राजेश बादल का ब्लॉग: बजट में चुनौतियों से निपटने की राह साफ नहीं

By राजेश बादल | Published: February 2, 2022 12:44 PM2022-02-02T12:44:22+5:302022-02-02T12:46:45+5:30

Budget 2022 Rajesh Badal blog way to deal with challenges still not clear | राजेश बादल का ब्लॉग: बजट में चुनौतियों से निपटने की राह साफ नहीं

फाइल फोटो

पांच प्रदेशों में विधानसभा चुनावों के बीच केंद्रीय बजट आकर्षित तो करता है, लेकिन हिंदुस्तान के सामने खड़ी गंभीर चुनौतियों से लड़ने का कोई ब्लूप्रिंट प्रस्तुत नहीं करता. डिजिटल विश्व में दाखिल होने के इरादे का आप स्वागत कर सकते हैं, क्रिप्टो करेंसी एक लुभावना जुमला है लेकिन उसमें आम भारतीय की भागीदारी कितनी होगी- कहना मुश्किल है. 

भारत के औसत विकास में क्रिप्टो करेंसी का योगदान अधिक नहीं होगा. बतौर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का यह चौथा बजट रहा. पर, तीन बजटों के अनुभव और पूरे नहीं हो पाने वाले वादों के जंजाल से निकलने की कोई विशेषज्ञ दृष्टि भी इसमें नहीं दिखाई दी. भारत के विभिन्न वर्गो के चेहरे पर यह बजट मुस्कान नहीं लाता, बल्किउनकी चिंताएं बढ़ाता है. 
किसानों, नौजवानों, महिलाओं, कारोबारियों व स्वरोजगार कर रहे करोड़ों मतदाताओं को इससे निराशा हाथ लगी है. यहां तक कि उत्तरप्रदेश जैसे राज्य के विधानसभा चुनाव में भी यह बजट सत्तारूढ़ दल को कोई सहायता नहीं पहुंचाता.

कुछ वर्षो के बजटों का अध्ययन कीजिए - तस्वीर साफ हो जाती है. भारत का मध्य आय वर्ग और निम्न आय वर्ग सबसे प्रताड़ित दिखाई देता है. कीमतें आसमान छू रही हैं और इन वर्गो की आमदनी घटती गई है. घर-घर में बेरोजगार बैठे हैं. न उनके लिए नौकरियां हैं और न वे अपना स्वयं का कारोबार प्रारंभ करने की स्थिति में बचे हैं. 

बेरोजगारी से निपटने के लिए सरकार के पास कोई योजना ही नहीं है. डेढ़ सौ करोड़ की आबादी वाले देश में सालाना 16 लाख नौकरियां क्या मायने रखती हैं?  

इस बजट में जिन बातों पर वित्त मंत्री ने एड़ीचोटी का जोर लगाया है, उसका आम आदमी से वास्तव में कोई लेना-देना नहीं है. चाहे वह डिजिटल करेंसी की बात हो या पोस्ट ऑफिस को कोर बैंकिंग से जोड़ने की बात हो ( वह तो पोस्ट ऑफिस पहले से ही कर रहे हैं ) ई-पासपोर्ट की बात हो अथवा पेशेवरों को सहूलियतों की बात हो - व्यावहारिक धरातल पर आम नागरिक फायदे में नहीं दिखाई देता. 

किसान फिर एक बार ठगे गए हैं. उनकी आमदनी दोगुनी करने का वादा कई बरस पहले किया गया था, पर उल्टा हुआ. उनकी आय घटकर आधी रह गई है. कहा गया है कि एमएसपी का पैसा किसानों के खाते में सीधे जमा किया जाएगा. इससे सुधार क्या हुआ -समझ से परे है. 

जीएसटी का राज्यों के हिस्से का पैसा तो उन्हें समय पर नहीं मिलता. किसानों का पैसा साल भर बाद आया तो किस काम का? यह अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश की अर्थव्यवस्था में कृषि की भागीदारी लगातार कम हो रही है. साल 1951 में यह भागीदारी 51 फीसदी थी. दो बरस पहले यह घटकर 14.8 फीसदी रह गया. 

इसके बावजूद देश की करीब 60 फीसदी आबादी कृषि पर निर्भर है. यह किसी भी देश के लिए चेतावनी मानी जा सकती है. फिर भी हम खेती-किसानी को बहुत गंभीरता से नहीं ले रहे हैं. किसी एक सरकार को दोष देना ठीक नहीं, पर यह सच है कि कृषि की उपेक्षा आने वाले दिनों में भयावह स्थिति बना सकती है. 

Web Title: Budget 2022 Rajesh Badal blog way to deal with challenges still not clear

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