संपादकीय: कश्मीर में ये तो बहुत पहले हो जाना चाहिए था!
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: February 24, 2019 07:26 AM2019-02-24T07:26:11+5:302019-02-24T07:26:11+5:30
जैश-ए-मोहम्मद के हमले में 40 से अधिक जवान खोने के बाद से देशभर में पाकिस्तान और उसके पिट्ठओं (अलगाववादी नेताओं) के प्रति भारी आक्रोश है.
पुलवामा हमले के बाद से जम्मू-कश्मीर को लेकर केंद्र सरकार का रवैया सख्त हुआ है. एक्शन मोड में आई मोदी सरकार ने अब जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के मुखिया यासीन मलिक को गिरफ्तार कर लिया. घाटी में अलगाववाद को हवा देनेवाले नेताओं में यासीन प्रमुख कड़ी माने जाते हैं. हालांकि इन कट्टरपंथी नेताओं की खैर है कि इनका वास्ता भारत जैसे देश से पड़ा है.
खुलकर खिलाफत करने वाले ये नेता अगर चीन, इजराइल जैसे देशों में होते तो अब तक इनका नामोनिशान मिट चुका होता. पाकिस्तानपरस्त इन नेताओं के खिलाफ सरकार को यह कदम पहले ही उठा लेना चाहिए था. लेकिन, कहते हैं न, ‘देर आयद, दुरुस्त आये ’. ये वही यासीन मलिक हैं, जिन्होंने हाल ही में मीरवाइज उमर फारुकी, शब्बीर शाह, अब्दुल गनी भट समेत 22 अलगाववादी नेताओं को दी जाने वाली सुरक्षा और सरकारी सुविधाओं को वापस ले लिए जाने के बाद केंद्र के इस कदम को नौटंकी बताया था.
उन्होंने कहा था कि सरकार ने कभी उन्हें सुरक्षा या सुविधा दी ही नहीं, तो वापस लेने का सवाल ही नहीं पैदा होता. हालांकि इस धर-पकड़ को एहतियाती कदम बताया जा रहा है, क्योंकि आने वाले सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाली संविधान की धारा 35-ए पर सुनवाई होना है. घाटी में किसी भी तरह की अनहोनी से बचने के लिए जवानों की अतिरिक्त सौ कंपनियां भी तैनात की गई हैं.
जैश-ए-मोहम्मद के हमले में 40 से अधिक जवान खोने के बाद से देशभर में पाकिस्तान और उसके पिट्ठओं (अलगाववादी नेताओं) के प्रति भारी आक्रोश है. यही कारण है कि घाटी में सेना को आतंकियों से निपटने के लिए ‘नो टॉक, ओनली ठोंक’ की छूट देने के बाद केंद्र ने अपने सख्त रुख को कायम रखा है.
हालांकि मानवाधिकार की आड़ लेकर आतंकियों को घरों में पनाह देने वालों और जवानों पर पत्थर बरसाने वालों के खिलाफ राज्य सरकार पहले ही कार्रवाई कर चुकी होती तो संभवत: आज घाटी के हालात बहुत हद तक कंट्रोल में होते. बात कड़वी है लेकिन खरी है कि ‘जान गंवाकर नींद से जागे, तो क्या जागे?’