किताबों का जलाया जाना, त्रूफो, तुलसी और शूर्पनखा प्रसंग

By लोकमत समाचार ब्यूरो | Updated: October 21, 2025 07:22 IST2025-10-21T07:20:27+5:302025-10-21T07:22:23+5:30

रूसी जार ने 1794 में ये ‘किताबें’ जीतकर सेंट पीटर्सबर्ग भिजवा दीं, और रूस के सबसे बड़े पुस्तकालय की नींव रखी.

Burning of books incidents of Truffaut Tulsi and Shurpanakha | किताबों का जलाया जाना, त्रूफो, तुलसी और शूर्पनखा प्रसंग

किताबों का जलाया जाना, त्रूफो, तुलसी और शूर्पनखा प्रसंग

सुनील सोनी

फ्रांसीसी न्यू वेब सिनेमा के दिग्गज फ्रांसुआ त्रूफो ने 1953 में प्रकाशित हुए रे ब्रैडबरी के उपन्यास ‘फैरेनहाइट 451’ पर 1966 में उसी नाम से फिल्म बनाई थी. दोनों का नाम सांकेतिक था, क्योंकि 451 डिग्री फैरेनहाइट तापमान पर कागज जलने लगता है. मुड़कर देखें, तो नजर आएगा कि सत्ता जब भी किसी प्रगतिशील विचार से खुद को असुरक्षित महसूस करती है, सबसे पहले सेंसरशिप लगाती है और फिर दमन शुरू करती है.

द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान दुनिया ने नाजियों को पुस्तकालयों को फूंकते देखा ही है, पर उससे पहले ईसा पूर्व तीसरी सदी में स्थापित अलेक्जेंड्रिया के पुरातन पुस्तकालय के दहन का नजारा भी किया है. वह दृश्य भारत में नालंदा विश्वविद्यालय की लाखों किताबों के महीनों तक जलते रहने जैसा ही भयावह रहा होगा.

जैक ग्लेनहाल की 2004 की थ्रिलर ‘डे ऑफ्टर टुमारो’ में संकट में फंसे किरदार जिंदा रहने के लिए जब किताबें जलाते हैं, तो सारी नकल के बावजूद वहां कोई भविष्यदृष्टि नहीं दिखती. त्रूफो का सिनेमा महान कला इसलिए है, क्योंकि उसमें कोई किरदार किताबें छोड़ने के बजाय दुनिया छोड़ देता है; कोई खुद को किताब में तब्दील कर लेता है, ताकि मानव जाति ज्ञान से वंचित न रह जाए. अलेक्जेंड्रिया के पुस्तकालय को जब जूलियस सीजर ने जलाया, तो उसमें संग्रहीत उस दौर के भारतीय उपमहाद्वीप की ताड़पत्र या भोजपत्र में लिखी पांडुलिपियां भी जल गई थीं.

नालंदा से शिक्षा लेकर ह्वेनसांग जब सातवीं शताब्दी में लौटे, तो साथ में नौ सौ से अधिक किताबें ले गए, जिन्होंने चीन में नया ‘बोधज्ञान’ पैदा किया. इसके बाद की पांच सदियों में उन किताबों ने कितने ही लोगों के भीतर दीया जलाया होगा, जिसे जलाने का आदेश देने में आक्रांताओं को क्षणभर न लगा.

10 मई 1933 को बर्लिन समेत जर्मनी के विश्वविद्यालय वाले हर शहर में नाजी पार्टी समर्थक छात्रों ने उन लेखकों की किताबें जलाईं, ताकि विचार न बचे. इसके बाद जर्मनी से साहित्यकारों, बुद्धिजीवियों का जो पलायन शुरू हुआ, तो रुका नहीं. हिटलर ने ही पोलैंड का राष्ट्रीय पुस्तकालय भी जलवाया था, जिसकी स्थापना जालुस्की बंधुओं (जोसेफ और आंद्रेई) ने 1732 में पोलैंड में 2 लाख पांडुलिपियों अथवा मुद्रित सामग्री के साथ की थी, जो 30 साल के भीतर 4 लाख तक पहुंच गई थी. रूसी जार ने 1794 में ये ‘किताबें’ जीतकर सेंट पीटर्सबर्ग भिजवा दीं, और रूस के सबसे बड़े पुस्तकालय की नींव रखी.

यूं 50 सालों में धीरे-धीरे किताबें पोलैंड लौटती रहीं और 1928 में स्थापित राष्ट्रीय पुस्तकालय में वे 50 हजार तक पहुंचीं. लेकिन, नाजियों ने वारसॉ विद्रोह के बाद जानबूझकर पुस्तकालय को निशाना बनाया और 30 लाख किताबें, पांडुलिपियां, नक्शे, चित्र नष्ट कर दिए. विश्वयुद्ध में हिटलर हारा, तो पोलैंड ने सबसे पहले राष्ट्रीय पुस्कालय की पुनर्स्थापना की. इस वक्त दुनिया के सबसे बड़े संग्रहों में से एक पुस्तकालय में 79,00,000 सामग्री हैं.

इनमें 1801 से पहले छपी 1,60,000 मुद्रित सामग्री; 6887 संगीत पांडुलिपियों सहित 26,000 से अधिक पांडुलिपियां; 1,14,000 से अधिक संगीत प्रिंट, 4,00,000 चित्र, 1,01,000 से अधिक नक्शे, 20,00,000 से अधिक पंचांग, 19वीं से 21वीं सदी तक की 20,00,000 से अधिक पुस्तकें और पत्रिकाओं की 8,00,000 प्रतियां संग्रहीत हैं.

कर्नाटक के बस कंडक्टर अंके गौड़ा में अगर पोलैंड के जालुस्की बंधुओं जैसा जुनून नहीं होता, तो 76 की उम्र में मैसुरु के पास हरलाहल्ली में वे 20 लाख किताबों का ‘पुस्तक माने’ नहीं बनाते, जिसमें 5000 बहुभाषी कोष और 1832 तक की पांडुलिपियां भी हैं. 50 साल की जमापूंजी और घर बेचकर आई रकम से बना यह किताबघर सबके लिए नि:शुल्क है.

दीपावली पर किताबों का यह जिक्र इसलिए है कि वे छह पुस्तकें कौन-सी हों, जो हमारे भीतर की लौ को तेज कर दें कि अगली छह का मौका बने. ‘उर्दू की आखिरी किताब’, ‘राग दरबारी’, ‘खट्टर काका’, ‘आज भी खरे हैं तालाब’, ‘जल, थल, मल’ और ‘बहुरूपी गांधी’ समेत कोई भी हो सकती हैं. कविता भी, कहानी भी; कल्पज भी, तथ्यज भी.

यूं, तुलसी के ‘रामचरित मानस’ से बोधगम्य अवधी कविता तो और कोई नहीं. तुलसी पढ़ें कि भाषा बने, पर इस बार उत्तर भारत में कितनी ही जगह रामलीला में शूर्पनखा प्रसंग की खूब मांग रही, क्योंकि हर जगह उस किरदार की किसी रूपगर्विता ने ऐसे अदायगी की कि ‘वंस मोर’ के नारे लगते रहे.

Web Title: Burning of books incidents of Truffaut Tulsi and Shurpanakha

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