Delhi Elections 2025: प्रतिष्ठा की लड़ाई बनते दिल्ली के चुनाव?, पीएम मोदी बनाम अरविंद केजरीवाल

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: January 16, 2025 07:16 PM2025-01-16T19:16:43+5:302025-01-16T19:18:15+5:30

Delhi Elections 2025: युद्ध के प्रतीकात्मक ढोल-नगाड़ों, पोस्टर, जुलूस, चुनाव प्रचार और प्रसार का गवाह बन रहा है, ताकि 70 सदस्यीय विधानसभा पर प्रभुत्व जमाया जा सके.

Delhi Elections 2025 polls becoming battle prestige blog Prabhu Chawla PM Modi vs Arvind Kejriwal | Delhi Elections 2025: प्रतिष्ठा की लड़ाई बनते दिल्ली के चुनाव?, पीएम मोदी बनाम अरविंद केजरीवाल

file photo

Highlightsप्रदूषण के कारण यमुना का जल नुकसानदेह हो गया है.अपराध बढ़ने से महिलाएं अंधेरे के बाद अकेले घर से निकलने में डरती हैं. तीन करोड़ निवासी वर्ष में तीन महीने से अधिक समय तक विषैली हवा में सांस लेते हैं.

Delhi Elections 2025: किंवदंती है कि आधुनिक दिल्ली को सात पुराने शहरों पर बनाया गया है. यद्यपि वैचारिक आधार पर देखें तो यह सात से कहीं अधिक है, दिल्ली का एक ही चेहरा है- सत्ता. पांडवों से लेकर चौहानों तक, मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक, यह हमेशा सत्ता का केंद्र रही है. दिल्ली भारत का दिल और आत्मा है. अरविंद केजरीवाल और नरेंद्र मोदी के बीच चुनावी लड़ाई इसी आत्मा को हासिल करने की है. शहर एक बार फिर युद्ध के प्रतीकात्मक ढोल-नगाड़ों, पोस्टर, जुलूस, चुनाव प्रचार और प्रसार का गवाह बन रहा है, ताकि 70 सदस्यीय विधानसभा पर प्रभुत्व जमाया जा सके.

यहां एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी हैं आक्रामक व तीखे मोदी और चतुराई में निपुण केजरीवाल, इनके बीच मौजूद है एक नेतृत्वहीन राज्य कांग्रेस, जो केवल आलोचना व तंज करने में खुश है. लेकिन दिल्ली आईसीयू में है. बीते कुछ वर्षों से उपेक्षा, निराशा और जर्जरता ने इसकी सड़कों, सीवेज सिस्टम, अस्पतालों, पार्कों और खेल के मैदानों को चौपट कर दिया है. प्रदूषण के कारण यमुना का जल नुकसानदेह हो गया है.

अपराध बढ़ने से महिलाएं अंधेरे के बाद अकेले घर से निकलने में डरती हैं. शहर के लगभग तीन करोड़  निवासी वर्ष में तीन महीने से अधिक समय तक विषैली हवा में सांस लेते हैं. यह विषाक्तता राष्ट्रीय और स्थानीय नेताओं की चुनावी शब्दावली को भी दूषित कर चुकी है. यह लड़ाई दो पार्टियों के बीच नहीं, बल्कि दो व्यक्तियों के बीच है- भाजपा, जो केजरीवाल का मुकाबला करने के लिए स्थानीय नेता की कमी महसूस कर रही है, उसे अपने सबसे बड़े नेता मोदी पर भरोसा करना पड़ा है. भाजपा ने दिल्ली चुनाव को करो या मरो का मामला क्यों बना लिया है? आखिरकार, यह एक छोटा-सा राज्य है.

केजरीवाल लगभग 30 मुख्यमंत्रियों में से एक थे. लगभग 130 अरब डॉलर की राज्य जीडीपी के साथ दिल्ली की जनसंख्या शायद ही राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करती है. परंतु मोदी और उनके कमांडरों ने किसी भी कीमत पर दिल्ली पर कब्जा करने का निर्णय किया है. उन्होंने लगभग सभी नए दलबदलुओं के साथ-साथ अपने शीर्ष सांसदों को भी टिकट दिया है.

सीएम चेहरे के अभाव में पार्टी ने दीवारों को मोदी की छवि से पाट दिया है. जाहिर है, भाजपा दिल्ली में भी डबल इंजन वाली सरकार चाहती है. भाजपा रायसीना हिल्स पर तो शासन करती है, पर वह 26 वर्षों से सिविल लाइंस सचिवालय से बाहर है. केजरीवाल की हाई-प्रोफाइल उपस्थिति भाजपा की राजनीतिक संभावना को खराब करती है.

वह आगे चलकर भारत के सिंहासन के लिए एक दुर्जेय संभावित दावेदार हैं, क्योंकि वह सिंहासन भी दिल्ली में ही है. पर यदि देशव्यापी स्वीकार्यता और विश्वसनीयता की बात करें तो मोदी के लिए केजरीवाल मामूली खतरा भी नहीं हैं. प्रधानमंत्री के रूप में एक दशक से अधिक समय के बाद भी, मोदी की व्यक्तिगत रेटिंग 60 प्रतिशत से अधिक है, केजरीवाल की निचली दहाई अंक की तुलना में.

मोदी ने बारम्बार राष्ट्रीय चुनावों में इस बात को स्थापित किया है कि केजरीवाल दिल्ली में एक भी सीट नहीं जीत सकते. वर्ष 2014, 2019 और 2024 के चुनावों में, भगवा पार्टी ने राज्य की सभी सात सीटों पर जीत हासिल की. जबकि स्थानीय चुनावों में, मोदी के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर अभियान चलाने के बावजूद केजरीवाल ने भाजपा को मुंह की खाने पर मजबूर कर दिया.

असल में दिल्ली मॉडल का उपयोग करके भाजपा को नुकसान पहुंचाने की केजरीवाल की बढ़ती क्षमता भगवा ब्रिगेड को परेशान करती है. यह कोई संयोग नहीं है कि केजरीवाल और मोदी दोनों ने एक ही समय में राष्ट्रीय परिदृश्य में कदम रखा. केजरीवाल जहां 2012 में अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के माध्यम से सुर्खियों में आए, वहीं मोदी 2013 में भाजपा का प्रधानमंत्री पद का चेहरा बने.

जब मोदी देशभर में भ्रमण कर रहे थे, तब केजरीवाल ने अपनी पार्टी बनाई और 2013 में 70 में से 28 विधायक सीटें जीतीं. उन्होंने कांग्रेस के साथ गठबंधन में अल्पकालिक सरकार बनाई. हालांकि लोकसभा चुनाव में आप को मोदी लहर के सामने कोई अवसर नहीं मिला. पर मोदी को आश्चर्यचकित करते हुए एक वर्ष के भीतर ही 2015 में केजरीवाल ने भाजपा को नीचा दिखा दिया.

तब से, केजरीवाल स्वयं को न केवल एक अपराजेय मुख्यमंत्री के रूप में, बल्कि एक राष्ट्रीय नेता के रूप में भी स्थापित करते आए हैं. उन्होंने गुजरात सहित अन्य राज्यों में भी अपना विस्तार किया. आप ने 117 में से 92 सीटें जीत पंजाब पर कब्जा कर इतिहास रच दिया. बारह वर्षों के भीतर, यह उन पांच पार्टियों में से एक बन गई है जिन्हें राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त है.

चूंकि आप ने कई राज्यों में कांग्रेस को विस्थापित कर दिया है, इसलिए क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस और राहुल गांधी की बजाय केजरीवाल के साथ बातचीत करना पसंद करती हैं. अब दिल्ली चुनाव के लिए ममता बनर्जी, शरद पवार, उद्धव ठाकरे और अखिलेश यादव ने केजरीवाल को अपना समर्थन दिया है. केजरीवाल ने प्राइम टाइम में बने रहने के लिए मीडिया का कुशलतापूर्वक इस्तेमाल किया है.

भाजपा प्रचार की इस प्रवृत्ति को हजम नहीं कर पाई है. इसके अतिरिक्त, केजरीवाल ने कभी भी मोदी के नेतृत्व को स्वीकार नहीं किया और उन्हें विषैले शब्दों के जरिये व्यक्तिगत तौर पर निशाना बनाया. अन्य मुख्यमंत्रियों की तरह उन्होंने शायद ही कभी मोदी को राजकीय समारोहों में आमंत्रित किया हो. भाजपा इसे प्रधानमंत्री कार्यालय को कमजोर करने के प्रयासों के रूप में देखती है.

दिल्ली के किसी भी पिछले मुख्यमंत्रियों का कभी भी प्रधानमंत्री से सीधा टकराव नहीं हुआ. पर जैसे मोदी न तो वाजपेयी हैं और न ही नरसिंह राव, वैसे ही केजरीवाल भी कोई दीक्षित या मदन लाल खुराना नहीं हैं. कोई भी राजनीतिक स्थान छोड़ने को तैयार नहीं है. भाजपा को उम्मीद है कि केजरीवाल की बहुप्रचारित आडंबरपूर्ण जीवनशैली के कारण उनकी स्वीकार्यता में कमी आई है.

उन्हें उम्मीद है कि उत्पाद शुल्क नीति में उनके कथित भ्रष्टाचार और मोदी पर अतिरंजित आक्रमणों से मतदाताओं का मोहभंग हो जाएगा. राजधानी में दो सम्राट नहीं हो सकते. मोदी की चुनौती तीन लोकसभा जीत के बाद लगातार तीसरी विधानसभा हार से बचने की है. राजधानी में, जहां शीतलहर आम बात है, क्या मोदी लहर केजरीवाल के बांध को तोड़ पाएगी, यह इस सर्दी में दिल्ली की दुविधा है.

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