सीबीआई की सिकुड़ती जा रही है भूमिका!, ईडी नया हथियार, आम आदमी पार्टी की रणनीति

By हरीश गुप्ता | Published: October 20, 2022 02:27 PM2022-10-20T14:27:41+5:302022-10-20T14:30:26+5:30

सत्तारूढ़ दलों द्वारा एजेंसी की विश्वसनीयता को दांव पर लगाते हुए इसका इस्तेमाल अपने राजनीतिक हितों को हासिल करने के लिए किया जाता रहा है.

CBI role shrinking, ed new weapon Aam Aadmi Party's strategy blog harish gupta | सीबीआई की सिकुड़ती जा रही है भूमिका!, ईडी नया हथियार, आम आदमी पार्टी की रणनीति

सीबीआई की भूमिका दिनोंदिन घटती जा रही है और मोटे तौर पर यह लोकसेवकों के भ्रष्टाचार की जांच तक ही सीमित रह गई है.

Highlightsसुप्रीम कोर्ट ने 2013 में सीबीआई को ‘पिंजरे का तोता’ कहा था.ईडी, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), एसएफआईओ और आयकर विभाग के जांच निदेशालय पर अधिकाधिक भरोसा कर रही है. सीबीआई की भूमिका दिनोंदिन घटती जा रही है और मोटे तौर पर यह लोकसेवकों के भ्रष्टाचार की जांच तक ही सीमित रह गई है.

सीबीआई भले ही देश की प्रमुख जांच एजेंसी है जिसके पास पूरे देश में भ्रष्टाचार और अपराध से लड़ने का कानूनी अधिकार क्षेत्र है लेकिन पिछले कुछ वर्षों से अनेक हमलों का सामना करने के कारण इसकी चमक फीकी पड़ती गई है.

सत्तारूढ़ दलों द्वारा एजेंसी की विश्वसनीयता को दांव पर लगाते हुए इसका इस्तेमाल अपने राजनीतिक हितों को हासिल करने के लिए किया जाता रहा है. काफी हद तक इसी कारण से सुप्रीम कोर्ट ने 2013 में सीबीआई को ‘पिंजरे का तोता’ कहा था. यह अभूतपूर्व है कि नौ से अधिक राज्यों ने सीबीआई पर पूर्व अनुमति के बिना अपने क्षेत्र में कोई कार्रवाई करने पर पाबंदी लगा रखी है.

इससे सीबीआई के स्वतंत्र रूप से देश में कहीं भी कोई कार्रवाई करने की ताकत कम हो गई है. 2022 में भी कदाचित हालात नहीं सुधरे हैं, क्योंकि प्रधान न्यायाधीश के रूप में एन.वी. रमणा, जो अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं, ने एजेंसी की विश्वसनीयता का मुद्दा उठाया था.

उन्होंने सीबीआई को यह कहते हुए चेतावनी दी कि ‘सीबीआई की विश्वसनीयता समय बीतने के साथ सार्वजनिक जांच के घेरे में आ गई है. इसके कार्यों और निष्क्रियताओं ने कुछ मामलों में इसकी विश्वसनीयता के बारे में सवाल उठाया है.’ रमणा ने कहा कि एक स्वतंत्र संस्था के निर्माण की तत्काल आवश्यकता है ताकि सीबीआई, ईडी और गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआईओ) जैसी विभिन्न एजेंसियों को एक ही छतरी के नीचे लाया जा सके.

लेकिन मोदी सरकार ऐसी संस्था बनाने के मूड में नहीं है. इसने एक अलग तरीका अपनाया है. सीबीआई की भूमिका दिनोंदिन घटती जा रही है और मोटे तौर पर यह लोकसेवकों के भ्रष्टाचार की जांच तक ही सीमित रह गई है. सरकार ईडी, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए), एसएफआईओ और आयकर विभाग के जांच निदेशालय पर अधिकाधिक भरोसा कर रही है.

डाटा से पता चलता है कि अगर सीबीआई ने 2021 में 747 केस दर्ज किए तो ईडी ने  2021-22 वित्तीय वर्ष के दौरान धन शोधन और विदेशी मुद्रा उल्लंघन के सबसे अधिक मामले 1180 (और 5313 शिकायतें) दर्ज कीं.  एनआईए, जिसे आतंकवाद से लड़ने के लिए सीबीआई से अलग किया गया है, के पास भी ईडी जैसा ही पूरे देश का अधिकार क्षेत्र है.

इन एजेंसियों को किसी राज्य की अनुमति की आवश्यकता नहीं है. यही बात एसएफआईओ और आयकर विभाग के लिए भी सही है. आयकर विभाग ने 9000 से अधिक  असेसमेंट मामलों की जांच की है और रोज औसतन चार छापेमारी करता है. सीबीआई शायद ही अब कभी सुर्खियों में रहती है और ईडी नया हथियार है.

लेबर कोड ठंडे बस्ते में!

यह साफ तौर पर सामने आ रहा है कि किसानों के दबाव में तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद अब चार श्रम संहिताएं भी ठंडे बस्ते में जा सकती हैं. मोदी सरकार बहुप्रतीक्षित श्रम सुधारों को लाने की पूरी कोशिश कर रही है और संसद में तीन विधेयक सितंबर 2020 में पारित किए गए थे.

बिलों का उद्देश्य कर्मचारियों के लिए सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए नियोक्ताओं को कर्मचारियों को काम पर रखने और नौकरी से निकालने के लिए अधिक लचीलापन प्रदान करना था. लेकिन श्रम मंत्रालय पिछले दो वर्षों के दौरान 10 ट्रेड यूनियन के कड़े विरोध के कारण इन चार श्रम संहिताओं को अंतिम रूप नहीं दे पाया है.

दिलचस्प बात यह है कि आरएसएस नियंत्रित भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने भी श्रम मंत्री भूपेंद्र यादव को स्पष्ट किया है कि वह चार संहिताओं में से कम से कम दो का विरोध करता है. बीएमएस ने सामाजिक सुरक्षा संहिता और वेतन संहिता का तो समर्थन किया लेकिन औद्योगिक संबंध संहिता और व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति संहिता का विरोध किया.

बीएमएस ने यादव से तत्काल भारतीय श्रम सम्मेलन की बैठक (आईएलसी) आहूत करने को कहा, जो वर्षों से आयोजित नहीं की गई थी. आईएलसी एक प्रभावी त्रिपक्षीय तंत्र है. सत्तारूढ़ राजनीतिक दल इस मुद्दे पर 10 प्रमुख मजदूर संगठनों के साथ टकराव बर्दाश्त नहीं कर सकता है. 2024 में लोकसभा चुनाव से पहले 2022-23 में कम से कम 11 राज्यों में मतदान होने वाला है.

इन ट्रेड यूनियनों को चारों संहिताओं पर आपत्तियां हैं और उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र भी लिखा है. इन संहिताओं पर बीएमएस के कड़े रुख से राजनीतिक पर्यवेक्षकों को हैरानी हुई है. भूमि अधिग्रहण अधिनियम और कृषि कानूनों को लागू करने में विफल रहने के बाद मोदी सरकार के लिए यह बहुत बड़ा झटका है.

आम आदमी पार्टी की रणनीति

अगर शिमला से आ रही खबरें सही हैं तो आम आदमी पार्टी (आप) ने हिमाचल प्रदेश में अपने अभियान को धीमा कर दिया है, जहां 12 नवंबर को चुनाव है. आप के कई वरिष्ठ नेताओं के हिमाचल में भाजपा के साथ चले जाने के कारण वहां अरविंद केजरीवाल अकेले पड़ गए हैं और इसलिए केजरीवाल ने गुजरात विधानसभा चुनावों पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया, जहां आप को तवज्जो मिल रही है.

केजरीवाल राज्य की आए दिन यात्रा कर रहे हैं. कांग्रेस का प्रचार अभियान गति नहीं पकड़ सका है, क्योंकि गुजरात के कई नेताओं ने पार्टी छोड़ दी है, जबकि वरिष्ठ नेतृत्व राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को सफल बनाने में जुटा है. कांग्रेस नेतृत्व द्वारा खाली किए गए मैदान का केजरीवाल पूरा फायदा उठा रहे हैं और एक के बाद दूसरी रैली को संबोधित कर रहे हैं.

अनेक जनमत सर्वेक्षणों ने संकेत दिया है कि आप का बढ़ता ग्राफ भाजपा को अपनी सक्रियता और बढ़ाने के लिए मजबूर कर रहा है. प्रधानमंत्री और गृह मंत्री राज्य में बड़े पैमाने पर यात्रा कर रहे हैं और वहां कई दिनों तक डेरा डाल रहे हैं. गुजरात में कांग्रेस के फिसलते ग्राफ से भाजपा को चिंता सताने लगी है.

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