ब्लॉग: स्वस्थ विश्व का आधार बना मोटा अनाज

By प्रो. संजय द्विवेदी | Published: April 1, 2023 01:21 PM2023-04-01T13:21:31+5:302023-04-01T13:23:25+5:30

मोटे अनाज हमारी खेती और हमारे भोजन की विविधता बढ़ाते हैं। ‘मोटे अनाजों के प्रति सजगता बढ़ाना’ इस आंदोलन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। लोग और संस्थाएं, दोनों ही बड़ा प्रभाव छोड़ सकते हैं।

Blog Whole grains form the basis of a healthy world | ब्लॉग: स्वस्थ विश्व का आधार बना मोटा अनाज

फाइल फोटो

Highlightsमोटे अनाज हमारी खेती और हमारे भोजन की विविधता बढ़ाते हैं।ज्वार, रागी, कोदो, सामा, बाजरा, कुट्टू, जैसे अनेक मोटे अनाज की पूरी दुनिया में मांग बढ़ी हैमोटे अनाजों की खेती में आने वाला खर्च भी कम होता है।

मिलेट्स यानी मोटा अनाज हमारे स्वास्थ्य, खेतों की मिट्टी, पर्यावरण और आर्थिक समृद्धि में कितना योगदान कर सकता है, इसे इटली के रोम में खाद्य एवं कृषि संगठन के मुख्यालय में मोटे अनाजों के अंतरराष्ट्रीय वर्ष (आईवाईओएम) के शुभारंभ समारोह के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस संदेश से समझा जा सकता है, ‘‘हमारी जमीन और हमारी थाली में विविधता होनी चाहिए।"

अगर खेती इकहरी फसल वाली हो जाए, तो इसका बुरा असर हमारे और हमारी जमीन के स्वास्थ्य पर पड़ेगा। मोटे अनाज हमारी खेती और हमारे भोजन की विविधता बढ़ाते हैं। ‘मोटे अनाजों के प्रति सजगता बढ़ाना’ इस आंदोलन का महत्वपूर्ण हिस्सा है। लोग और संस्थाएं, दोनों ही बड़ा प्रभाव छोड़ सकते हैं।

संस्थाओं के प्रयास से मोटे अनाजों के उत्पादन को बढ़ावा दिया जा सकता है और समुचित नीतियां अपनाकर इनकी फसल को फायदेमंद बनाया जा सकता है। दूसरी ओर, लोग भी स्वास्थ्य के प्रति सजग रहते हुए मोटे अनाजों को अपने आहार में शामिल करके इस पृथ्वी के अनुकूल विकल्प चुन सकते हैं। मुझे विश्वास है कि 2023 में मोटे अनाजों के अंतरराष्ट्रीय वर्ष का यह आयोजन सुरक्षित, टिकाऊ और स्वस्थ भविष्य की दिशा में एक जन आंदोलन को जन्म देगा।’’

पिछले कुछ सालों से, लोगों में अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता बढ़ी है, लेकिन खासकर कोरोना के बाद से यह चेतना चिंता में बदल गई है। लोगों ने महसूस किया है कि अगर खानपान और जीवनशैली में बदलाव नहीं लाया गया तो इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

यही वजह है कि ज्वार, रागी, कोदो, सामा, बाजरा, कुट्टू, जैसे अनेक मोटे अनाज की पूरी दुनिया में मांग बढ़ी है लेकिन भारत ने तो इस चेतना की अलख काफी पहले से ही जगानी शुरू कर दी है।

2014 में जब केंद्र में भाजपा के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार सत्ता में आई, तभी से इस दिशा में प्रयास किए जाने लगे थे। इन्हीं प्रयासों का नतीजा था कि वर्ष 2018 को सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय मिलेट वर्ष’ घोषित किया गया। ऐसा करने का उद्देश्य लोगों में मिलेट के उपयोग को बढ़ावा देना, इनके उत्पादन को प्रोत्साहित करना और इनकी मांग बढ़ाना था। इसके काफी सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं।

मिलेट के वैश्विक उत्पादन में 18 प्रतिशत भागीदारी के साथ भारत आज विश्व का सबसे बड़ा मिलेट उत्पादक देश बन चुका है और प्रति हेक्टेयर उत्पादकता की दृष्टि से भी दुनिया के मिलेट उत्पादक देशों में दूसरे स्थान पर आ चुका है।

वर्तमान में विश्व के लगभग एक सौ तीस देशों में मिलेट उगाए जा रहे हैं और एशिया व अफ्रीका महाद्वीप में रहने वाले लगभग साठ करोड़ लोगों के नियमित भोजन का हिस्सा बने हुए हैं। उत्पादन और उत्पादकता के 2016 से 2021 के आंकड़ों पर नजर डालें, तो हम पाएंगे कि विश्व के पांच सबसे बड़े पोषक अनाज (मिलेट) उत्पादक देशों में भारत के अलावा नाइजर, सूडान, नाइजीरिया और माली जैसे देश शामिल हैं।

इनमें भारत में 142.93 लाख हेक्टेयर जमीन पर इनकी खेती होती है और पांच सालों में औसतन 156.12 लाख टन मिलेट का उत्पादन हुआ, जबकि दूसरे स्थान पर रहे नाइजर में सिर्फ 56.39 लाख टन उत्पादन रहा। पूरे विश्व में मिलेट उत्पादन का औसत 890.92 लाख टन है, जिसमें 156.12 लाख टन से ज्यादा भारत में उपजा है।

उत्पादकता (किलोग्राम प्रति हेक्टेयर ) की दृष्टि से सिर्फ नाइजीरिया ही भारत से आगे है, वह भी बहुत कम। नाइजीरिया में यह उत्पादकता 1103 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है, और भारत में 1092 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर।

मिलेट में प्रोटीन, फाइबर और कैल्शियम, जिंक, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, कॉपर, आयरन जैसे खनिजों और कार्बोहाइड्रेट, एंटीऑक्सीडेंट्स, विटामिन आदि काफी उच्च मात्रा में पाए जाते हैं। हम जो भी खाते हैं, उसका अधिकतर हिस्सा हमारे पेट में जाकर ग्लूकोज में परिवर्तित होकर हमारे रक्त में मिल जाता है, जो कि शुगर का एक मृदु रूप होता है।

गेहूं व चावल जैसे आधुनिक दौर के लोकप्रिय अनाजों की तुलना में मिलेट इसलिए बेहतर हैं, क्योंकि इनके ग्लूकोज में बदलने की प्रक्रिया अपेक्षाकृत काफी धीमी होती है। इसके अलावा ये ग्लूटोन मुक्त होने के कारण कई प्रकार के उदर रोगों से भी बचाते हैं।

मिलेट पर्यावरण की दृष्टि से भी बेहद उपयोगी है। ये विभिन्न प्रकार के तापमानों वाले नम और शुष्क सभी क्षेत्रों में उगाए जा सकते हैं। उन्हें पनपने के लिए पानी और वर्षा की जरूरत कम होती है। ये महज 300-400 मिमी पानी में भी उग सकते हैं। ये लगभग हर प्रकार की मिट्टी में अंकुरित हो सकते हैं।

इनमें कीड़े लगने की आशंका भी नहीं के बराबर होती है इसलिए इनमें केमिकल फर्टिलाइजरों और कीटनाशकों का इस्तेमाल करने की बहुत कम जरूरत होती है। मिलेट का फसल चक्र भी बारीक अनाजों की तुलना में बेहतर होता है, क्योंकि अधिकतर मिलेट को परिपक्व होने में 60-90 दिनों की आवश्यकता होती है, जबकि बारीक अनाज के लिए यह अवधि 100 से 140 दिन हो सकती है।

मोटे अनाजों की खेती में आने वाला खर्च भी कम होता है। इन सब वजह से मिलेट की खेती छोटे किसानों के लिए काफी फायदेमंद है। क्लाइमेट चेंज की चुनौती से जूझती दुनिया के लिए भी मिलेट किसी वरदान से कम नहीं है, क्योंकि इनमें कार्बन उत्सर्जन बहुत कम होता है।

साथ ही जलवायु परिवर्तन के कारण विश्व पर खाद्यान्नों की कमी का जो संकट मंडरा रहा है, मिलेट्स उससे निपटने में भी हमारी काफी सहायता कर सकते हैं।

Web Title: Blog Whole grains form the basis of a healthy world

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