को रिहा करने के लिए जेल के मैन्यूअल बदल दिए गए! मुझे लगता है कि नई पीढ़ी के युवा राजनेताओं को अपराध की ऐसी गंदी राजनीति का विरोध करना चाहिए चाहे वे किसी भी दल के हों.

Dr. Vijay Darda's Blog: Why political favors on a murderer like Anand Mohan | डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: एक हत्यारे पर राजनीतिक मेहरबानी क्यों?

आनंद मोहन की रिहाई पर उठते सवाल

बिहार के बाहुबली नेता आनंद मोहन की रिहाई की खबर आते ही 5 दिसंबर 1994 का वो खौफनाक दिन मेरे सामने आ गया. उस दिन बिहार के मुजफ्फरपुर शहर से गुजरने वाले हाईवे पर गोपालगंज के कलेक्टर जी. कृष्णय्या को न केवल सरेआम पीट-पीट कर मार डाला गया बल्कि उनकी लाश को अपराधियों ने एके-47 से छलनी कर दिया. 37 साल के युवा आईएएस अधिकारी की हत्या से पूरा देश उस दिन सन्न रह गया था! हत्यारों का नेतृत्व उस वक्त का विधायक आनंद मोहन सिंह कर रहा था.

बिहार और उत्तरप्रदेश के लिए खौफनाक अपराध कोई नई बात उस वक्त भी नहीं थी. आज भी नहीं है लेकिन एक तरफ मानवाधिकार को लेकर चिल्लाने वालों की बिना परवाह किए योगी आदित्यनाथ यूपी में माफिया सरगनाओं का सफाया कर रहे हैं तो बिल्कुल साफ-सुथरी छवि वाले नीतीश कुमार की ऐसी क्या मजबूरी है कि वे आनंद मोहन को बाहर लाने के लिए जेल मैन्युअल तक बदलने को तैयार हो गए? कारण शायद यही है कि प्यार और जंग में हर कदम जायज होता है. ...और यह बात मुझे हर पार्टी में नजर आ रही है. कुछ में कम तो कुछ में ज्यादा. मगर अछूता कोई नजर नहीं आता.

आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जिस कलेक्टर जी. कृष्णय्या की हत्या की गई थी, उन्हें निजी तौर पर न आनंद मोहन जानता था और न उस भीड़ में शामिल कोई व्यक्ति पहचानता था. दरअसल आनंद मोहन की बिहार पीपुल्स पार्टी के एक माफिया डॉन कौशलेंद्र उर्फ छोटन शुक्ला की एक रात पहले पुलिस की वर्दी में अपराधियों ने हत्या कर दी थी. छोटन की हत्या के विरोध में भीड़ जमा हुई थी. उसी वक्त वहां से कलेक्टर जी. कृष्णय्या गुजर रहे थे. उन्हें केवल इसलिए मार डाला गया कि उनकी कार पर लाल बत्ती लगी थी! आनंद मोहन चूंकि विधायक था इसलिए उसे इस बात का भरोसा था कि कोई उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता.

यूपी और बिहार में किस तरह के अपराध होते रहे हैं, महाराष्ट्र और गोवा में बैठकर हम इसके बारे में केवल कल्पना ही कर सकते हैं. यूपी में मगरमच्छ के सामने लोगों को फेंक देने से लेकर बिहार में सामूहिक हत्या करके खेतों में दफन करने जैसे कारनामे होते रहे हैं. इसका सबसे बड़ा कारण यही है कि राजनीतिक दलों में अपराधियों का दबदबा है. हर पार्टी चाहती है कि ज्यादा से ज्यादा डॉन उसकी पार्टी को ताकतवर बनाएं ताकि चुनाव में जीत हासिल हो सके. 

राजनीतिक दल इसके लिए कोई भी हथकंडा अपनाने को तैयार रहते हैं. आप आनंद मोहन सिंह का ही मामला देखें, लोअर कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई, हाईकोर्ट ने उसे उम्रकैद में बदल दिया. सर्वोच्च न्यायालय ने इस सजा को बरकरार रखा. उम्रकैद यानी जीवन के अंतिम क्षण तक कैद! सामान्य तौर पर यह प्रावधान है कि कैदी का आचरण ठीक रहता है तो सरकार उसे वक्त से पहले मुक्त कर सकती है. लेकिन यह भी प्रावधान रहा है यदि कोई व्यक्ति सरकारी अधिकारी की हत्या का आरोपी है तो उसे किसी भी हालत में जेल से मुक्त नहीं किया जा सकता! 

जेल मैन्युअल के इसी नियम को नीतीश कुमार की सरकार ने बदल डाला है. इसे लेकर पहले बिहार आईएएस एसोसिएशन और फिर मध्यप्रदेश आईएएस एसोसिएशन ने विरोध दर्ज कराया है. आश्चर्यजनक है कि महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, तमिलनाडु या ऐसे दूसरे राज्यों में इतने जागरूक अधिकारी हैं लेकिन वहां के आईएएस एसोसिएशन की ओर से विरोध की खबर अब तक नहीं आई है. नीतीश सरकार के फैसले को जी. कृष्णय्या की पत्नी उमा कृष्णय्या ने सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती भी दी है. उन्होंने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री से हस्तक्षेप का आग्रह भी किया है.

बहरहाल सबसे बड़ा सवाल यह है कि आनंद मोहन तो उच्च कही जाने वाली जाति के नेता रहे हैं (मैं निजी तौर पर जाति व्यवस्था में विश्वास नहीं करता. न कोई ऊंचा है और न कोई नीचा). उन्होंने लालू प्रसाद यादव को खुलेआम चुनौती भी दी थी! यहां तक कि लालू के खासमखास मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की हत्या भी कर दी गई थी! दुश्मनी के और भी कई किस्से हैं! नीतीश कुमार और लालू प्रसाद यादव की पार्टी गठबंधन की सरकार चला रही है. इसलिए यह मानने में कोई हर्ज नहीं है कि आनंद मोहन को रिहा करने में सबकी सहमति जरूर रही होगी. 

महागठबंधन में शामिल सभी दल भी आनंद मोहन की रिहाई के लिए व्याकुल थे. जिस राज्य में कहावत हो कि रोटी, बेटी और वोट जाति से बाहर नहीं जाने चाहिए, वहां एक विरोधी डॉन के प्रति इस मेहरबानी के पीछे का खेल दो किस्तों में हो रहा है. एक है 2024 के लोकसभा चुनाव का गणित तो दूसरा है 2025 के बिहार विधानसभा का चुनावी गणित! इसमें आनंद मोहन से कुछ न कुछ समझौता जरूर हुआ होगा.

लालू यादव के पास माय यानी मुस्लिम और यादव का करीब 30 प्रतिशत वोट है. इसमें नीतीश के कोइरी-कुर्मी जाति के वोट भी जुड़ चुके हैं. यदि उच्च कही जाने वाली जातियों का 20 प्रतिशत वोट भी जुड़ जाए तो नीतीश-लालू की जोड़ी अजेय हो जाएगी! बिहार की राजनीति में तथाकथित उच्च जातियों में ऐसा कोई बड़ा नेता नहीं है जिसकी पकड़ पूरे बिहार पर हो! यह कमी आनंद मोहन पूरी कर सकते हैं. 

देखिए, क्या करिश्मा है कि वे कभी विधायक तो कभी सांसद रहे, यहां तक कि पत्नी लवली आनंद भी सांसद रही! उन्होंने अपनी बिहार पीपुल्स पार्टी को राजपूत-भूमिहार एकता मंच के रूप में ही स्थापित भी किया. यदि महागठबंधन के पक्ष में आनंद मोहन खुले रूप से उतरते हैं तो नीतीश और लालू यादव के लिए यह बहुत फायदे का सौदा रहेगा. राजनीति में कहावत है कि कोई स्थाई दोस्त और कोई स्थाई दुश्मन नहीं होता. बिहार में यह कहावत फिर चरितार्थ हो रही है.  

राजनीति यदि इस तरह अपराधियों को संरक्षण देगी तो अपराधियों का बोलबाला होगा, देश हित की राजनीति पीछे छूट जाएगी..! हमारी कानून-व्यवस्था फेल हो जाएगी और बदलते भारत की बदलती तस्वीर बदरंग होगी. मुझे लगता है कि नई पीढ़ी के राजनेताओं को खुल कर विरोध में आना चाहिए.

Web Title: Dr. Vijay Darda's Blog: Why political favors on a murderer like Anand Mohan

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