ब्लॉग: जगदीशचंद्र बोस ने भारतीय ऋषियों के ज्ञान को वैज्ञानिक व्याख्या और सत्यता प्रदान की

By निरंकार सिंह | Published: November 30, 2021 09:47 AM2021-11-30T09:47:08+5:302021-11-30T10:03:28+5:30

डॉ. जगदीशचंद्र बोस देश के उन महान वैज्ञानिकों में से एक हैं जिन्होंने भारतीय धर्म दर्शन के उस सर्वात्मवाद के सिद्धांत को वैज्ञानिक प्रयोगों से सिद्ध करके दिखाया कि विश्व के समस्त जड़ पदार्थो से लेकर पेड़-पौधों और जीवों में एक ही चैतन्य शक्ति व्याप्त है।

dr. jagadish chandra bose scientist animism | ब्लॉग: जगदीशचंद्र बोस ने भारतीय ऋषियों के ज्ञान को वैज्ञानिक व्याख्या और सत्यता प्रदान की

जगदीश चंद्र बोस.

Highlightsडॉ. जगदीशचंद्र बोस पेड़-पौधों को जड़ नहीं चेतन जीवधारी मानते थे.बोस के शोध कार्यो ने भारतीय ऋषियों की अंर्तदृष्टि को वैज्ञानिक सत्यता प्रदान की.जगदीश चंद्र बोस ने कहा कि पौधों और पशुओं में भावावेग समान होते हैं.

डॉ. जगदीशचंद्र बोस देश के उन महान वैज्ञानिकों में से एक हैं जिन्होंने भारतीय धर्म दर्शन के उस सर्वात्मवाद के सिद्धांत को वैज्ञानिक प्रयोगों से सिद्ध करके दिखाया कि विश्व के समस्त जड़ पदार्थो से लेकर पेड़-पौधों और जीवों में एक ही चैतन्य शक्ति व्याप्त है।

उन्होंने इस बात में पूर्ण विश्वास रखते हुए कि सभी विघ्न-बाधाओं के होते हुए भी अंत में विजय सत्य की होती है, अपनी उत्साहजन्य जांच और शोध को जारी रखा, विद्वानों के संदेहों को दूर किया और भौतिकी और शरीर विज्ञान के निकटतम विषयों के प्रणोता के रूप में अपनी ख्याति स्थापित की. उनका जीवन और कार्य परिस्थितियों पर चरित्र की विजय सिद्ध हुआ।

उनका जन्म परतंत्र भारत के बंगाल के मैमन सिंह (अब बांग्लादेश) गांव में 30 नवंबर 1858 को हुआ था। उनकी शिक्षा-दीक्षा लंदन में हुई. कैंब्रिज विश्वविद्यालय से डिग्री लेने के बाद वे कलकत्ता के प्रेसीडेंसी कॉलेज भौतिकी के प्रोफेसर नियुक्त किए गए।

उनकी रुचि बचपन से ही पेड़-पौधों की ओर थी। वे उन्हें जड़ नहीं चेतन जीवधारी मानते थे। बाद में उन्होंने इस बात को वैज्ञानिक प्रयोगों से सिद्ध किया. वे प्राकृतिक विज्ञानों में शोध के प्रणोता थे।

एक प्रसिद्ध पादप-विज्ञानी जर्मनी के प्रो. हीवरलैंड ने जगदीशचंद्र बोस के बारे में कहा, ‘यह संयोग मात्र नहीं है कि कोई शोधकर्ता भारत का हो और क्षोभन की क्रिया की विधियों में इतना पूर्ण ज्ञान प्राप्त कर ले। प्रो. बोस में उस प्राचीन भारतीय आत्मा का निवास और संचलन हैं जिसमें भारतीय आत्मा विश्व के चेतन रूप से बिल्कुल निर्लिप्त हो तत्व-मीमांसा और अंतर्ज्ञान का चरमबिंदु है, वे सूक्ष्म निरीक्षण के लिए असाधारण रूप में विकसित ज्ञान और हर्षोल्लास भरे वैज्ञानिक प्रयोगों को लेकर हमारे सामने आए।’

जगदीशचंद्र बोस के शोध कार्यो ने भारतीय ऋषियों की गहन अंर्तदृष्टि को वैज्ञानिक व्याख्या और सत्यता प्रदान की। भारतीय ऋषि विश्व को सकल रूप में न देखकर पूर्ण रूप में देखते हैं। पिंड और ब्रह्मांड एक-दूसरे के बिंब-प्रतिबिंब हैं।

पशुओं और पौधों में जीवन की गतिविधि को सामान्यत: अलग माना जाता था। पशु आघात खाने की स्थिति को गति द्वारा प्रकट करते हैं जबकि पौधे बार-बार के प्रहारों से भी उदासी की प्रवृत्ति प्रकट करते हैं। 

जगदीश चंद्र बोस ने कहा कि पौधों और पशुओं में भावावेग समान होते हैं। इन्होंने इस तथ्य को जटिल यंत्रों की सहायता से दर्शाने का प्रयास किया। 

गिरिडीह में 79 वर्ष की उम्र में इस महाविज्ञानी का निधन हो गया। उनके देहांत के बाद आइंस्टीन ने कहा था कि बोस की प्रतिमा यूएनओ के प्रांगण में स्थापित होनी चाहिए।

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