ब्लॉग: ये कैसा न्याय! मां के सामने तीन बच्चों की गोली मारकर हत्या, तीन आरोपियों पर चला केस...42 साल बाद सजा, दो की हो चुकी है मौत

By विश्वनाथ सचदेव | Published: June 14, 2023 03:02 PM2023-06-14T15:02:59+5:302023-06-14T15:03:45+5:30

Delay in justice destroys hope of common man | ब्लॉग: ये कैसा न्याय! मां के सामने तीन बच्चों की गोली मारकर हत्या, तीन आरोपियों पर चला केस...42 साल बाद सजा, दो की हो चुकी है मौत

ब्लॉग: ये कैसा न्याय! मां के सामने तीन बच्चों की गोली मारकर हत्या, तीन आरोपियों पर चला केस...42 साल बाद सजा, दो की हो चुकी है मौत

बयालीस साल पहले की बात है. उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले के एक छोटे से गांव साधुपूरा में एक मां की आंखों के सामने उसके तीन बच्चों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. हत्यारे पकड़े गए थे. मुकदमा भी चला. पर आरोपियों को सजा देने में बयालीस साल लग गए. तीनों हत्यारों में से दो की मौत तो मुकदमा चलने के दौरान ही हो गई थी. तीसरे को अब सजा मिली है. उम्र कैद की सजा. 

बच्चों पर गोली चलाने वाला गंगा दयाल अब नब्बे वर्ष का हो चुका है. पता नहीं कितने साल जेल में रहेगा. रहेगा भी या नहीं. आंखों के सामने बच्चों को गोली से तड़पते हुए मरता देखने वाली अभागी मां प्रेमवती भी अब नब्बे साल की है. यह सही है कि तीन हत्यारों में से जीवित बचे एक हत्यारे को न्यायालय ने उम्र कैद की सजा सुनाई है, पर घटना के बयालीस साल बाद मिली इस सजा को क्या सचमुच सजा कहा जा सकता है?  

हमारी अदालतों में लंबित मामलों की संख्या करोड़ों में है. वर्ष 2021 का एक आंकड़ा मेरे सामने है. इसके अनुसार उस वर्ष साढ़े चार करोड़ मामले हमारी अदालतों में लंबित थे. उसके दो वर्ष पूर्व 2019 में यह संख्या सवा तीन करोड़ थी. इसका अर्थ है दो साल में अदालतों में लंबित मामलों की संख्या लगभग सवा करोड़ बढ़ गई. एक अनुमान के अनुसार हमारे देश में आज हर मिनट 23 मामले लंबित की सूची में जुड़ जाते हैं. आंकड़े यह भी बताते हैं कि 2022 में उच्चतम न्यायालय में लंबित मामलों की संख्या 71411 थी.

हमारी न्याय व्यवस्था इस आधार पर टिकी है कि सौ अपराधी भले ही छूट जाएं, पर एक भी निरपराध को सजा नहीं मिलनी चाहिए. गलत नहीं है यह आधार, पर यह देखना भी तो जरूरी है कि बयालीस साल तक कोई अपराधी हमारी न्याय-प्रणाली की कमियों का लाभ न उठाता रहे.  

सवाल उठता है कि न्याय मिलने में इतना समय क्यों लगता है? पहला उत्तर तो यही है कि हमारी न्याय-प्रणाली ही कुछ इस तरह की है कि निरपराधियों को बचाने की प्रक्रिया में अपराधी भी लाभ उठा लेते हैं. दूसरा उत्तर हमारी अदालतों में न्यायाधीशों की संख्या का आवश्यकता से कम होना है. लेकिन यह दोनों कारण ऐसे नहीं है जिन्हें दूर न किया जा सके. लंबित मामलों की बढ़ती संख्या और न्यायालय में मिलने वाला विलंबित न्याय वर्षों से विचार-विमर्श का विषय रहा है. कई समितियां गठित हो चुकी हैं इस समस्या के समाधान के लिए. पर समस्या है कि सुलझ ही नहीं रही. 

विलंबित न्याय की यह समस्या अति गंभीर है, इसका समाधान होना ही चाहिए- और शीघ्र होना चाहिए यह समाधान. यह आंकड़ा भयभीत करने वाला है कि आज जितने प्रकरण न्यायालयों में लंबित हैं यदि उनमें और न जुड़ें, तब भी, इन्हें वर्तमान गति से निपटाने में तीन सौ साल लग जाएंगे.  

Web Title: Delay in justice destroys hope of common man

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