डॉ. विजय दर्डा का ब्लॉग: मोहब्बत के मुखौटे में छिपी हैवानियत..!
By विजय दर्डा | Published: June 12, 2023 07:06 AM2023-06-12T07:06:20+5:302023-06-12T07:11:54+5:30
मोहब्बत के मुखौटे में सेक्स और हैवानियत का नंगा नाच चल रहा है. प्रेम करने वाला व्यक्ति किसी के टुकड़े नहीं करता. पश्चिमी देशों में लिव-इन रिलेशनशिप का उद्येश्य है एक दूसरे को समझना, हमारे यहां यह हवस का माध्यम बना.
मैं बुरी तरह विचलित हूं. खबरों की हेडलाइन हृदय को झकझोर रही है...‘लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे एक व्यक्ति ने अपनी साथी को मार डाला...उसके टुकड़े-टुकड़े कर दिए...टुकड़ों को कुकर में पकाया...कुत्ताें को खिला दिया!’
अभी ताजा घटना मुंबई के उपनगर मीरा भायंदर इलाके की है. मनोज साने नाम के व्यक्ति ने अपने साथ रह रही सरस्वती वैद्य के टुकड़े कर दिए. पिछले साल मई की घटना आपको याद होगी जब आफताब पूनावाला नाम के युवक ने दिल्ली में अपने साथ लिव-इन रिलेशन में रह रही 27 साल की श्रद्धा वालकर को मौत के घाट उतार दिया था और उसके टुकड़े-टुकड़े करने के बाद उन टुकड़ों को जंगल में फेंक दिया था. ये तो बस कुछ उदाहरण हैं जो मीडिया में सुर्खियां बन गए! ऐसी नृशंस घटनाएं अब अपवाद नहीं रहीं.
मुंबई के इस ताजा हत्याकांड ने हर व्यक्ति को भीतर तक हिला कर रख दिया है. हम सबको यह सवाल बुरी तरह मथ रहा है कि कोई व्यक्ति इतना नृशंस कैसे हो सकता है कि उसी के टुकड़े कर दे जो उसके प्यार में खुद को समर्पित करके और उस पर भरोसा करके उसके साथ रहने आई है! सरस्वती तो अनाथ भी थी. वह कैसी मानसिकता का व्यक्ति होगा जो हत्या के बाद प्रेमिका के छोटे-छोटे टुकड़े करे? टुकड़ों को जंगल में फेंकने जाए! जिस कुकर में दोनों ने मिलकर रोज खाना पकाया होगा उसी कुकर में खुद के टुकड़े उबाले जाने का तो उस प्रेमिका को बुरा सपना भी नहीं आया होगा. सोच कर ही रूह कांप जाती है!
मैं यह मानने को तैयार ही नहीं हूं कि मनोज या आफताब पूनावाला जैसे लोगों को अपने साथ रहने वाली लड़की से कोई मोहब्बत रही होगी. कोई भी प्यार करने वाला व्यक्ति प्रेमिका के टुकड़े नहीं करता! उसके पीछे उद्देश्य कुछ और ही होता है. और उद्देश्य केवल हवस है, सेक्स की भूख है. मैंने देश-दुनिया को बहुत करीब से देखा है. वहां की संस्कृति को जानने और समझने की कोशिश की है. विदेशों में जो लिव-इन रिलेशनशिप है, उसकी व्याख्या अलग है. वहां बालिग होते ही बच्चे माता-पिता से अलग चले जाते हैं. वहां लिव-इन रिलेशनशिप की व्याख्या यह है कि वे एक-दूसरे को समझने के लिए साथ रहते हैं. समझ पाए तो शादी के बंधन में बंध जाते हैं और न समझ पाए तो बिना किसी शोरगुल के अलग हो जाते हैं. मगर हमारे देश में लिव-इन रिलेशनशिप वह उद्देश्य नहीं है. यहां तो फायदा उठाकर प्यार के जाल में हैवानियत और सेक्स का नंगा नाच किया जा रहा है.
हमारे यहां फिल्मों की कई हीरोइन भी ऐसे रिश्तों में रही हैं. कुछ अलग हो गईं तो कइयों को वेदना से गुजरना पड़ा. सच तो यह है कि पश्चिम के लिव-इन रिलेशन को तो अख्तियार कर लिया लेकिन उसके सलीके को नहीं अपनाया.
मन ज्यादा विचलित इसलिए भी होता है कि यह सब हिंदुस्तान में हो रहा है जहां की संस्कृति में प्रेम और स्नेह ही जीवन का आधार रहा है. जीवन साथी को एक-दूसरे का पूरक माना गया है. एक-दूसरे के बिना दोनों अधूरे माने गए हैं. न केवल माने गए हैं बल्कि हमारे समाज में, हमारी संस्कृति में यह सर्वमान्य भी रहा है. यहां मैं स्पष्ट करना चाहूंगा कि मैं प्रेम के कतई खिलाफ नहीं हूं.
मेरी सोच स्पष्ट है कि एक-दूसरे से प्रेम करने वालों को एक साथ जीवन जीने का हक मिलना चाहिए लेकिन इसके लिए मर्यादा भी तो होनी चाहिए. हमारे देश में पनपे लिव-इन रिलेशन में संबंधों का आधार विचार से ज्यादा देह है. इसलिए यह ज्यादा खतरनाक है. श्रद्धा वालकर को आफताब पूनावाला ने इसलिए मार डाला था कि वह शादी के बंधन में बंधना चाहती थी. पूनावाला को तो केवल श्रद्धा की देह चाहिए थी!
यह तो हुई लिव-इन रिलेशन की बात. मैं इससे इतर भी कुछ चर्चा करना चाहता हूं. आरुषि हत्याकांड को हम अभी भी नहीं भूले हैं. एक मासूम को किसने मार डाला? वैसे भी हर रोज खबरें आती हैं कि पति ने पत्नी की हत्या कर दी, पत्नी ने प्रेमी के साथ मिलकर पति को मार डाला, संपत्ति के लिए बेटे ने पिता की हत्या कर दी, मां को मार डाला. भाई ने बहन की हत्या कर दी.
रिश्तों के बीच यह हैवानियत कहां से आती है? पिछले सप्ताह देश की राजधानी दिल्ली में 20 साल के युवक ने नाबालिग लड़की की चाकुओं से गोद कर हत्या कर दी. क्रूरता की हद यह कि पत्थरों से उसका सिर भी कुचल दिया. उसके पहले अंकित नाम के 22 वर्षीय युवक ने 20 साल की एक लड़की को गोली मार दी. इन हत्यारों को प्रेमी कहा गया! क्या वो दोनों प्रेमी कहे जा सकते हैं? नहीं, यह प्रेम नहीं है! यह हवस है जो उस लड़की की देह प्राप्त करना चाहता है.
ये देह प्राप्त करने की जो भयानक भूख है, उससे अपने बच्चों को बचाना बहुत जरूरी है. मुझे लगता है कि शुरुआत अपने घर से होनी चाहिए. हर मां को अपने बेटों को यह समझाना चाहिए कि स्त्री केवल देह नहीं है. वह भी पुरुष की तरह ही एक मन है. स्त्री कोमल है. समर्पण उसकी प्रवृत्ति है. स्त्री मन पर मुझे कविता भट्ट की एक कविता बड़ी अच्छी लगती है...
आजीवन पिया को समर्थन लिखूंगी/ प्रेम को अपना समर्पण लिखूंगी.
प्रणय-निवेदन उसका था वो हमारा/ न मुखर वासना थी; बस प्रेम प्यारा.
उसमें अपनी श्रद्धा का कण-कण लिखूंगी/ प्रेम को अपना समर्पण लिखूंगी.
स्त्री इतनी समर्पित होती है कि कई बार वह समझ नहीं पाती कि मोहब्बत के मुखौटे में हैवानियत छिपी बैठी है. इस हैवानियत को खत्म करने की जिम्मेदारी हम सबकी है. कानून की भी है और समाज की भी है..!