ब्लॉगः समाज से अभी भी पूरी तरह नहीं मिटा है छुआछूत का अभिशाप

By विश्वनाथ सचदेव | Published: January 4, 2023 12:52 PM2023-01-04T12:52:30+5:302023-01-04T12:52:57+5:30

यह इक्कीसवीं सदी के भारत के एक गांव की तस्वीर है। यह उसी तमिलनाडु की घटना है जहां एक सदी पहले पेरियार ने मनुष्य की गरिमा का सवाल उठाया था और कहा था कि वह हर व्यक्ति के मनुष्य होने पर गर्व करने का अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

Blog The curse of untouchability is still not completely eradicated from the society | ब्लॉगः समाज से अभी भी पूरी तरह नहीं मिटा है छुआछूत का अभिशाप

ब्लॉगः समाज से अभी भी पूरी तरह नहीं मिटा है छुआछूत का अभिशाप

तमिलनाडु के पुद्दकोट्टई गांव का नाम सुना है आपने? नहीं सुना होगा। छोटा-सा गांव है यह जहां के एक हिस्से में दलितों (पढ़िए अछूतों) की एक बस्ती है। हाल ही में इस बस्ती की पानी की टंकी में किसी ने मानव-मल डाल दिया था।  इसके बारे में पता भी इसलिए चला कि बस्ती के बच्चे बीमार पड़ने लगे थे। डॉक्टरों ने बीमारी का कारण दूषित पानी बताया तो पता चला बस्ती के लोगों के लिए जिस टंकी से पानी आता था उसमें किसी ने ढेर सारा मानव-मल डाल दिया है। किसने किया है यह काम, अभी पता नहीं चल पाया है, पर अब तक जांच के दौरान जो कुछ सामने आया है वह हैरान कर देने वाला है।

पता चला है कि इस गांव के अछूतों को गांव के एकमात्र मंदिर में जाने की अनुमति नहीं है; पीढ़ियों से ये अछूत कहे जाने वाले मंदिर की मूर्ति को देखने के लिए तरस रहे थे। भला हो जिले की कलेक्टर कविता रामू और पुलिस सुपरिंटेंडेंट वंदिता पांडे का जो इन दलितों को अपनी देख-रेख में मंदिर-प्रवेश कराने ले गईं। तब कहीं जाकर यह पूरी घटना एक समाचार बनी। तब कहीं दलितों (अछूतों) का पानी दूषित करने का ‘पाप’ सामने आया। पता चला कि गांव में चाय की दुकान पर अछूतों और सवर्णों के लिए अलग-अलग गिलास रखे जाते हैं।

यह इक्कीसवीं सदी के भारत के एक गांव की तस्वीर है। यह उसी तमिलनाडु की घटना है जहां एक सदी पहले पेरियार ने मनुष्य की गरिमा का सवाल उठाया था और कहा था कि वह हर व्यक्ति के मनुष्य होने पर गर्व करने का अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। सौ साल हो गए इस संघर्ष को शुरू हुए- संघर्ष जारी है। दलितों के लिए चलाए जा रहे प्रगति-अभियानों के बावजूद आज भी तमिलनाडु के इस क्षेत्र में छुआछूत जारी है। लगभग साढ़े छह सौ गांवों में, जो बीस जिलों में हैं, छुआछूत अबाध रूप से जारी है, और आज तक किसी को इन गांवों में इस गैरकानूनी कही जाने वाली हरकत के लिए कोई सजा नहीं मिली है।

इन्हीं गांवों में से एक गांव में ऊंची दीवार बना कर दलित बस्ती को पृथक कर दिया गया है। एक अन्य गांव में एक मंदिर है द्रौपदी का। इस मंदिर को कंटीले तारों से घेर कर ‘सुरक्षित’ बना दिया गया है, ताकि अछूत उस मंदिर में न जा सकें। यह दीवार 2016 में बनी थी, अब तक खड़ी है और यह गांव अकेला नहीं है जहां व्यक्ति और व्यक्ति के बीच अलगाव की यह दीवार खड़ी की गई है। कई गांवों में है ऐसी व्यवस्था। ये दीवारें हमारे मनुष्य होने का मजाक उड़ा रही हैं।

सवाल ईंट-गारे से बनी इन दीवारों का नहीं है, इन कंटीले तारों की बाड़ का भी नहीं है, सवाल उन दीवारों का है जो हमारे दिमागों में खड़ी हैं, उस सोच की दीवारों का है जिसने आदमी और आदमी के बीच दूरी पैदा कर दी है।

Web Title: Blog The curse of untouchability is still not completely eradicated from the society

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