फाज वायरस क्या है? क्या ये करेंगे इंसानों की कोविड के खिलाफ जंग में मदद
By भरत झुनझुनवाला | Published: May 5, 2021 12:12 PM2021-05-05T12:12:47+5:302021-05-05T12:12:47+5:30
कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को हिला कर रख दिया है. ऐसे में जरूरत है कि इस वायरस से लड़ने के लिए कुछ और तरीकों पर भी ध्यान देना चाहिए. नए खोज करने चाहिए.
कुछ समय पूर्व तमाम वैश्विक संस्थाओं ने आकलन किया था कि 2021-22 में भारत की अर्थव्यवस्था 10 से 15 प्रतिशत की द्रुत गति से आगे बढ़ेगी. लेकिन कोविड की दूसरी लहर ने उस आकलन को निरस्त कर दिया है. इसी प्रकार ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स ने आकलन किया था कि 2021 में कुछ गिरावट आने के बाद 2022 से विश्व अर्थव्यवस्था पुरानी गति से चलती रहेगी. वह आकलन भी निरस्त होता ही जान पड़ता है.
इस दुर्गम परिस्थति में सरकार की ऋण लेकर संकट को पार करने की नीति बहुत ही भारी पड़ेगी. 2020-21 में ऋण लेकर यदि 2021-22 में अर्थव्यवस्था चल निकलती तो संभवत: उस ऋण की अदायगी की जा सकती थी. लेकिन संकट बना रहा तो ऋण के बोझ से अर्थव्यवस्था इतनी दब जाएगी कि आगे निकलना ही कठिन होगा. जिस व्यक्ति की नौकरी छूट गई हो वह उत्तरोत्तर ऋण लेकर अपने जीवन स्तर को बनाए रखे और नौकरी दुबारा न लगे तो अंत में उसे भारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है.
कोविड वायरस लगातार म्यूटेट कर रहा है, इसलिए इसके सभी वेरिएंट को नियंत्रित करने के उद्देश्य से हमें कुछ अलग तरीके खोजने चाहिए. कोविड का टीका बनाने का ऐसा ही एक तरीका फाज थेरेपी है. फाज वायरस होते हैं जिनका मूल रूप कोविड अथवा फ्लू के वायरस जैसा ही होता है. लेकिन ये लाभप्रद वायरस होते हैं.
फाज हमारे शरीर में दो प्रकार से काम करते हैं. ये सीधे रोगकारक बैक्टीरिया जैसे मलेरिया या टाइफाड के बैक्टीरिया पर आक्रमण करके बैक्टीरिया के शरीर में प्रवेश करते हैं. बैक्टीरिया के शरीर के तत्वों का उपयोग करके ये स्वयं को मल्टीप्लाई कर लेते हैं. जैसे एक लाभप्रद फाज ने मलेरिया के बैक्टीरिया में प्रवेश किया तो वह 100 लाभप्रद फाज बनकर निकलता है.
इस प्रकार जो हमारे शरीर में बैक्टीरिया संबंधी रोग हैं उनका उपचार फाज के द्वारा किया जा सकता है. पूर्वी यूरोप के देश जार्जिया में इस दिशा में बहुत कार्य किया गया है.
फाज दूसरी तरह से भी हमारे शरीर में काम करते हैं. ये शरीर में प्रवेश करके अपने समकक्ष दूसरे फाज के प्रवेश को रोक सकते हैं. पोलैंड के प्रोफेसर एन्द्रेज गोर्सकी के अनुसार फाज हमारे फेफड़ों में प्रवेश करके जिन कोशिकाओं में कोविड का वायरस प्रवेश करना चाहता है, उन कोशिकाओं में ये प्रवेश करके कोविड के वायरस के प्रवेश को रोक सकते हैं.
इसी क्रम में तुर्की के मर्ट सेलीमुगलू ने लिखा है कि कोविड वायरस का सामना करने का एक उपाय यह है कि फाज के मिश्रण का उपयोग करके वैक्सीन बनाई जाए. फाज के मिश्रण को मनुष्य को देने पर उसके शरीर में तमाम प्रकार के फाज उपस्थित हो जाएंगे.
उनमें से जिस फाज के समकक्ष बैक्टीरिया शरीर में उपलब्ध होंगे उन बैक्टीरिया को वह फाज समाप्त कर देगा. और जिन कोशिकाओं को जो फाज रोक सकेगा उनमें वह प्रवेश करके कोविड के प्रवेश को भी रोक सकेगा.
मिश्रण में दिए गए दूसरे फाज जो उपयोगी नहीं होंगे वे स्वयं समाप्त हो जाएंगे. जैसे किसान द्वारा खेत में मिश्रित खेती की जाती है और एक ही खेत में तीन फसलों के बीज बो दिए जाते हैं. तीनों में जिस फसल के अनुकूल मौसम होगा वह फसल कामयाब हो जाएगी और बाकी दोनों फसलें समाप्त हो जाएंगी.
इसी प्रकार सेलीमुगलू का कहना है कि हम मिश्रित फाजों से टीका बनाकर मनुष्य को दे सकते हैं जो कि कोविड के विभिन्न वेरिएंट को समाप्त करने में सफल हो सकता है.
इस दिशा में अपने देश में विशेष उपलब्धि गंगा नदी की है. नेशनल एनवायरनमेंट इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार गंगा में 200 प्रकार के फाज पाए जाते हैं जिसकी तुलना में यमुना और नर्मदा नदी में केवल 20 प्रकार के. अत: हम गंगा नदी के मिश्रित फाजों का उपयोग करके कोविड का टीका बना सकते हैं.
मैरीलैंड अमेरिका की फेज थ्युरेप्यूटिक्स कंपनी ने फाज आधारित कोविड का टीका बनाया है और उसका फेज वन ट्रायल चल रहा है. विश्व में चल रहे ये प्रयोग हमें उत्साहित करते हैं कि कोरोना वायरस के संक्रमण का उपचार गंगाजल से करने का अध्ययन करें.
वर्तमान संकट से शीघ्र छुटकारा मिलता नहीं दिख रहा है. सरकार को सर्वप्रथम टीका बनाने में भारी निवेश करना चाहिए विशेषकर देश में उपलब्ध गंगा के फाज अथवा आयुर्वेद इत्यादि से. दूसरे, ऋण लेकर अपने खर्चों को बनाए रखने की नीति को त्याग कर सरकारी खर्चों में 50 प्रतिशत की कटौती तत्काल कर लेनी चाहिए ताकि हम ऋण के बोझ से न दबें.
तीसरे, तात्कालिक विषम परिस्थिति सरकार को आॅक्सीजन, आॅक्सीजन कन्संट्रेटर, टीका इत्यादि की जरूरतों को पूरा करने के लिए आयात करना चाहिए. लेकिन दीर्घकाल के लिए इनके साथ तमाम आयातों पर आयात कर बढ़ाना चाहिए जिससे आने वाले संकट में हमें ऑक्सीजन के लिए आयातों का सहारा न लेना पड़े.