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ब्लॉग: नीतीश कुमार के अगले कदम को लेकर बेचैनी

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: January 22, 2024 08:31 IST

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नए दांव को लेकर चर्चा सभी तरफ है। जो बातें हवाओं में हैं, उनका न कोई खंडन कर रहा है और न सच कहने के लिए कोई तैयार है।

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ठळक मुद्देबिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नए दांव को लेकर चर्चा सभी तरफ हैलोकसभा चुनाव का समय पास आ रहा है, लेकिन इंडिया गठबंधन में सीट बंटवारे की स्थिति साफ नहीं हैंनीतीश न तो प्रधानमंत्री के चेहरे की दौड़ में रह गए हैं और न ही गठबंधन के नेता के रूप में

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नए दांव को लेकर चर्चा सभी तरफ है। जो बातें हवाओं में हैं, उनका न कोई खंडन कर रहा है और न सच कहने के लिए कोई तैयार है। जिस तरह लोकसभा चुनाव का समय पास आ रहा है और इंडिया गठबंधन में सीटों के बंटवारे को लेकर स्थितियां साफ नहीं हैं, उससे विपक्ष के खेमे में चिंता स्वाभाविक है।

पहले जब विपक्षी दलों का गठबंधन बना था, तब नीतीश कुमार प्रधानमंत्री के चेहरे के रूप में उभर रहे थे। आगे चलकर उन्हें गठबंधन का नेता माना गया, लेकिन धीरे-धीरे वातावरण इतना बिगड़ गया है कि न तो वह प्रधानमंत्री के चेहरे की दौड़ में रह गए हैं और न ही गठबंधन के नेता के रूप में उन्हें पहचान मिली।

शायद इसी कारण उन्हें खुद ही दूसरे नेताओं का नाम सुझाने के लिए मजबूर होना पड़ा। इन्हीं परिस्थितियों को देखकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के तेवर नरम हो चले हैं। हाल के दिनों में सीधे हमलों से बचा ही जा रहा है, साथ ही नजदीकियां बढ़ाने के लिए भी बयान दिए जा रहे हैं। उधर, नीतीश कुमार जिस तरह अपनी पार्टी में बदलाव करते जा रहे हैं, उससे उनकी पार्टी में भाजपा के खिलाफ मुखर नेता किनारे होते जा रहे हैं, जिनमें से एक जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के प्रदेश अध्यक्ष ललन सिंह भी हैं।

इसके अलावा ताजा मंत्रिमंडल का फेरबदल सहयोगी दल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के लिए अच्छा संकेत नहीं है। इससे पहले वह राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव के सक्रिय होने से दबाव में दिख रहे थे। अब इंडिया गठबंधन में भी लालू प्रसाद यादव का बोलबाला अधिक हो चला है। यदि ऐसी स्थिति रही तो लोकसभा चुनाव में सीटों के बंटवारे में जदयू के खाते में अधिक सीटें नहीं आएंगी। आगे विधानसभा चुनाव में पार्टी को एक कदम पीछे चलना होगा।

इस परिस्थिति में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में अधिक मुश्किलें नहीं हैं। उसे भाजपा के अलावा किसी अन्य दल से अधिक समझौता करने की नौबत नहीं आएगी। जिस तरह भाजपा ने पिछले चुनाव में अधिक सीट जीतकर भी नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री बनाया, उसी तरह लोकसभा चुनाव में भी अधिक सीटें जीतने पर केंद्रीय मंत्रिमंडल में अच्छी हिस्सेदारी का दावा तैयार हो जाएगा। बावजूद इस सच्चाई को समझ कर भाजपा और जदयू दोनों ही स्थितियां साफ नहीं कर रहे हैं।

संभव है कि जब तक दोनों के बीच ठोस समझौते की स्थितियां नहीं बनतीं, तब तक दोनों कुछ कहने की स्थिति में नहीं होंगे। किंतु नीतीश कुमार जिस तरह का इतिहास अपने साथ लेकर चलते हैं, उसे देखकर वर्तमान तथा भविष्य दोनों के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता है। यूं तो राजनीति संभावनाओं के आधार पर चलती है और उसमें कोई स्थाई दोस्त या दुश्मन नहीं होता है. अब देखना यह होगा कि इसे बिहार के मुख्यमंत्री अगली बार कब सिद्ध करते हैं?

टॅग्स :नीतीश कुमारराष्ट्रीय रक्षा अकादमीBJPकांग्रेसलालू प्रसाद यादवआरजेडी
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