जाति जनगणना से तय होगी देश की राजनीति?, राजनीतिक दल हर मुद्दे को भुनाने में माहिर

By राजकुमार सिंह | Updated: June 11, 2025 05:15 IST2025-06-11T05:15:04+5:302025-06-11T05:15:04+5:30

caste census: एक अक्तूबर, 2026 से पहले चरण में पहाड़ी राज्यों: जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल और उत्तराखंड में जनगणना होगी. दूसरे चरण में एक मार्च, 2027 से शेष सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में जनगणना होगी.

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सांकेतिक फोटो

Highlightsदेश में जनगणना की प्रक्रिया पूरी होने और अंतिम आंकड़े आने में लंबा समय लग सकता है. राजनीतिक दल तो वैसे भी हर मुद्दे को चुनाव में भुनाने में माहिर हैं.नियमानुसार यह जनगणना 2021 में होनी थी, लेकिन कोरोना आ गया.

caste census: नरेंद्र मोदी सरकार ने जाति जनगणना प्रक्रिया की औपचारिक घोषणा कर दी है. घोषित कार्यक्रम से स्पष्ट है कि प्रक्रिया लंबी चलेगी और भावी राजनीति पर दूरगामी असर डालेगी. भारत सरकार की घोषणा के मुताबिक अप्रैल से सितंबर, 2026 तक घरों को सूचीबद्ध किया जाएगा. उसके बाद लोगों की गिनती होगी. दरअसल जाति जनगणना दो चरणों में होगी. एक अक्तूबर, 2026 से पहले चरण में पहाड़ी राज्यों: जम्मू-कश्मीर, लद्दाख, हिमाचल और उत्तराखंड में जनगणना होगी. दूसरे चरण में एक मार्च, 2027 से शेष सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में जनगणना होगी.

जाहिर है भारत जैसे विशाल देश में जनगणना की प्रक्रिया पूरी होने और अंतिम आंकड़े आने में लंबा समय लग सकता है. ऐसे में इस साल होनेवाले बिहार विधानसभा चुनाव ही नहीं, अगले साल होनेवाले असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल एवं पुडुचेरी तथा 2027 में होनेवाले उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर, गुजरात और गोवा विधानसभा चुनाव भी जाति जनगणना के शोर और उसके श्रेय के दावों-प्रतिदावों के बीच ही निपट जाएंगे. बेशक इससे बचने का कोई विकल्प नहीं है. हमारे राजनीतिक दल तो वैसे भी हर मुद्दे को चुनाव में भुनाने में माहिर हैं.

नियमानुसार यह जनगणना 2021 में होनी थी, लेकिन कोरोना आ गया. कोरोना के बीच ही सावधानियों के साथ कई राज्यों में चुनाव तो कराए गए, लेकिन जनगणना नहीं. पांच साल विलंब से लंबित जनगणना में अब जातियों की गणना भी की जाएगी. हमारे देश में जाति जनगणना भले ही आजादी के बाद पहली बार हो रही हो, पर उस पर राजनीति पुरानी है.

कांग्रेस और भाजपा, दोनों की छवि अतीत में जाति जनगणना विरोधी की रही है, लेकिन अब वे ही उसका श्रेय लेना चाहती हैं. सरकार, भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जाति जनगणना को देश और समाज की विकास योजनाओं के लिए उपयोगिता से जोड़ कर पेश कर रहे हैं, लेकिन राहुल गांधी कह रहे हैं कि यह तो पहला कदम है, हमें आगे जा कर पता करना है कि उच्च पदों में किसकी कितनी हिस्सेदारी है.

सामाजिक न्याय के नाम पर राजनीति करनेवाले लालू यादव, नीतीश कुमार और अखिलेश यादव में भी श्रेय की होड़ शुरू हो गई है. समझ पाना मुश्किल नहीं कि सारा खेल सत्ता-राजनीति का है. जाति जनगणना की घोषणा के बाद उसकी पहली चुनावी परीक्षा इसी साल के अंत में होनेवाले बिहार विधानसभा चुनाव में होगी. सबसे पहले जाति सर्वे वाला बिहार ही बताएगा कि यह मोदी सरकार का ‘मास्टर स्ट्रोक’ साबित होता है या विपक्ष के दबाव में लिया गया फैसला.

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