पुस्तक समीक्षा: आरक्षण और उच्च स्तरों पर फैले भ्रष्टाचार को उजागर करता उपन्यास 'उत्कोच'
By धीरज पाल | Published: August 25, 2019 11:23 AM2019-08-25T11:23:43+5:302019-08-25T12:26:34+5:30
दलित लेखक जयप्रकाश कर्दम का लिखा उपन्यास 'उत्कोच' सरकारी दफ्तरों में फैले भ्रष्टाचार की जड़ को उजागार करता है। उन्होंने सरकारी विभाग के परिवेश को बेहद ही खूबसूरत तरीके से दर्शाया है।
किताबः उत्कोच (उपन्यास)
लेखकः जयप्रकाश कर्दम
प्रकाशकः राधाकृष्ण पेपरबैक्स
पेजः 135
मूल्यः 150 रुपये
यदि भ्रष्टाचार पर अंकुश नहीं लगेगा तो यह इतना विकराल रूप धारण कर लेगा कि आपके बच्चों को नौकरी नहीं मिल पाएगी। भ्रष्टाचार के बाजार में नौकरियों की बोली लगेगी और गरीब आदमी को तो छोड़ दीजिए आप जैसे लोग भी अपने बच्चों के लिए नौकरी नहीं खरीद सकेंगे।
भ्रष्टाचार के खिलाफ मनोहर अक्सर ऐसे कई वाद-विवाद और तर्क लोगों के सामने रखता था। कुछ लोगों को उसका तर्क सही लगता और कुछ लोगों को उसका तर्क गलत लगता था। लेकिन मनोहर हमेशा इसी उम्मीद से भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ता रहा कि किसी को कभी ना कभी उसकी बात का एहसास हो जाए। आज हमारे समाज में भ्रष्टाचार की जड़े किस प्रकार से मजबूत है, आखिर इसे हमेशा कैसे समाप्त कर सकते हैं। इसके अलावा भ्रष्टाचार किस स्तर तक फैला है, जैसी बातों को स्पष्ट करता है उपन्यास 'उत्कोच'।
उपन्यास के बारे में...
जय प्रकाश कर्दम द्वारा लिखित उपन्यास का नाम ही उत्कोच है। जिसका का मतलब 'भ्रष्टाचार' है। इस उपन्यास में मुख्य किरदार का नाम मनोहर है जो हमेशा भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ता है। मनोहर ने किसी भी हालात में भ्रष्टाचार का समर्थन नहीं किया। मनोहर एक सरकारी कर्मचारी था। उसकी पोस्टिंग सबसे मलाईदार विभाग में हुई। मलाईदार का मतलब है ऐसे विभाग में उसकी पोस्टिंग हुई जहां ऊपरी कमाई यानी रिश्वत सबसे अधिक वसूली जाती थी।
वहीं, रिश्वत न लेने की वजह से मनोहर को काफी कुछ जीवन में झेलना पड़ता है। उसे न सिर्फ अपने दफ्तर में सवर्ण सहकर्मियों की उपेक्षा, उपहास और उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है, बल्कि घर में भी पत्नी से काफी नोंकझोंक हो जाती थी। इस वजह से पत्नी तनावग्रस्त रहने लगती है और बिमार पड़ जाती है।
क्यों पढ़ना चाहिए यह उपन्यास
जयप्रकाश कर्दम ने इस उपन्यास में विस्तार से एक आदर्शवादी युवक के मानसिक और सामाजिक संघर्ष को दर्शाया है। साथ ही आरक्षण और उच्च स्तरों पर व्याप्त भ्रष्टाचार, जाति-व्यवस्था, जाति के आधार पर दफ्तरी माहौल में फैले भेदभाव आदि को बारिकी से उभारा है। भाषा बेहद ही सरल है। आपको यह समान्य लग सकता है, क्योंकि हमारे आसपास ऐसी कई घटनाएं घटती हैं, जिन पर हम ज्यादातर ध्यान नहीं देते है। इसलिए पाठकों को यह किताब बेहद ही पसंद आएगी। उपन्यास भ्रष्टाचार को लेकर कई सवाल आपके मन को पैदा कर सकता है।
सरकारी दफ्तरों के हालात पर चोट करता है यह उपन्यास
जयप्रकाश कर्दम की लिखी उपन्यास 'उत्कोच' सरकारी दफ्तरों में फैले भ्रष्टाचार की जड़ को उजागार करता है। उन्होंने सरकारी विभाग के परिवेश को बेहद ही खूबसूरत तरीके से दर्शाया है। यह किताब भ्रष्टाचार के उन कड़ियों को भी दर्शाता है जो एक आम इंसान अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में झेलता है।