दलदलों का खत्म होना पर्यावरण के हित में नहीं, जानें इसका महत्व और भूमिका

By अभिषेक कुमार सिंह | Updated: February 3, 2023 14:46 IST2023-02-03T14:42:53+5:302023-02-03T14:46:39+5:30

इन्हीं दलदलों या कहें कि आर्द्रभूमियों या फिर वेटलैंड्स का उल्लेख हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रेडियो कार्यक्रम- मन की बात के 97वें एपिसोड में किया। उन्होंने रेखांकित किया कि भूजल को रिचार्ज करने और जैव-विविधता को अक्षुण्ण रखने में इनकी खास भूमिका होती है।

Destruction of wetlands is not in the interest of the environment know its importance and role | दलदलों का खत्म होना पर्यावरण के हित में नहीं, जानें इसका महत्व और भूमिका

दलदलों का खत्म होना पर्यावरण के हित में नहीं, जानें इसका महत्व और भूमिका

लगातार बढ़ती आबादी के चलते उत्पन्न आवासीय संकट के समाधान के लिए प्राय: लोगों की नजर उन जमीनों पर जाती है जो बंजर मानी जाती हैं। हालांकि दिल्ली-एनसीआर समेत देश के अन्य महानगरों और बड़े शहरों ने अपनी इस जरूरत के लिए सबसे पहले खेती-किसानी की जमीनों पर डाका डाला। लेकिन जब खेत नहीं बचे, तो वे दलदल भी नहीं बचे जिन्हें पर्यावरणवादियों के अलावा शायद ही कोई उपयोगी मानता हो। इन्हीं दलदलों या कहें कि आर्द्रभूमियों या फिर वेटलैंड्स का उल्लेख हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रेडियो कार्यक्रम- मन की बात के 97वें एपिसोड में किया। उन्होंने रेखांकित किया कि भूजल को रिचार्ज करने और जैव-विविधता को अक्षुण्ण रखने में इनकी खास भूमिका होती है। मानक उपयोगिता के आधार पर इन्हें रामसर साइट घोषित किया जाता है और उनके संरक्षण के प्रयास किए जाते हैं।

प्रधानमंत्री के अनुसार हमारे देश में पहले 26 रामसर साइट्स थीं, लेकिन अब यह आंकड़ा बढ़कर 75 हो गया है। वर्ष 2022 के दौरान ही कुल 28 स्थलों को रामसर स्थल घोषित किया गया है। रामसर प्रमाणपत्र के अनुसार वर्ष 2022 में 19 स्थलों और वर्ष 2021 में 14 स्थलों को चिह्नित किया गया। हमारे देश में आज तमिलनाडु में सर्वाधिक वेटलैंड 14 हैं, जबकि इसके बाद 10 रामसर साइट कहलाने वाले वेटलैंड उत्तर प्रदेश में हैं।

कहने में यह बात बड़ी अच्छी लगती है कि देश में वेटलैंड्स की संख्या में हुआ सुधार प्रकृति के साथ सद्भाव से रहने की हमारी प्रतिबद्धता को दर्शा रहा है, पर इसका एक पहलू यह है दिल्ली, मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरु और कोलकाता जैसे बड़े शहर बड़ी तेजी से हुए आवासीय निर्माणों की वजह से अधिकतर वेटलैंड्स गंवा चुके हैं। कोलकाता से कुछ ही दूरी पर सुंदरवन मुहाने के इलाके के दलदलों पर निर्माण-माफिया का डाका ही पड़ चुका है। इस मुहाने के दलदली क्षेत्रों में निर्माण कार्य सन्‌ 1953 से जारी है, जब हॉलैंड के विशेषज्ञों की देखरेख में यहां कोलकाता के उपनगरों की स्थापना का काम शुरू हुआ था। मुंबई, चेन्नई, बेंगलुरु के दलदली इलाके मिट्टी से पाटकर गगनचुंबी इमारतों में तब्दील कर दिए गए।

वेटलैंड न सिर्फ अपने भीतर पानी की विशाल मात्रा सहेजते हैं, बल्कि जरूरत पड़ने पर आसपास की शुष्क जमीन के लिए पानी भी छोड़ते हैं। यहां तक कि वातावरण की नमी कायम रखने में भी वे सहायक साबित होते हैं। इसके अलावा ये जमा हो चुकी गंदगी को छानते हैं और अनेक जलीय तथा पशु व पक्षी प्रजातियों के लिए भोजन उपलब्ध कराते हैं। गंदगी को अपने भीतर समा लेने और उसका शोधन करने के लिहाज से वेटलैंड आसपास के पर्यावरण के लिए फेफड़े का काम करते हैं।

Web Title: Destruction of wetlands is not in the interest of the environment know its importance and role

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