जलवायु परिवर्तन की मार से बेहाल होता सागर, पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग

By पंकज चतुर्वेदी | Published: February 25, 2021 02:14 PM2021-02-25T14:14:19+5:302021-02-25T14:17:10+5:30

दुनिया जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से जूझ रही है क्योंकि प्राकृतिक आपदाएं हमारे आधारभूत ढांचे को नष्ट कर देती है.

climate change Sea affected Rain Loo cyclone rise water level suffering Pankaj Chaturvedi's blog | जलवायु परिवर्तन की मार से बेहाल होता सागर, पंकज चतुर्वेदी का ब्लॉग

त्तरी हिंद महासागर का जल स्तर जहां 1874 से 2004 के बीच 1.06 से 1.75 मिलीमीटर बढ़ा. (file photo)

Highlightsभारत ने दुनिया का ध्यान आपदा प्रबंधन के मुद्दे की ओर आकृष्ट किया है.आपने देखा कि हाल ही में उत्तराखंड में क्या हुआ.हमें आपदा सहने में सक्षम आधारभूत ढांचे को बेहतर बनाने पर ध्यान देना चाहिए, जो प्राकृतिक आपदाओं के प्रभावों को बर्दाश्त कर सके.

हाल ही में जारी पृथ्वी-विज्ञान मंत्रलय की रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र बहुत अधिक प्रभावित हो रहे हैं.

सनद रहे कि ग्लोबल वार्मिग से उपजी गर्मी का 93 फीसदी हिस्सा समुद्र पहले तो उदरस्थ कर लेते हैं, फिर जब उन्हें उगलते हैं तो ढेर सारी व्याधियां पैदा होती हैं. हम जानते ही हैं कि बहुत सी चरम प्राकृतिक आपदाओं जैसे कि बरसात, लू, चक्रवात, जल स्तर में वृद्धि आदि का उद्गम स्थल महासागर या समुद्र ही होते हैं.

जब परिवेश की गर्मी के कारण समुद्र का तापमान बढ़ता है तो अधिक बादल पैदा होने से भयंकर बरसात, गर्मी के केंद्रित होने से चक्रवात, समुद्र की गर्म भाप के कारण तटीय इलाकों में बेहद गर्मी बढ़ने जैसी घटनाएं होती हैं. भारत में पश्चिम के गुजरात से नीचे आते हुए कोंकण, फिर मलाबार और कन्याकुमारी से ऊपर की ओर घूमते हुए कोरोमंडल और आगे बंगाल के सुंदरबन तक कोई 5600 किमी सागर तट है.

यहां नेशनल पार्क  व सेंचुरी जैसे 33 संरक्षित क्षेत्र हैं. इनके तटों पर रहने वाले करोड़ों लोगों की आजीविका का साधन समुद्र से उपजे मछली व अन्य उत्पाद ही हैं. लेकिन विडंबना है कि हमारे समुद्री तटों का पर्यावरणीय संतुलन तेजी से गड़बड़ा रहा है.

मुंबई महानगर को कोई 40 किमी समुद्र तट का प्राकृतिक-आशीर्वाद मिला हुआ है, लेकिन इसके नैसर्गिक रूप से छेड़छाड़ का ही परिणाम है कि यह वरदान अब महानगर के लिए आफत बन गया है. कफ परेड से गिरगांव चौपाटी तक कभी केवल सुनहरी रेत, चमकती चट्टानें और नारियल के पेड़ झूमते दिखते थे. कोई 75 साल पहले अंग्रेज शासकों ने वहां से पुराने बंगलों को हटा कर मरीन ड्राइव और बिजनेस सेंटर का निर्माण करवा दिया. उसके बाद तो मुंबई के समुद्री तट गंदगी, अतिक्रमण और बदबू के भंडार बन गए.  

‘असेसमेंट ऑफ क्लाइमेट चेंज ओवर द इंडियन रीजन’ शीर्षक की यह रिपोर्ट भारत द्वारा तैयार अपने तरह का पहला दस्तावेज है जो देश को जलवायु परिवर्तन के संभावित खतरों के प्रति आगाह करता है व सुझाव भी देता है. इसमें बता दिया गया है कि यदि हम इस दिशा में संभले नहीं तो लू की मार तीन से चार गुना बढ़ेगी व इसके चलते समुद्र का जलस्तर 30 सेंटीमीटर तक उठ सकता है.

यह किसी से छुपा नहीं है कि इस सदी के पहले दो दशकों में भयानक समुद्री चक्रवाती तूफानों की संख्या में इजाफा हुआ है. यह रिपोर्ट कहती है कि मौसमी कारकों की वजह से उत्तरी हिंद महासागर में अब और अधिक शक्तिशाली चक्रवात तटों से टकराएंगे. ग्लोबल वॉर्मिग से समुद्र की सतह लगातार उठ रही है और उत्तरी हिंद महासागर का जल स्तर जहां 1874 से 2004 के बीच 1.06 से 1.75 मिलीमीटर बढ़ा, वहीं बीते 25 सालों (1993-2017) में 3.3 मिलीमीटर सालाना दर से बढ़ रहा है.

यह रिपोर्ट सावधान करती है कि सदी के अंत तक जहां पूरी दुनिया में समुद्री जलस्तर में औसत वृद्धि 150 मिलीमीटर होगी, वहीं भारत में यह 300 मिलीमीटर (करीब एक फुट) हो जाएगी. जाहिर है कि यदि इस दर से समुद्र का जलस्तर ऊंचा होता है तो मुंबई, कोलकाता और त्रिवेंद्रम जैसे शहरों का वजूद खतरे में होगा क्योंकि यहां घनी आबादी समुद्र से सट कर बसी हुई है.

पृथ्वी मंत्रलय की रिपोर्ट में समझाइश दी गई है कि समुद्र में हो रहे परिवर्तनों की बारीकी से निगरानी, उन आंकड़ों का आकलन और अनुमान, उसके अनुरूप उन इलाकों की योजनाएं तैयार करना समय की मांग है. भारत में जलवायु परिवर्तन की निरंतर निगरानी, क्षेत्रीय इलाकों में हो रहे बदलावों का बारीकी से आकलन, जलवायु परिवर्तन के नुकसान, इससे बचने के उपायों को शैक्षिक सामग्री में शामिल करने, आम लोगों को इसके बारे में जागरूक करने के लिए अधिक निवेश करने की जरूरत है.

जैसे कि देश के समुद्री तटों पर जीपीएस के साथ ज्वार-भाटे का अवलोकन करना, स्थानीय स्तर पर समुद्र के जल स्तर में आ रहे बदलावों के आंकड़ों को एकत्र करना आदि. इससे समुद्र तट के संभावित बदलावों का अंदाजा लगाया जा सकता है और इससे तटीय शहरों में रह रही आबादी पर संभावित संकट से निपटने की तैयारी की जा सकती है.

समुद्र वैज्ञानिक इस बात से चिंतित हैं कि सागर की निर्मल गहराइयां खाली बोतलों, केनों, अखबारों व शौच-पात्रों के अंबार से पटती जा रही हैं. मछलियों के अंधाधुंध शिकार और मूंगा की चट्टानों की बेहिसाब तुड़ाई के चलते सागरों का पर्यावरण संतुलन गड़बड़ाता जा रहा है.

Web Title: climate change Sea affected Rain Loo cyclone rise water level suffering Pankaj Chaturvedi's blog

भारत से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे