अवधेश कुमार का ब्लॉगः डब्ल्यूएचओ से अमेरिका के निकलने के मायने

By अवधेश कुमार | Published: June 5, 2020 06:25 AM2020-06-05T06:25:25+5:302020-06-05T06:25:25+5:30

चीन ने ऐलान किया है कि वह डब्ल्यूएचओ को दो अरब डॉलर देगा. यह बहुत बड़ी रकम है. हालांकि चीन बगैर स्वार्थ एक पैसा कहीं खर्च नहीं करता. इसलिए चीन देगा या नहीं और देगा तो किस रूप में, यह कहना मुश्किल है. ऐसा तो नहीं कि चीन अपनी मनोवांछित कुछ वैसी योजनाओं के लिए धन देगा जिससे संबंधित देशों में उसका प्रभाव बढ़े और कुछ इसमें तात्कालिक कर्ज के रूप में भी हो? 

Coronavirus: Meaning of America's exit from WHO, china, donald trump | अवधेश कुमार का ब्लॉगः डब्ल्यूएचओ से अमेरिका के निकलने के मायने

फाइल फोटो

अमेरिका द्वारा विश्व स्वास्थ्य संगठन से नाता तोड़ना चिंताजनक घटना है. ऐसे समय जब विश्व कोविड-19 से संघर्ष कर इससे मुक्ति के लिए संघर्ष कर रहा है, इसके लिए वैक्सीन सहित औषधियों की खोज जारी है, अनुसंधान हो रहे हैं. उसके समन्वय एवं बढ़ावा देने में विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण हो सकती है. इसके अलावा विश्व स्तर पर एवं अलग-अलग क्षेत्नों में विभिन्न बीमारियों पर इसके कार्यक्रम चल रहे हैं. इसमें अमेरिका जैसा देश, जो संगठन को अब तक सबसे ज्यादा वित्तीय अंशदान देता रहा है, उसका अलग होना सामान्य तौर पर बहुत बड़ा धक्का साबित हो सकता है. भारत हाल ही में इसके कार्यकारी बोर्ड का अध्यक्ष बना है. इसलिए हमारे लिए भी इस कदम के मायने हैं.  

ध्यान रखिए, ट्रम्प ने अप्रैल में ही कोरोना संकट पर गैर-जिम्मेदार तरीके से काम करने का आरोप लगाते हुए संगठन को दी जाने वाली आर्थिक सहायता पर रोक लगा दी थी. ट्रम्प ने कहा था कि जब तक कोरोना के प्रसार को कम करने को लेकर संगठन की भूमिका की समीक्षा नहीं हो जाती, तब तक यह रोक जारी रहेगी. तो धन रोकने से लेकर अलग होने तक के बीच करीब डेढ़ महीने का अंतराल रहा है. 

19 मई को डोनाल्ड ट्रम्प ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को चिट्ठी लिखकर चेतावनी दी थी कि 30 दिन में संगठन में सुधार करें अन्यथा आपको दी जा रही फंडिंग स्थायी रूप से रोक दी जाएगी और अमेरिका संगठन का सदस्य बने रहने पर भी दोबारा विचार करेगा. इसमें 30 दिन का समय दिया गया था तो कायदे से अमेरिका को 17 जून के बाद फैसला करना चाहिए था. हालांकि उसी दिन उन्होंने व्हाइट हाउस में भी डब्ल्यूएचओ की आलोचना की. उन्होंने कहा था कि वे (डब्ल्यूएचओ) चीन की कठपुतली हैं. कई विश्लेषकों का यह मानना है कि चीन चाहता था कि अमेरिका संगठन से बाहर चला जाए. इसमें यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या ट्रम्प ने जल्दबाजी कर चीन की इच्छा को पूरा कर दिया है?

इसका उत्तर भविष्य में मिलेगा. किंतु इसका असर डब्ल्यूएचओ पर तत्काल पड़ना तय है. विश्व स्वास्थ्य संगठन को कुल मिलाकर सबसे ज्यादा धन अभी तक अमेरिका देता रहा है औसत 22 प्रतिशत. इसे दो तरीकों से कोष मिला है. पहला, असेस्ड कंट्रीब्यूशन यानी निश्चित अंशदान और दूसरा- वॉलेंटरी कंट्रीब्यूशन यानी स्वैच्छिक अंशदान. असेस्ड के तहत यह पहले से ही निश्चित होता है कि कौन सा देश कितना फंड देगा. इस फंड का निर्धारण उस देश की अर्थव्यवस्था और जनसंख्या के आंकड़ों के जरिए किया जाता है.

असेस्ड कंट्रीब्यूशन के जरिए ही विश्व स्वास्थ्य संगठन को सबसे ज्यादा फंडिंग मिलती है. इससे संगठन अपने खर्च और कार्यक्रम का वित्तपोषण करता है. स्वैच्छिक अंशदान निश्चित कार्यक्रम को लेकर दिए जाते हैं. डब्ल्यूएचओ इस धन का इस्तेमाल केवल उन्हीं काम में करता है जिसके नाम पर यह मिला होता है. जैसे कोरोना वायरस की दवा बनाने के लिए अगर किसी संस्था या देश से धन मिला है तो वह केवल इस वैक्सीन को बनाने में ही इसको खर्च कर सकता है.

चूंकि अमेरिका दोनों श्रेणियों में सबसे ज्यादा धन देता है इसलिए उसका असर संगठन के वित्तीय स्वास्थ्य पर पड़ना ही है. अमेरिका ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को 2019 में 55.3 करोड़ डॉलर दिए थे. इसके अलावा कई अमेरिकी संस्थाएं भी योगदान देती हैं. मसलन, अकेले बिल एंड मेलिंडा गेट्स 10 प्रतिशत अंशदान देते हैं जो अनेक देशों के अंशदान से ज्यादा है. डब्ल्यूएचओ पूरे धन का इस्तेमाल टीकाकरण अभियान चलाने, स्वास्थ्य आपातकाल और प्राथमिक इलाज में दुनिया भर के देशों की मदद करने में खर्च करता है.

चीन ने ऐलान किया है कि वह डब्ल्यूएचओ को दो अरब डॉलर देगा. यह बहुत बड़ी रकम है. हालांकि चीन बगैर स्वार्थ एक पैसा कहीं खर्च नहीं करता. इसलिए चीन देगा या नहीं और देगा तो किस रूप में, यह कहना मुश्किल है. ऐसा तो नहीं कि चीन अपनी मनोवांछित कुछ वैसी योजनाओं के लिए धन देगा जिससे संबंधित देशों में उसका प्रभाव बढ़े और कुछ इसमें तात्कालिक कर्ज के रूप में भी हो? 

अफ्रीकी देशों में कर्ज जाल को लेकर चीन के प्रति नाराजगी है. वह विश्व स्वास्थ्य संगठन का इस्तेमाल वहां अपना प्रभाव बढ़ाने में करना चाहता है. वैसे संगठन पर उसके लिए प्रभाव बनाए रखना इसलिए जरूरी है क्योंकि कोविड-19 उत्पत्ति एवं प्रसार की जांच में उसके दोषी साबित होने की पूरी संभावना है. जाहिर है, चीन के प्रभाव को रोकने तथा विश्व स्वास्थ्य संगठन में व्यापक सुधार के लिए दूसरे उपाय करने की जरूरत है. अमेरिका का बाहर जाना उचित कदम नहीं है.  प्रधानमंत्नी नरेंद्र मोदी ट्रम्प से अपने संबंधों का लाभ उठाकर उन्हें समझाकर वापस लाने में भूमिका निभा सकते हैं.

Web Title: Coronavirus: Meaning of America's exit from WHO, china, donald trump

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