ब्लॉग: योगगुरु का लालच और आर्थिक सेहत का राज

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Published: April 26, 2024 10:36 AM2024-04-26T10:36:04+5:302024-04-26T10:51:16+5:30

राम किसन यादव ने यूपी के हरिद्वार में शुरुआती दौर में कुछ समय योग गुरु के रूप में काम किया। भरपूर प्रसिद्धि पाने के बाद फिर सत्तारूढ़ कांग्रेस शासन के खिलाफ इंडिया अगेंस्ट करप्शन (आईएसी) अभियान में शामिल होकर एक भ्रष्टाचार विरोधी योद्धा बन गए।

Blog: Yogaguru's greed and the secret of financial health | ब्लॉग: योगगुरु का लालच और आर्थिक सेहत का राज

फाइल फोटो

Highlightsराम किसन यादव ने यूपी के हरिद्वार में शुरुआती दौर में कुछ समय योग गुरु के रूप में काम कियाप्रसिद्धि पाने के बाद रामदेव इंडिया अगेंस्ट करप्शन अभियान में कांग्रेस सरकार के खिलाफ विरोध में उतरेआज की तारीऱ में रामदेव देश के शीर्ष ‘उद्योगपति’ और आयुर्वेदिक उत्पादों के बड़े ब्रांड हैं

राम किसन यादव ने हरिद्वार (उ.प्र.) में शुरुआती दौर में कुछ समय योग गुरु के रूप में काम किया। भरपूर प्रसिद्धि पाने के बाद फिर सत्तारूढ़ कांग्रेस शासन के खिलाफ इंडिया अगेंस्ट करप्शन (आईएसी) अभियान में शामिल होकर एक भ्रष्टाचार विरोधी योद्धा बन गए।

आज उन्हें देश एक शीर्ष ‘उद्योगपति’ और आयुर्वेदिक उत्पादों के एक प्रभावशाली ब्रांड मैनेजर के रूप में देख रहा है। उनकी कंपनी पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड (2006 में स्थापित) कई दवाएं, आटा, मलहम, दंतमंजन आदि बनाती है और वे उन्हें प्रचारित करते हैं।

पिछले दस वर्षों में बाबा रामदेव का उदय जबरदस्त रहा है, जिससे भारत में पीढ़ियों पुराने कई व्यापारिक समूह ईर्ष्यालु हुए पड़े। उनकी कंपनी का आर्थिक कारोबार करोड़ों रुपए में है। कई लोग उन्हें भगवान की तरह मानने लगे थे और शायद अब न मानें!

योग की कला सदियों पुरानी है जिसमें उनका योगदान निर्विवाद है। उन्होंने न केवल प्राचीन भारतीय शारीरिक व्यायाम पद्धति को भारत में लोकप्रिय बनाया, बल्कि इसे वैश्विक स्तर पर भी ले गए। नरेंद्र मोदी, जो स्वयं योग करते हैं, इसे संयुक्त राष्ट्र तक ले गए। प्रधानमंत्री के करीबी, बेंगलुरु के एक और प्रसिद्धि-विमुख योग गुरु की भी इसमें भूमिका थी। दुनिया भर में अब अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है तो इसका कुछ श्रेय भगवाधारी, दाढ़ी वाले बाबा को जाता है।

उस शानदार सफलता की कहानी में अब विराम-सा लग गया है। केरल के एक कर्तव्यनिष्ठ नेत्र रोग विशेषज्ञ ने एक धर्मयोद्धा की तरह लड़ाई लड़ी और बाबा के गलत कामों और इतने सालों में जिस तरह से उन्होंने अपना कारोबार फैला लिया था, उसे उजागर किया।

उच्चतम न्यायालय को गंभीरता से ध्यान देने के लिए मजबूर होना पड़ा। चिकित्सा क्षेत्र में कई मान्यताएं और कई नैदानिक एवं उपचारात्मक उपचार पद्धतियां हैं जैसे एलोपैथी, होमियोपैथी, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी या सिद्धा इत्यादि। रामदेव का समूह अपने उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए खूब विज्ञापन जारी कर रहा था और साथ ही अन्य दवा प्रणालियों की जमकर आलोचना भी कर रहा था, उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश में था, इससे शीर्ष अदालत नाराज हो गई; होना भी था।

केरल के डॉक्टर केवी बाबू को उनकी दृढ़ता के लिए सलाम किया जाना चाहिए कि उन्होंने भ्रामक विज्ञापन जारी किए जाने के लिए औषधि और चमत्कारिक उपचार अधिनियम 1954 और औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम व नियम 1945 के तहत पहले केंद्रीय आयुष मंत्रालय से शिकायत की।

उनके अनुसार दोनों कानूनों के तहत, 100 से अधिक बीमारियां या विकार हैं जिनके लिए विज्ञापन निषिद्ध हैं। उनका गुस्सा तब भड़क उठा जब उनके दोस्त की मां आयुर्वेदिक चिकित्सा अपनाने के बाद लगभग अंधी हो गईं। यहीं से उनकी गंभीर लड़ाई शुरू हुई लेकिन सरकारी विभागों ने उनकी शिकायतों का संज्ञान नहीं लिया, क्योंकि बाबा भाजपा सरकारों में असाधारण रसूख रखते हैं। डॉ. बाबू का आरोप है कि पतंजलि समूह ने दोनों कानूनों का खुलेआम और लंबे समय तक उल्लंघन किया. खूब पैसा कमाया।

उच्चतम न्यायालय पिछले साल से इस मामले की सुनवाई कर रहा है, लेकिन जब न्यायाधीशों को पता चला कि शीर्ष अदालत के आदेशों के बावजूद, पतंजलि के मालिक रामदेव और आचार्य बालकृष्ण कई मानवीय बीमारियों का इलाज अपने समूह द्वारा बनाई दवाओं के जरिये करने का दावा करने वाले विज्ञापन पाबंदी के बाद भी देते रहे, तो वे भड़क गए।

पतंजलि ने न केवल विज्ञापन जारी किए, बल्कि यह दिखाने के लिए कि मरीज उनकी दवाओं से ठीक हो गया है, एक सभा में लोगों के सामने उसकी ‘परेड’ भी कराई, जिससे न्यायालय की नाराजगी बढ़ गई। बाबा अपने आप को कानून के ऊपर मानते थे। आयुष मंत्रालय के साथ, उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण (एसएलए) को भी एक योग्य चिकित्सक की शिकायतों को नजरअंदाज करते हुए, प्रभावशाली बाबा द्वारा जारी उल्लंघनों के लिए दोषी ठहराया जाना चाहिए।

लेकिन पूरे मामले के अन्य दृष्टिकोण भी हैं। विभिन्न कानूनों का खुलेआम उल्लंघन करने वाले कई अन्य प्रभावशाली व्यवसायियों पर भाजपा सरकार ने कार्रवाई नहीं की है। सबको मालूम है वे कौन हैं। इससे यह आम धारणा मजबूत हुई है कि ‘क्रोनी कैपिटलिज्म’ कुछ बड़े व्यापारिक समूहों तक ही सीमित नहीं रहा है, बल्कि बड़े पैमाने पर सरकार में व्याप्त हो गया है।

रामदेव से इतर बाबाओं से लेकर बड़े व्यवसायियों, वास्तुकारों से लेकर चुनिंदा सिने सितारों (पुरुष और महिलाएं) तक, कई लोग पिछले दशक में ही तेजी से फले-फूले हैं। उनका क्या? कौन खोजेगा वह सब? अकेले पतंजलि समूह को सजा क्यों? बाबा से माफी क्यों मंगवाई जाए, जिसकी उन्हें कतई आदत नहीं है? रेडियो, अखबारों और शहरों तथा गांवों की दीवारों पर झोलाछाप डॉक्टरों और शीर्ष अस्पताल श्रृंखलाओं द्वारा किसी भी बीमारी का इलाज करने का दावा करने वाले अनगिनत विज्ञापन रोजाना दिखते हैं।

कुछ कंपनियां बॉलीवुड के सर्वश्रेष्ठ नायकों और नायिकाओं द्वारा प्रचारित सौंदर्य उत्पादों के माध्यम से ‘चांद लाने’ का वादा करती हैं। उन्हें भी सजा क्यों नहीं? मुझे लगता है कि यह मुद्दा भारतीय कानूनों के सख्ती से कार्यान्वयन से संबंधित है- उनमें से कुछ, संयोगवश, नेहरूजी के समय में बनाए गए थे, जिनमें ये दोनों (1954 और 1945) भी लोगों के दीर्घकालिक लाभ की दृष्टि से बने थे। मुझे लगता है रामदेवजी को सिर्फ प्राणायाम सिखाते रहना चाहिए। गलत-सलत धंधेबाजी से दूर रहना उनकी आर्थिक सेहत के लिए बेहतर ही होगा।

Web Title: Blog: Yogaguru's greed and the secret of financial health

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